महिलाओं ने किया पारंपरिक खेती को पुनर्जीवित
18 सितम्बर 2024, भोपाल: महिलाओं ने किया पारंपरिक खेती को पुनर्जीवित – जब पहाड़ के गांव-के-गांव खाली हो रहे थे, युवा और पुरुष रोजगार की तलाश में शहरों की ओर भाग रहे थे, अधिकांश गांवों में महिलाएं और बुजुर्ग ही बचे थे, खेती-किसानी उजड़ रही थी, तब हम महिला किसानों ने परिवार की जिम्मेदारी संभाली। पारंपरिक खेती को पुनर्जीवित किया। इस खेती से न केवल परिवार का भरण-पोषण किया, बल्कि उसके उत्पाद को बेचकर आर्थिक स्थिति भी मजबूत की। इस पूरी पहल में ‘श्रमयोग संस्था’ ने हमारी मदद की।” ये निर्मला देवी थीं, जो उत्तराखंड के गांव की महिला किसान और ‘रचनात्मक महिला मंच’ की अध्यक्ष हैं।
यहां की अधिकांश खेती पहाड़ी है। सीढ़ीदार खेत हैं, कुछ तराई वाले समतल खेत भी हैं। बारिश पर निर्भर यहां की खेती अधिकांश जैविक ही है। इसमें दलहन, तिलहन, अनाज, मसाले, रेशा, हरी सब्जियां और विविध तरह के फल-फूल शामिल हैं। इससे मनुष्यों को पौष्टिक अनाज, मवेशियों को फसलों के ठंडल और भूसे से चारा मिलता है। धरती को जैविक खाद से पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं। इससे मिट्टी बचाने का भी जतन होता है। मिश्रित फसलों की पारंपरिक पद्धति को ‘बारहनाजा’ कहा जाता है।
इस सबके बीच यहां के कुछ युवाओं ने ‘श्रमयोग संस्था’ का गठन किया है जिसके माध्यम से ग्रामीणों के साथ मिलकर पर्यावरण और जैव-विविधता को सहेजने की कोशिश की है। महिलाओं के साथ मिलकर पारंपरिक खेती को फिर से बहाल किया है। रोजगार और आमदनी बढ़ाने का काम किया है। संस्था के अजय कुमार बताते हैं कि वे और शंकर दत्त, ‘लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून’ में काम करते थे। वर्ष 2011 में हमने ‘श्रमयोग संस्था’ की शुरुआत की और अल्मोड़ा जिले के सल्ट विकासखंड के गांवों में काम करने का तय किया। गांव-गांव में बैठक की और पाया कि बड़ी संख्या में पलायन से गांव खाली हो गए हैं। रोजगार की तलाश में लोग दिल्ली, लुधियाना और मुंबई चले गए हैं। अधिकांश गांवों में महिलाएं ही रहती हैं। हमने उनके साथ मिलकर खेती को फिर से खड़ा करने का फैसला किया। संस्था का मुख्य कार्यालय सल्ट विकासखंड के हिनौला में है।
वे बताते हैं कि वर्ष 2013 में 15 गांवों में अध्ययन यात्रा की गई। यह यात्रा पंचायत राज व्यवस्था के अध्ययन के लिए की गई थी। हमने इस दौरान पाया कि पंचायत राज व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब है। इसलिए हमने गांवों के लोगों के साथ मिलकर तय किया है कि हम ‘श्रम, जन स्वराज अभियान’ चलाएंगे जिसके तहत पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करेंगे। इसकी खामियों को सरकार तक पहुंचाएंगे। गांवों में संगठन बनाएंगे। आपसी समझ बनाने के लिए विचारों का आदान-प्रदान करेंगे। इस यात्रा में समझ आया कि प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा मिलकर ही की जा सकती है।
सल्ट क्षेत्र हल्दी और पीली मिर्च के लिए मशहूर रहा है, लेकिन अन्य फसलें घाटे की रही हैं। इसलिए सबसे पहले हल्दी, पीली मिर्च और अदरक की खेती पर जोर दिया गया। इसके अलावा, दालें, मसूर, उड़द, गहथ, भंगजीर, जख्या, काला भट्ट, धनजीरा की खेती भी की गई। सब्जियों में ओगल, मूली, राई, धनिया, पालक, बैंगन, भिंडी, छिमी, कद्दू, चिचिंडा, बिन इत्यादि उगाए गए। ‘श्रमयोग संस्था’ ने महिला किसानों के उत्पाद को उचित दाम मिलें, यह सुनिश्चित किया। हल्दी के अलावा, मंडुवा, दालें, जख्या इत्यादि को वैकल्पिक बाजार से जोड़ा है। स्थानीय बाजार के अलावा दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, देहरादून जैसे महानगरों में यहां के श्रम उत्पाद बेचे जाते हैं। प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख रुपयों की खरीद-बिक्री होती है।
कुल मिलाकर, ‘श्रमयोग संस्था’ और ‘रचनात्मक महिला मंच’ की पहल से उत्तराखंड के पहाड़ी गांवों में खेती फिर से बहाल हुई है, महिला किसानों ने खेती से आमदनी बढ़ाई है, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर भी जागरूकता आई है। महिलाओं ने गांव से लेकर मुख्यमंत्री के सामने तक अपनी आवाज उठाई, तालाबंदी में भी प्रवासी मजदूरों की मदद की। महिलाओं की एकता व संगठन ने उन्हें नई पहचान दी। उन्होंने अपने दुख-सुख आपस में बांटे और एक दूसरे को हिम्मत दी। नई पीढ़ी को भी पर्यावरण से जोड़ा। इस तरह की पहल से हिमालय में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से भी कुछ हद बचा जा सकता है।
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