पशुपालन (Animal Husbandry)

कुक्कुट पालन में पेयजल का महत्व

  • डॉ. नरेश कुरेचिया , डॉ. कविता रावत
  • डॉ. अंचल केशरी, डॉ. आर के जैन
    डॉ. अशोक कुमार पाटिल
    पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू

23 जून 2022,  कुक्कुट पालन में पेयजल का महत्व – कुक्कुट के लिए जल सबसे आवश्यक (महत्वपूर्ण) पोषक तत्व है। आयु के अनुसार पक्षियों के शरीर में जल की मात्रा 60 से 85 प्रतिशत तक पाई जाती है। अंडों में सामान्यत: 65 प्रतिशत जल होता है। पक्षी भोजन के आभाव में तो कई दिनों तक जीवित रह सकते है, परन्तु जल के बिना 1-2 दिन भी जीवन संभव नहीं है। सामान्यत: कुक्कुट के लिए भोजन से दुगनी मात्रा में पेयजल की आवश्यकता होती है, तथा अत्यधिक गर्मियों के दिनों में उपरोक्त मात्रा में 4 गुना तक का इजाफा हो जाता है। दूषित जल के माध्यम से जल जनित बीमारियों के फैलाव की संभावना सदैव बनी रहती है, जो कि कुक्कुट की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करती है। अत: सफल कुक्कुट पालन के लिए सदैव स्वच्छ एवं निरापद जल की आपूर्ति आवश्यक है।

जल के कार्य
  • जल शरीर के सभी अंगों का प्रमुख  घटक है।
  • जल शरीर के आंतरिक वातावरण का रखरखाव करता है।
  • जल शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जल लगभग हर शारीरिक प्रक्रिया में शामिल होता है।
  • जल शरीर में कई बुनियादी रासायनिक प्रतिक्रियाओं का एक घटक है।
  • जल पोषक तत्वों के पाचन एवं परिवहन के लिए एक माध्यम है।
  • जल शरीर में से अनुपयोगी पदार्थों को किडनी के माध्यम से उत्सर्जन में सहायक है।
जल के स्रोत

कुक्कुट के शरीर में जल की आपूर्ति हेतु तीन प्रमुख स्रोत हंै।

संयोजित जल- खाद्य पदार्थों का आवश्यक भाग बनकर भोजन के साथ शरीर में पहुँचता है।

स्वतंत्र जल – प्यास लगने पर पेयजल के रूप में शरीर में पहुँचता है।

उपापचयी जल– शरीर के भीतर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वशा में सम्मिलित हाइड्रोजन के ऑक्सीकरण से जो पानी बनता है।

उपरोक्त तीनों स्रोतों में से पक्षियों के शरीर में 90 प्रतिशत जल की आपूर्ति पेयजल के द्वारा होती है। अत: उक्त जल की गुणवत्ता कुक्कुट पालन में सदैव महत्वपूर्ण होती है, व पक्षियों की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करती है।

पेयजल की खपत को प्रभावित करने वाले कारक

पक्षियों के पेयजल के खपत की मात्रा कई कारकों के द्वारा प्रभावित होती है।     

पक्षियों की आयु – पानी के सेवन की मात्रा पक्षियों की आयु की वृद्धि के साथ साथ बढ़ती है, परन्तु शारीरिक भार के अनुपात में कम होती जाती है।

कुक्कुट परिवेश का तापमान- परिवेश के तापमान की वृद्धि के साथ-साथ पक्षियों द्वारा किये गए पानी के सेवन की मात्रा में भी वृद्धि होती है। गर्म दिनों में पक्षियों द्वारा शारीरिक तापमान को नियंत्रित करने के लिए श्वसन तंत्र के माध्यम से जो अतिरिक्त जल का हनन होता है, उसकी पूर्ति हेतु अधिक जल के सेवन की आवश्यकता होती है।        

पेयजल का तापमान – कुक्कुट के लिए पेयजल का तापमान कुक्कुट के शारीरिक तापमान से अधिक नहीं होना चाहिए। गर्म पेयजल पक्षियों द्वारा जल के सेवन की मात्रा में नकारात्मक प्रभाव डालता है। गर्मियों के दिनों में पक्षियों को सदैव शीतल जल उपलब्ध करायें।

पेयजल में इलेक्ट्रोलाइट्स की मात्रा – गर्मियों के दिनों में पक्षियों के शरीर में से इलेक्ट्रोलाइट्स की हनन दर में काफी वृद्धि हो जाती है, जिसे पेयजल के साथ आपूर्ति करना महत्वपूर्ण होता है। उपरोक्त इलेक्ट्रोलाइट्स की पेयजल के साथ आपूर्ति न सिर्फ उपरोक्त कमी को पूरा करती है साथ ही साथ जल के सेवन में भी वृद्धि करती है।

प्रकाश की मात्रा- कुक्कुट सामान्यत: प्रकाश की अनुपस्थिति में भोजन व जल ग्रहण नहीं करते हंै। प्राय: यह देखा गया है, कि डार्क पीरियड के आरंभ होने के पूर्व व समाप्ति के तुरंत बाद पेयजल की खपत अत्यधिक पाई जाती है।

पेयजल की गुणवत्ता – कुक्कुट के अच्छे स्वास्थ्य और विकास के लिए गुणवत्ता पूर्ण पेयजल की आपूर्ति सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। पक्षियों तक पहुंचने वाले पानी का हर तरह से स्वच्छ रहना महत्वपूर्ण है। पेयजल में गुणवत्ता की कमी जल के सेवन की मात्रा में नकारात्मक प्रभाव डालता है। पक्षियों में पेयजल के माध्यम से दी जाने वाली दवाइयाँ व वैक्सीन की उपयोगिता भी पेयजल में गुणवत्ता से प्रभावित होती है, अत: पानी और पेयजल लाइनों की स्वच्छता का सदैव  ध्यान रखना चाहिए।

पेयजल की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारक

पानी की गुणवत्ता अक्सर स्रोत के आधार पर प्रत्येक स्थान या क्षेत्र में मौसम के अनुसार बदलती रहती है। पेयजल की गुणवत्ता मापने के लिए उसका रंग, गंध, स्वाद श्च॥ तथा मैलापन प्रमुख भौतिक मानक है। पेयजल का मैलापन रेत, शैवाल, व अन्य कार्बोनिक पदार्थों की उपस्थिति से होता है। पेयजल का कड़वापन अत्यधिक आयरन, मैंगनीज व सल्फर के द्वारा होता है। आयरन की अधिक मात्रा से जल लाल तथा भूरे रंग का हो जाता है। कॉपर की अधिक मात्रा से जल नीला हो जाता है। जब जल के मैलापन का स्तर 5 श्चश्चद्व से अधिक  हो जाता है, तब जल पक्षियों के पीने योग्य नहीं रह जाता है। रसायनिक मानकों में क्षारीयता, कठोरता और अवांछित खनिजों की मात्रा प्रमुख मानक है। कैल्शियम व मैग्निसियम के लवण जल की कठोरता के प्रमुख कारण है। पेयजल में अवांछित खनिज सीसा, आर्सेनिक व सेलेनियम की मात्रा 1 पीपीएम से अधिक पक्षियों के श्वांश में विपरीत असर करती है। बोरिंग से प्राप्त पेयजल में क्षारीयता और कठोरता उच्च स्तर पर होती है। सतही जल में सोडियम, पोटेशियम और लोहे के उच्च स्तर हो सकते हैं। इनके अतरिक्त पक्षियों के पेयजल में टोटल बैक्टीरियल काउंट भी निर्धारित मात्रा से अधिक नहीं हो।

पेयजल की गुणवत्ता बढ़ाने का प्रबंधन
  • निस्पंदन (छानना) अम्लीकरण और जल स्वच्छता (सैनिटेशन) ऐसी प्रथाएं हैं जो प्रभावी रूप से पानी की गुणवत्ता में सुधार करने के प्रयोग की जाती हैं।
  • कुक्कुट आवास के जल का नियमित रूप से अवलोकन करना चाहिए व प्रत्येक मौसम के बदलाव के साथ उसकी प्रयोगशाला में विस्तृत जाँच करवाएं।
  • पेयजल की सप्लाई लाइन को नियमित रूप से उच्च दाब जल से फ्लैश करें।
  • पेयजल की सफाई में प्रयुक्त फिलटरों की नियमित सफाई करें व जरुरत महसूस होने पर तुरंत बदलें।
  • जल के जैविक सूक्ष्म भार को कम करने के लिए पेयजल का अम्लीकरण व सैनिटाइज़ेशन करें।
  • सैनिटाइज़ेशन के लिए क्लोरीनेशन सबसे सरल उपाय है, उपरोक्त के लिए 5-10 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर को 1000 लीटर पेयजल में मिलाकर कम से कम 1 घंटा रखें उपरोक्त पानी को पक्षियों को देने के पहले ये सुनिश्चित कर लेें कि जल में क्लोरीन की मात्रा 0.2 श्चश्चद्व से अधिक नहीं हो।
  • कार्बनिक अम्लों जैसे साइट्रिक और एसिटिक एसिड का उपयोग पेयजल के क्कद्ध मान तथा सूक्षम भार को कम करने किया जाता है, परन्तु यह भी ध्यान दें कि़ यह क्कद्ध मान 6 से कम न हो जाये अन्यथा  यह उत्पादन क्षमता पर विपरीत असर डालता हैं।
  • पेयजल पाइपलाइन की भीतरी सतह पर जमी बैक्टीरिया व गंदगी के संयोजन से निर्मित जैव-फिल्म को तोडऩे की लिए 50 प्रतिशत हाइड्रोजन पेरोक्साइड को 12 घंटे की लिए पाइपलाइन में भरकर छोड़ें। उसके उपरांत पाइपलाइन की सफाई उच्च दाब जल के माध्यम से करें, उपरोक्त क्रिया में यह भी ध्यान दें की टूटी हुई जैव-फिल्म के अवशेष पक्षियों के पेयजल में नहीं मिलें।

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