पशुपालन (Animal Husbandry)

बकरियों में प्रजनन प्रबंधन

06 सितम्बर 2024, भोपाल: बकरियों में प्रजनन प्रबंधन – बकरी पालन आर्थिक दृष्टिकोण से काफी लाभप्रद है, क्योंकि बकरियों से दूध, माँस, चमड़ा तथा बाल मिलने के साथ-साथ एक-ब्यात में एक से अधिक बच्चे प्राप्त होते है, जिसके लिए प्रजनन प्रबंधन अति आवश्यक है। प्रजनन प्रबंधन हेतु निम्न लिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है:-
नस्ल चुनाव –
चुनाव निम्न तरीके से किया जा सकता है।

  1. शारीरिक संरचना का बाहय रुप से निरीक्षण कर।
  2. जानवर के वर्तमान एवं पूर्वजों के उद्विकासीय वृद्धि एवं प्रदर्षन पर।
  3. जानवर का अनुवांषिक विकास के आधार पर आंकलन।

जननांगों की जानकारी –
मादा जननांग –
अण्डाशय, अण्डनलिका, बच्चेदानी, ग्रीवा एवं योनि
नर जननांग – वृष्ण, वृष्णकोश एवं शिष्न।
यौवनावस्था एवं परिपक्वता –
बकरियों में यौवनावस्था उनकी नस्ल पर निर्भर करती है, जो कि नस्लानुसार अलग-अलग होती है। प्रायः देखा गया है कि बकरियाँ 6-8 माह उम्र तक यौवनावस्था के लक्षण दिखाने लगती हैं। किसानों को ध्यान में रखना चाहिए, कि इस दौरान समागम बकरी एवं बकरे दोनों के लिए नुकसानदेय हो सकता है। इसके साथ-साथ जनित बच्चा अविकसित एवं कमजोर तथा बीमारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होता है। इसके लिए जरुरी होता है कि बकरियों को पूर्णतया परिपक्व (12-18 माह) होने पर ही समागम हेतु प्रेरित किया जाय।
सामान्यतः प्रजनन के समय बकरी का वजन कुल वजन का दो तिहाई (2/3) होना चाहिए एवं अच्छी प्रजनन दर के लिए जनन अंतराल 8 माह से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

मद चक्र एवं ऋतुकाल – प्रकृति के अनुसार बकरियाँ किसी भी मौसम में गाभिन हो सकती हैं, क्यांेकि उनका मदचक्र साल भर चलता रहता है, जो कि 18-21 दिन का होता है। जैसे ही ऋतु बढ़ती है मद के लक्षण बढ़ते जाते है। ऋतुकाल प्रारंभ होने के 10-15 घण्टे के अंदर इन्हें बकरे के साथ मिलाकर समागम करवा दिया जाये तो गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है। जब बकरी एवं बकरों को साथ रखा जाता है तब उनका ऋतुकाल पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होती, परन्तु उनको अलग रखने पर ऋतुकाल को निम्न तरीके से पहचाना जा सकता है:-

  1. ऋतुकालिक बकरी द्वारा विशेष प्रकार की आवाज निकालना।
  2. लगातार पूँछ हिलाना, एवं बार-बार पेशाब करना
  3. चरने के समय इधर-उधर भागना
  4. घबरायी हुई रहना
  5. दुग्ध उत्पादन में कमी
  6. भगोष्ठ में सूजन एवं योनिद्वार में लालिमा
  7. नर या मादा का एक दूसरे के ऊपर चढ़ना।
  8. योनि से साफ, पतला एवं लसेदार द्रव निकलना।

ऋतु निर्धारण की तकनीकियाँ –

  1. बकरे के द्वारा
  2. कपड़ा बंधे हुए टीजर बकरे के द्वारा
  3. रंग लगे टीजर बकरे के द्वारा

नर मादा अनुपात – सामान्यतः यह देखा गया है कि 25 बकरियों पर 1 बकरा अनुपात बहुत अच्छी प्रजनन सफलता दर दर्शाता है।

प्रजनन के लिए उचित समय – प्रजनन शारीरिक विकास एवं उम्र के अनुसार ही होता है यदि प्रारंभ से ही अच्छी देखभाल एवं आहार की व्यवस्था की जायें तो 10-15 माह की उम्र में इनमें प्रजनन हो सकता है तथा 15-20 माह पूर्ण करने पर पहला बच्चा प्राप्त किया जा सकता है। अधिकतर यह देखने में आता है कि पशुपालक 6-7 माह की उम्र में बकरियों में गर्भाधान करा देते है जिससे इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर तो बढ़ता ही है, साथ ही साथ होने वाला बच्चा भी कमजोर होता हैैं। अच्छी देखभाल में यह पाया गया है कि बकरियों में 12-14 वर्ष तक प्रजनन क्षमता बनी रहती है।
प्रजनन की विधियाँ –
बकरियों में प्रजनन निम्न तरीकों से कराया जा सकता है –

प्राकृतिक तरीके से –
क. झुण्ड (फ्लाक) विधि – इस विधि में बकरियों के झुण्ड में 2-3 बकरे (1ः25) छोड़ दिये जाते है, जो कि प्राकृतिक तरीके से ऋतुकालिक बकिरियों के साथ समागम करते है।
ख. एकल (पैन) विधि – इस विधि में ऋतुकालिक बकरी को एक अलग बाडे़ में रखकर, बकरे के साथ समागम कराया जाता है।

  1. कृत्रिम तरीके से – इस विधि में ऋतुकालिक बकरी में कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है। कृत्रिम गर्भाधान में प्रयुक्त वीर्य दो प्रकार का होता है।
    1. हिमकृत वीर्य
    2. ताजा संग्रहित वीर्य
  1. गर्भित बकरी की पहचान – गाभिन बकरी को जल्दी से जल्दी पहचानकर उसे उसके समूह से अलग करना आवश्यक होता है ताकि उसका विषेष ध्यान रखा जा सकें। गर्भित बकरी की पहचान निम्न तरीके से की जा सकती है:-
  1. गाभिन बकरी के द्वारा गर्मी (मद) के लक्षण नहीं दिखाना।
  2. समय के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन में कमी
  3. गाभिन जानवर के वजन में वृद्धि
  4. पेट (गर्भाषय) को ऊपरी तौर पर दबाकर निरीक्षण करने से
  5. अल्ट्रासोनोग्राफी से
  6. दुग्ध, पेशाब एवं योनि कोशिकाओं आदि का प्रयोगशाला में निरीक्षण कर

गर्भित बकरी की देखभाल – बकरियों में गर्भकाल सामान्यतः पाँच माह का होता है।
गर्भावस्था के दौरान, गर्भकाल के अंतिम माह में दूध निकालना पूर्णतः बंद कर देना चाहिए तथा निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

  1. गभिन बकरी को समतल भूमि में रखना चाहिए।
  2. जिस स्थान में गाभिन बकरी को रखा गया हो वह गीला एवं फिसलन भरा नहीं होना चाहिए।
  3. गाभिन बकरी को अधिक दूरी तक (बिना आराम के) नहीं चलाना चाहिए।
  4. इन्हें अन्य जानवरों से अलग रखना चाहिए।
  5. बकरी को उचित मात्रा में हरा चारा तथा संतुलित आहार उपलब्ध कराना चाहिए।
  6. पीने के लिए स्वच्छ एवं ताजे जल की व्यवस्था करना चाहिए।

बकरियों में होने वाली जनन समस्याएँ –

  1. गर्भपात – पूर्णगर्भकाल के पहले ही गर्भ का गिर जाना।
    यह निम्न कारणों से हो सकता है।
  • संक्रमण के कारण (जीवाणु, विशाणु, प्रोटोजोआ एवं कवक जनित)
  • रसायन एवं जहरीले पौधो के निगलने एवं खाने से जैसे सायनाइड, स्वीट क्लोवर, अर्गट आदि।
  • हार्मोन जैसे प्रोजेस्टेरान की कमी से।
  • अन्य:
  • शारीरिक एवं मानसिक दबाव (स्ट्रेस)
  • बहुत अधिक दूरी तक (बिना विश्राम किये) परिवहन
  • आपस से लड़ना (भीड़-भाड़) एवं गिरना।
  • बच्चेदानी में दो से अधिक बच्चों का पाया जाना।
  • असंतुलित आहार (ऊर्जा, तांबा, विटामिन ‘ए‘, आयोडीन एवं सेलेनियम की कमी)।
  • वातावरणीय तापमान एवं आर्द्रता में अचानक परिवर्तन I

बच्चा फँस जाना (डिस्टोकिया) – गर्भकाल पूर्ण होने के पष्चात् भी बच्चा बाहर नहीं निकल पाता जो कि निम्न कारणों से होता है:-

  • अनुवांषिक कारण
  • पोषण एवं रखरखाव में अनियमितता
  • संक्रामक कारक
  • चोट के कारण
  • अन्यः गर्भाषय जड़त्व, बच्चे का गलत विन्यास आदि।
  • मातृ कारकः प्रजनन नलिका (ग्रीवा एवं योनि द्वार) का छोटा होना
  • छोटी पेल्विक ब्रिमा

नवजात कारक – नवजात का गलत जगह में होना, विन्यास गलत होना, बड़ा आकार एवं जुड़वा बच्चे होना।

लक्षण – धड़कन बढ़ी हुई, तापमान मंे वृद्धि, भग से तरल द्रव्य स्त्राव बच्चे के किसी शारीरिक भाग का जनन मार्ग से बाहर निकलना। बार-बार जोर लगाना आदि।
उपचार – कभी भी इसे स्वयं ठीक करने का प्रयास नहीं करना चाहिए बल्कि किसी प्रषिक्षित एवं अनुभवी पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए या निकटतम पशु चिकित्सालय में ले जाना चाहिए।

  1. जेर रुकना – बच्चा जनने के 8-12 घण्टे के बाद भी यदि जेर न निकले तो इसे जेर रुकना माना जाता हैं। गर्भपात वाली जानवरों में ज्यादा होता है। (ठण्ड में 12-24 घण्ठे)।

लक्षण – अपरा/जेर का लटकना।

  • शुरुआती दौर में बदबू न होना लेकिन बाद में बदबू आना।
  • जल्दी उपचार न होने पर भूख न लगना।
  • जानवर द्वारा जेर को बाहर निकालने की कोषिष करना।
  • दुग्ध उत्पादन में कमी एवं शारीरिक तापमान में वृद्धि।

उपचार – लटके हुए भाग को स्वयं न खींचकर पषु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। जानवर को पूर्ण निरीक्षण में रखे ताकि लटके हुए भाग को कुत्ते या खुद जानवर खा न सकें।

  1. भेली निकलना (प्रोलेप्स) –

बच्चेदानी, ग्रीवा व योनि का बाहर निकल आना।

  • यदि तुरंत ही भेली निकलती है तो यह गरम रहती है लेकिन समय बीतने के साथ-साथ यह ठंडी, कठोर एंव सूजन युक्त हो जाती है।
  • जानवर बैचेन रहता है।
  • दर्द, भूख न लगना, धड़कन बढ़ी हुई।

उपचार एवं प्रबंधन – निकले हुए भाग को अच्छी तरह साफ करके पशु चिकित्सक से संपर्क करें। कौंवो एवं कुत्तों से बचायें।

जानवर को कम भोजन दें, जोकि सुपाच्य हों।

  • जानवर को कम भोजन दें, जोकि सुपाच्य हों।
  • जानवर के पीछे की तरफ वाली जमीन थोड़ा ऊँची हो। निकले हुए भाग की ठण्डे पानी या बर्फ से सिंकाई करें।
  • फर्ष बहुत चिकना नही होना चाहिए।
  • प्रतिरक्षक (एन्टीसेप्टिक) से निकले भाग को धोयें एवं स्वच्छ कपडे़ से ढक दें।
  1. बच्चेदानी में मवाद –
    सामान्यतः यह बकरियों मंे संक्रमण के कारण होने वाली बीमारी है, जिसमें बच्चेदानी में मवाद बनने लगती है, इसके निम्नलिखित लक्षण होेते है।
  • पेट का फूला हुआ होना।
  • बदबूदार मवाद का योनिमार्ग से बाहर निकलना
  • शारीरिक तापमान में वृद्धि
  • भूख में कमी।
  • मद चक्र का न आना।/अनियमितता
    उपचार – उसके आस-पास के क्षेत्र को प्रतिरक्षक घोल से धुलना।
    पषु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए अन्यथा देरी करने पर जानवर मर भी सकता है।
  1. अमद – मद के लक्षण न दर्षाना एवं ऋतु चक्र का न आना।
    यह निम्न कारणों से हो सकता है:-
    उपचार –
  • समय पर पटाढ़ की दवा खिलाना
  • खनिज मिश्रण का सही अनुपात जानवर को खिलाते रहना।
  • इसके अलावा हार्मोन विधि से उपचार हेतु प्रषिक्षित पषु चिकित्सक से सलाह लेना।

7. बारंबार प्रजनक (रिपीट ब्रीडर) –

  • जानवर का बार-बार मद में आना।
  • सामान्यतः इसके कई कारण है लेकिन यह मुख्यतः निषेचन क्रिया के असफल होने या शीघ्र भू्रण मृत्यु के कारण होता है।

उपचार –

  • समागम या कृत्रिम गर्भाधान के बाद जानवर के पीठ पर ठंडा पानी डालना।
  • जानवर को आराम देना।
  • भग का मसलना।
  • हार्मोन्स उपचार के लिए प्रषिक्षित पषु चिकित्सक से सलाह लें।
  1. दुग्ध ज्वर – यह सामान्यतः बच्चा जनने के 4-6 सप्ताह पहले या ठीक बच्चा जनने के पष्चात देखी जाने वाली बीमारी है जिसके निम्न लक्षण होते है।
  • तापमान सामान्य से कम
  • जानवर चित्त पड़ा रहता है
  • सिर, पेट की तरफ मुड़ा रहता है
  • पेट फूल जाता है
  • जानवर अपने आप उठ नहीं पाता।

उपचार – यह सामान्यतः कैल्षियम की कमी से होने वाला रोग है जिसके लिए पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
इंजेक्षन केल्बोराल 150-200 मि.ली. नस में, टीनाकैल 2-5 मि.ली. मांस में।

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