राज्य कृषि समाचार (State News)

प्राचीन शास्त्रों में भी मिलता है वैदिक खेती का उल्लेख, इसलिए अपना रहे है किसान

21 जनवरी 2025, भोपाल: प्राचीन शास्त्रों में भी मिलता है वैदिक खेती का उल्लेख, इसलिए अपना रहे है किसान – वैदिक खेती का उल्लेख हमारे भारतीय प्राचीन शास्त्रों में भी मिलता है वहीं देश के अधिकांश किसानों द्वारा भी अन्य उपज के साथ वैदिक खेती कर लाभ कमाया जा रहा है।

वैदिक खेती की उत्पत्ति ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद से होती है, जो वैदिक साहित्य का मूल हैं। वैदिक खेती एक पारंपरिक कृषि पद्धति नहीं, बल्कि ये एक समग्र प्रणाली है जो प्राचीन भारतीय शास्त्रों, वेदों, की शिक्षाओं को कृषि ढांचे में एकीकृत करती है। ये शास्त्र, जो हजारों साल पुराने हैं, भूमि के पोषण, प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन, और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के माध्यम से उत्पादकता को बढ़ाने पर ज़रूरी ज्ञान देते हैं। वैदिक प्रणाली का लक्ष्य सिर्फ़ फसल उत्पादन को बढ़ाना नहीं है, बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखना, जैव विविधता का संरक्षण करना और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करना है।  ये ग्रंथ 1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व के बीच रचे गए थे और वैदिक दर्शन, विज्ञान और संस्कृति के आधार हैं। इन ग्रंथों में कृषि गतिविधियों, जैसे मिट्टी की तैयारी, फसल प्रबंधन और औषधीय जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल का खाका बताया गया है।

 उपयोग की सलाह देते हैं

मिट्टी की तैयारी: वेद प्राकृतिक तत्वों के हिसाब से मिट्टी की तैयारी की ज़रूरत और महत्व पर जोर देते हैं और गोबर व औषधीय जड़ी-बूटियों जैसे प्राकृतिक इनपुट के उपयोग की सलाह देते हैं।  बुवाई और फसल प्रबंधन: ग्रंथ शुभ काल में बुवाई, विशेष मंत्रों के माध्यम से पौधों के तनाव को कम करने और बीज के अंकुरण को बेहतर बनाने का सुझाव देते हैं।  औषधीय जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल: वेदों में अश्वगंधा, तुलसी, और नीम जैसी कई जड़ी-बूटियों का उल्लेख है, जिनका उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाने और कीट नियंत्रण के लिए किया जाता था। ये रासायनिक कीटनाशकों के आगमन से पहले प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में होती थीं।

प्राचीन भारतीय ग्रंथों में उल्लेख

ऋग्वेद: इसमें खेतों की तैयारी, जुताई, बुवाई और निराई की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है, साथ ही अच्छी फसल के लिए प्रकृति के तत्वों का आह्वान किया गया है।
यजुर्वेद: इसमें प्राकृतिक तरीकों से मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और मिट्टी व फसल के स्वास्थ्य को बढ़ाने में अनुष्ठानों और मंत्रों की भूमिका का वर्णन है।
सामवेद और अथर्ववेद: ये ग्रंथ बीज संरक्षण, कीट प्रबंधन और पारिस्थितिक संतुलन के समग्र रखरखाव के बारे में बताते हैं, जिससे किसानों को सूर्य और चंद्रमा के प्राकृतिक चक्रों का पालन करने की सलाह दी जाती है। 

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