राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)पशुपालन (Animal Husbandry)

भारत में ऊँटनी दूध उद्योग की संभावनाओं पर चर्चा, बीकानेर में आयोजित कार्यशाला

24 दिसंबर 2024, बीकानेर: भारत में ऊँटनी दूध उद्योग की संभावनाओं पर चर्चा, बीकानेर में आयोजित कार्यशाला – ऊँटों की घटती आबादी और ऊँटनी दूध उद्योग की संभावनाओं को सामने लाने के लिए, राजस्थान के बीकानेर में एक दिवसीय हितधारक कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2024 को अंतर्राष्ट्रीय कैमेलिड वर्ष घोषित किए जाने के तहत आयोजित की गई थी। इस कार्यक्रम का आयोजन मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने एफएओ और आईसीएआर-राष्ट्रीय ऊँट अनुसंधान केंद्र (एनआरसीसी) के सहयोग से किया।

कार्यशाला का उद्देश्य गैर-गोजातीय (ऊँट) डेयरी मूल्य श्रृंखला को मजबूत करना और इसमें शामिल चुनौतियों का समाधान तलाशना था। इसके तहत, ऊँटनी दूध के पोषण और चिकित्सीय गुणों, उत्पाद विकास, और ऊँटों की घटती आबादी को लेकर संवाद पर जोर दिया गया।

इस कार्यक्रम में राजस्थान और गुजरात के ऊँट पालकों, वैज्ञानिकों, सामाजिक उद्यमों, शिक्षाविदों और सरकारी अधिकारियों सहित 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें अमूल, सरहद डेयरी-कच्छ और लोटस डेयरी जैसी प्रमुख संस्थाओं के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के प्रतिनिधि भी शामिल हुए, जिनके ऊँट रेगिस्तानी क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं।

भारत में ऊँटनी दूध उद्योग की चुनौतियां और संभावनाएं

भारत में ऊँटों की आबादी में लगातार गिरावट आ रही है। डीएएचडी की सचिवसुश्री अलका उपाध्याय ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऊँटनी दूध की मूल्य श्रृंखला को मजबूत करना न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से आवश्यक है, बल्कि इससे ऊँटों के संरक्षण में भी मदद मिलेगी।

कार्यशाला में चर्चा के दौरान यह सामने आया कि ऊँटनी दूध अपने पोषण और चिकित्सीय गुणों के कारण वैश्विक बाजार में “सुपरफूड” के रूप में उभर सकता है। लेकिन इसके लिए बेहतर बुनियादी ढांचे, मानकीकरण और मूल्य निर्धारण तंत्र की आवश्यकता है।

मुख्य सुझाव और चर्चाएं

1.      ऊँटनी दूध का मानकीकरण और शोध– पशुपालन आयुक्त, डॉ. अभिजीत मित्रा, ने ऊँटनी दूध के पोषण और चिकित्सीय गुणों पर गहन शोध और नैदानिक ​​परीक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि ऊँटनी दूध में औषधीय गुण हैं, जो इसे बाजार में एक अद्वितीय उत्पाद बना सकते हैं।

2.      ऊँट संरक्षण और नस्ल विकास– ऊँटों की नस्लों के संरक्षण के लिए न्यूक्लियस ब्रीडिंग फार्म और ब्रीडर्स सोसाइटी की स्थापना पर जोर दिया गया। साथ ही, ऊँट पालन को बढ़ावा देने के लिए स्थायी चरागाह भूमि सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई।

3.      मूल्य संवर्धन और बाजार निर्माण– उद्यमियों ने मांग की कि सरकार शुरुआती चरणों में ऊँटनी दूध प्रसंस्करण के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करे। इससे ऊँटनी दूध उत्पादों को बाजार में पहचान मिल सकेगी।

4.      राज्य सरकार की भूमिका– राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग के सचिव, डॉ. समित शर्मा, ने बताया कि राज्य ऊँट संरक्षण के लिए पशु मेलों, ऊँट प्रतियोगिताओं, और पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और भविष्य की दिशा

एफएओ के भारत प्रतिनिधिश्री ताकायुकी हागिवारा, ने कहा कि भारत में गैर-गोजातीय दूध मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने के लिए डीएएचडी और अन्य हितधारकों के साथ साझेदारी की जा रही है। इसका उद्देश्य सतत विकास,खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका सुधार करना है।

कार्यशाला में यह भी सुझाव दिया गया कि ऊँटनी दूध के उत्पाद जैसे पाउडर, आइसक्रीम और अन्य पोषक उत्पाद विकसित किए जाएं, जिससे इसका बाजार विस्तार हो सके।

अंतर्राष्ट्रीय ऊँट वर्ष 2024 और भारत की भूमिका

कार्यशाला संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय ऊँट वर्ष 2024का हिस्सा थी। इस वर्ष का उद्देश्य ऊँटों के सांस्कृतिकपोषण और आर्थिक महत्व को पहचानना और उनकी भूमिका को प्रोत्साहित करना है। कार्यक्रम का नारा, रेगिस्तान और पहाड़ी इलाकों के नायक: लोगों और संस्कृति का संवर्धन करना,” ऊँटों के महत्व को उजागर करता है।

समावेशी और स्थायी विकास की ओर कदम

कार्यशाला ने ऊँटनी दूध उद्योग को एक समावेशी और प्रतिस्पर्धी बाजार के रूप में विकसित करने पर जोर दिया। इससे न केवल ऊँट पालन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि किसानों की आजीविका भी मजबूत होगी।

इस कार्यक्रम में एनआरसीसी, बीकानेर, और अन्य प्रमुख संस्थानों की भागीदारी ने इसे और भी प्रभावी बनाया। यह कार्यशाला भारत में ऊँटों के संरक्षण और ऊँटनी दूध के लिए एक विशेष बाजार बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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