सोयाबीन फसल प्रबंधन
खेत की तैयारी
रबी की फसल काटने के बाद खेत की गहरी जुताई (20 से 30 से.मी.) कर मृदा को गर्मी की धूप लगने के लिए खुला छोड़ दें। ऐसा करना प्रत्येक वर्ष संभव न होने की स्थिति में यह क्रिया 2 या 3 वर्ष में एक बार अवश्य करें। इससे तेजू धूप में खरपतवार, कीट, व्याधि के प्रबंधन में सहायता मिलती है। साथ ही वर्षा के जल को भूमि में समाहित कर संचय में सुविधा होती है। बोवनी के पूर्व कल्टीवेटर या बखर को दो बार विपरीत दिशा में चलाने के पश्चात पाटा लगाकर खेत को समतल कर दें। उत्पादन में निरन्तर टिकाऊपन लाने हेतु यह आवश्यक है कि गोबर या अन्य कार्बनिक खाद को रसायनिक उर्वरकों के साथ उपयोग में लाया जाए। अत: अंतिम बखरनी के पूर्व पूर्ण रूप से पकी हुई गोबर की खाद (5 से 10 टन/हे.) या मुर्गी की खाद 2.5 टन प्रति हैक्टे. की दर से फैला दें एवं पाटा चलाकर समतल कर दें। अगर गोबर खाद की उपलब्धता सीमित हो तो खेत को भागों में बांटकर बारी-बारी से डालें।
उपयुक्त किस्मों का चयन
कृषकों को सलाह है कि वे हमेशा 3-4 किस्मों की खेती करें। इससे बुआई, कटाई व अन्य सस्य क्रियाओं के लिए पर्याप्त समय मिलता है तथा फसल प्रबंधन संतोषजनक होता है। कीटों व बीमारियों का प्रकोप भी अपेक्षाकृत कम होता है तथा फलियों के चटकने से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। सोयाबीन की विभिन्न अनुशंसित एवं लोकप्रिय प्रजातियों के गुणों की जानकारी तालिका 1 में दी गई है। कृषक अपने पास उपलब्ध बीज का अंकुरण-परीक्षण बौवनी से पहले ही सुनिश्चित कर ले कि यह कम से कम 70 प्रतिशत है। अंकुरण परीक्षण हेतु 10-10 मीटर की क्यारी सिंचाई कर तैयार कर ले। कतारों में 45 से.मी. की दूरी पर बीज बोये तथा अंकुरण के बाद स्वस्थ पौधों को गिने। यदि 100 में से 70 से अधिक पौधे अंकुरित हों तो बीज उत्तम है। अंकुरण क्षमता का परीक्षण थाली में गीला रखकर अथवा गीले थैले पर बीज उगाकर भी किया जा सकता है।
सोयाबीन की प्रमुख किस्म
एनआरसी 7, एनआरसी 37, एनआरसी 86, जे.एस. 335, जे.एस. 95-60, जेएस 20-34, जे.एस.20-69,जे.एस.-93-05, जेएस 20-29, जे.एस.97-52 आरवीएस 2001-4
बीजोपचार –
बोवनी से पहले सोयाबीन के बीज को अनुशंसित फफूंदनाशक थाइरम एवं कार्बेन्डाजिम (2:1) 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से अथवा मिश्रित उत्पाद कार्बोक्सिन थाइरम (विटावेक्स पावर)2-3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। इनके स्थान पर बीज उपचार हेतु जैविक कवकनाशी ट्राइकोडर्मा विरिडी (8-10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज) का भी उपयोग किया जा सकता है। इन कवकनाशियों द्वारा उपचारित बीज को छाया में सुखाने के पश्चात जीवाणु खाद से (ब्रेडीराइजोबियम कल्चर एवं पीएसबी कल्चर प्रत्येकी 5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से) उपचारित कर छाया में सुखाकर तुरन्त बोने में उपयोग करना चाहिये। अपरंपरागत या नये क्षेत्रों में सोयाबीन की खेती शुरू करने पर जीवाणु खाद की मात्रा दुगुनी से तिगुनी कर (10-15 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से) बीजोपचार करना चाहिये। यह ध्यान रखे कि कवकनाशियों द्वारा बीजोपचार के पश्चात ही जीवाणु कल्चर/खाद द्वारा बीजोपचार करना चाहिये। साथ हीकल्चर व कवकनाशियों को एक साथ मिलाकर कभी भी उपयोग में नहीं लाना चाहिये। उपयुक्त जीवाणु कल्चर की बोवनी के समय पर विश्वसनीय स्थान से ही प्राप्त कर ठंडी जगह पर रखें।
सोयाबीन में समेकित पोषण प्रबंधन
मध्य क्षेत्र में सोयाबीन की समुचित उत्पादन के लिये 25 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. स्फुर, 40 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. गंधक की मात्रा अनुशंसित की गई है। अत: यह आवश्यक है कि इस मात्रा का समायोजन मृदा विश्लेषण के आधार पर करें जिससे फसल को संतुलित पोषण मिल सके। सोयाबीन की फसल हेतु उर्वरकों का उपयोग केवल बोवनी के समय अनुशंसित है अत: खड़ी फसल में उर्वरकों का प्रयोग अवांछनीय होगा। उपर्युक्त संस्तुतित पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु उर्वरकों की आवश्यक मात्रा तालिका 2 में दी गई है। कृषकों को यह भी सलाह है कि बीज और खाद कभी भी मिलाकर बोवनी नहीं करें। इससे बीज सडऩे का खतरा रहता है। संभव हो तो उर्वरकों को फर्टी-सीड-ड्रील द्वारा बीज से 5 से.मी. की दूरी पर एवं 3 से.मी. नीचे डाले।
बोवनी का समय
अनुसंधान परीक्षणों के आधार पर साधारणत: सोयाबीन की बोवनी हेतु जून माह की आखिरी सप्ताह से जुलाई महीने के पहले सप्ताह का समय उचित है। बोवनी से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि जमीन में पर्याप्त नमी है। मानसून के आगमन के पश्चात लगभग 10 से.मी. की वर्षा होने के पश्चात अंकुरण एवं पौधे के विकास के लिये जमीन में पर्याप्त नमी हो जाती है। अच्छे अंकुरण क्षमता वाली (न्यूनतम 70 प्रतिशत) चयनित सोयाबीन की किस्मों के बीज को उपचारित कर बोवनी करें। कृषकों को सलाह है कि बीज और खाद कभी भी मिलाकर बोवनी नहीं करें। इससे बीज सडऩे का खतरा रहता है।
लाईन से लाईन तथा पौधों की दूरी
सोयाबीन की बोवनी 45 से.मी. लाइन से लाइन की दूरी पर बीबीएफ/रीज फरो/ट्रेक्टर चलित सीड-ड्रील का उपयोग करते हुए बीज को 2.5 से 3 से.मी. की गहराई पर करें तथा पौधे से पौधे की दूरी 4-5 से.मी. रखें। मानसून में देरी के कारण बोवनी में विलम्ब होने की स्थिति में जल्दी पकने वाली किस्मों का उपयोग करें एवं लाइन से लाइन की दूरी घटाकर 30 से.मी. रखे तथा बीज दर बढ़ाकर बोवनी करें।
बीज दर –
मध्यम आकार के दाने वाली सोयाबीन की किस्में जैसे जेएस335, जेएस 93-05 के लिये बीज दर 60-65कि.ग्रा./है तथा बड़े आकार के दाने वाली किस्में जैसे जेएस 95-60, एनआरसी 7 आदि के लिये बीज दर लगभग 80 कि.ग्रा./हैक्टे. रखें अच्छा अंकुरण तथा छोटे आकार के दाने वाली किस्में जैसे एनआरसी 37, जेएस 97-52 आदि के लिये बीज दर केवल 50 कि.ग्रा./हैक्टे. रखें
सोयाबीन फसल प्रबंधन
सोयाबीन को अंतरवर्तीय फसल के रूप में उगाना अधिक लाभकारी है। असिंचित क्षेत्रों में जहां रबी की फसल लेना संभव नहीं हो वहां सोयाबीन – अरहर की खेती करें। अन्य क्षेत्रों में सोयाबीन के साथ मक्का, ज्वार, कपास, आदि फसलों की काश्त की जा सकती है। इसके लिये 4:2 के अनुपात में सोयाबीन व अंतरवर्तीय फसल को 30 से.मी. की लाइन से लाइन की दूरी पर बोवनी करें। इसी प्रकार फल बागों के बीच की खाली जगह में भी सोयाबीन की खेती की जा सकती है। अंतरवर्तीय फसलों की साथ-साथ बोवनी के लिये ट्रैक्टर चलित सीडड्रिल का प्रयोग भी किया जा सकता है।
सोयाबीन के बेहतर उत्पादन के लिए जरुरी उपाय