Animal Husbandry (पशुपालन)

पशु लंगड़ा के या चलने में तकलीफ तो कराएं टीकाकरण

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अगर आपके पालतू पशु लंगड़ा के या चलने में तकलीफ हो रही हैए तो वह खुरपका-मुंहपका या ब्रूसेल्ला से ग्रसित हो सकता है। इन रोगों का कोई उपचार नहीं, सिर्फ उन्हें टीकाकरण से बचाया जा सकता है। पशुओं में खुरपका, मुंहपका विषाणु से होने वाले रोग से न सिर्फ उनकी क्षमता कम होती हैए बल्कि दुध उत्पादन में कमी और गर्भपात भी हो सकता है। दो खुर वाले पशुओं में मुंह की अंदरूनी त्वचा में सुजन आकर छाले हो जाते है। इन छालों से अत्यधिक मात्रा में लार निकलती है। पशुओं के खुर में छाले व पशु द्वारा लार चाट लेने से घाव में कीड़े भी उत्पन्न हो सकते है। इसका सबसे आसान लक्षण पशुओं को खाने-पीने व चलने में तकलीफ होती है और इसके बाद तेज बुखार भी आता है। ऐसे रोगग्रस्त पशुओं के संपर्क में आने से पानी व चारा खाने के बाद अन्य पशुओं में भी संक्रमित होने से अन्य पशु भी रोग से ग्रसित हो जाते है। खुरपका-मुंहपका रोग पशुओं में आम बीमारी हो गई है। इसके अलावा ब्रूसेल्ला पशुओं से मनुष्य में भी फैलने वाला रोग है। यह रोग दुध या दुध निकालने वाले व्यक्ति या फिर पशु चिकित्सक के माध्यम से भी फैल सकता है। इस रोग के कारण पशुओं में गर्भपात होता है। सभी जोड़ों में सुजन आती है और चलने में ज्यादा तकलीफ होती है। वहीं मादा पशु हमेशा के लिए बांझ हो सकती है। पशु चिकित्सा विभाग के उप संचालक डॉण् राजू रावत ने बताया कि इन रोगों से बचने का उपाय टीकाकरण ही है। 4 से 6 माह के मादा पशुओं को टीकाकरण के माध्यम से सुरक्षित कर रोग को फैलने से रोका जा सकता है। एक बार टीकाकरण हो जाने के बाद आजीवन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
रोग नियंत्रण के लिए निगरानी इकाई का गठन
जिले में पशुओं के खुरपका-मुंहपका रोग के नियंत्रण के लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में मॉनीटरिंग इकाई का गठन किया गया है। इस इकाई के सदस्य जिला पंचायत सीईओ और पशु चिकित्सा विभाग के उप संचालक नोडल अधिकारी रहेंगे। इसी तरह विकासखंड स्तर पर निगरानी इकाई के अध्यक्ष एसडीएमए जनपद पंचायत सीईओ और पशु चिकित्सा विभाग के विस्तार अधिकारी तथा पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ रहेंगे। यह इकाई टीकाकरण में आने वाली समस्याओं का निदान कर आवश्यक सुझाव देगी। टीकाकरण के पूर्व सभी पशुओं का डी वर्मी किया जाएगा। प्रत्येक ग्राम के लिए टीकाकरण कार्यकर्ता का चयन किया गया। टीकाकरण के पूर्व प्रत्येक पशुओं के पहचान के लिए कान में बिल्ला लगाया जाने के बाद उसका हेल्थ कार्ड बनाया जाता है।

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