राज्य कृषि समाचार (State News)

प्राकृतिक खेती की मंथर गति, सरकार बनाए नई नीति

  • (विशेष प्रतिनिधि)

22 मई 2023, इंदौर (कृषक जगत) । प्राकृतिक खेती की मंथर गति, सरकार बनाए नई नीति – यह गर्व करने वाली बात है कि मप्र में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं, इसी कारण दूसरे प्रदेशों की तुलना में मप्र में सबसे ज्यादा जैविक खेती होती है। जैविक खेती करने वाले किसान भी बढ़ रहे हैं, इसके बावजूद यहाँ जैविक खेती के रकबे की गति धीमी है। किसानों ने इसका मुख्य कारण जैविक कृषकों को सरकार की ओर से कोई प्रोत्साहन अथवा अनुदान राशि नहीं दी जाना बताया है। जैविक खेती में समय पर मजदूर न मिलना बड़ी समस्या है। इसके अलावा गुणवत्तायुक्त उत्पाद होने के बाद भी जैविक किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए पृथक से बाज़ार उपलब्ध नहीं होने से उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। जैविक खेती में धीरे-धीरे उत्पादन बढ़ता है, इसलिए कई किसान धैर्य नहीं रख पाते और अधिक उत्पादन के लिए पुन: रासायनिक खेती ओर उन्मुख हो जाते हैं। जब तक सरकार रासायनिक कृषकों की भांति जैविक कृषकों को आर्थिक सहायता और अलग बाजार की व्यवस्था की नई नीति नहीं बनाएगी, तब तक इसकी गति में तेजी आना सम्भव नहीं है।

जैविक किसानों की व्यथा

पांच साल से जैविक खेती कर रहे ग्राम छोटी कसरावद जिला खरगोन के जैविक कृषक श्री महेंद्र सिंह मंडलोई ने कृषक जगत को बताया कि जैविक खेती करने वाले किसानों को सरकार गुमराह कर रही है। सरकार जिस तरह से रासायनिक खेती करने वाले किसानों के लिए खाद-बीज में अनुदान देती है, वैसा प्रोत्साहन जैविक कृषकों को नहीं देती है। हाल ही में सरकार ने इन किसानों का सहकारी समितियों का दो लाख तक के ऋण ब्याज को माफ़ किया है, लेकिन जैविक कृषकों के लिए कुछ नहीं किया। जैविक उत्पाद, रासायनिक उत्पादों की तुलना में अधिक गुणवत्ता वाले होते हैं, लेकिन दोनों एक ही भाव बिकते हैं, क्योंकि जैविक उत्पादों को बेचने के लिए अलग से कोई व्यवस्था ही नहीं है। वहीं ग्राम भोंडवास जिला इंदौर के जैविक कृषक श्री जीवन सिंह परमार ने कृषक जगत को बताया कि जैविक कृषकों के सामने मुख्य समस्या सरकार की ओर से प्रोत्साहन नहीं मिलना है। जैविक कृषकों को कोई सरकारी आर्थिक सहायता नहीं दी जाती है। गुणवत्तायुक्त उत्पाद होने के बावजूद बाज़ार  में उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। शुरुआत में घर का ही बीज लेकर उसे हर साल बोते हैं, लेकिन जैविक बीज बैंक का अभाव खलता है। शुरुआत में जैविक खेती में उत्पादन कम मिलता है, तो लाभ भी कम होता है। कई किसान दो-तीन साल तक धैर्य नहीं रख पाते हैं और अधिक उत्पादन की चाहत में पुन: रासायनिक खेती का रुख कर लेते हैं। जैविक किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या मजदूरों की है। चूँकि इस खेती में रासायनिक दवाइयों का प्रयोग नहीं किया जाता, इसलिए खरपतवार हटाने, फसल कटाई और अन्य कार्यों में मजदूरों की जरूरत पड़ती है, जो समय पर उपलब्ध नहीं होते हैं। यह सबसे बड़ी बाधा है।

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जैविक खेती का भविष्य उज्जवल है, लेकिन जागरूकता का अभाव है। जबकि ग्राम सिमरोल जिला इंदौर के उन्नत जैविक कृषक जितेंद्र पाटीदार ने कृषक जगत को बताया कि सरकार रासायनिक खाद पर सरकार 50 प्रतिशत अनुदान दे रही है, जबकि जैविक किसानों को कुछ नहीं देती है। सरकार को गोबर खाद पर सब्सिडी और हरी खाद का बीज उपलब्ध करवाना चाहिए। गौपालन पर 900 रुपए प्रति माह देने की सरकार की नीति से गौपालक किसानों को कोई लाभ नहीं होने वाला है। ये इस महत्वपूर्ण अभियान को लक्ष्य तक पहुंचाने में कोई मदद नहीं करेगा। यह ऊंट के मुंह में जीरा है। जैविक उत्पादों को बेचने के लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए। सुझाव है कि इंदौर में चयनित जैविक किसानों को जहाँ आवागमन सुगम हो, वहां स्थान उपलब्ध करवाना चाहिए, ताकि जैविक उत्पादक, उपभोक्ताओं को सस्ता गुणवत्तायुक्त अनाज, सब्जियां और अन्य सामान बेच सके। जैविक किसानों को मजदूरी की समस्या रहती है, अत: सरकार को इन्हें छोटे कृषि यंत्र देने के अलावा ब्लॉक स्तर पर प्रोसेसिंग केंद्र भी खोलना चाहिए, जहाँ किसानों को अपनी उपज का प्रोसेसिंग के बाद अच्छा दाम मिल सके।

जैविक खेती के नियम और शर्तें

उल्लेखनीय है कि मप्र में 2001 से जैविक खेती ग्राम पंचायत स्तर पर शुरू हुई थी। जैविक खेती में रासायनिक उर्वरक या कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता। गोबर और गौ-मूत्र से तैयार जैविक खाद का ही प्रयोग करना होता है। इसके लिए देसी बीज का ही प्रयोग करने,पहले साल,जो बीज बोया हो, उसे ही आगे भी बोने के अलावा भी कई अनिवार्यता होती है। तय मानक के मुताबिक बहुवर्षीय फसलों में 36 महीने और मौसमी फसलों में 24 महीने बाद का उत्पाद जैविक कहलाता है। जैविक खेती से पहले उसका मप्र स्टेट ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेंसी से प्रमाणीकरण कराना जरूरी होता है। इसके बाद ही किसान अपने उत्पाद विदेशों में निर्यात कर सकते हैं। न्यूनतम 4 हेक्टेयर खेती करने वाले किसान पंजीयन करा सकते हैं। इससे छोटे किसान 25 या 500 लोगों का समूह बनाकर समूह पंजीयन करा सकते हैं।

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जैविक किसानों को मदद करे सरकार

यदि जैविक खेती को राज्य में सफल बनाना है तो  सरकार को जैविक किसानों को कई तरह से मदद करनी पड़ेगी। सरकारी स्तर पर गो मूत्र, गोबर की खरीदी, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी, जैविक उत्पाद बाज़ार की स्थापना, ब्लॉक  स्तर पर प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना, गोपालन में आम लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन राशि का वितरण, उत्पादों की गुणवत्ता की जांच के लिए राज्य स्तरीय प्रयोगशाला की स्थापना, जैविक आधारित लघु उद्योग को प्रोत्साहन और खरपतवार नियंत्रण के लिए जैविक तरीका खोजे जाने जैसे अनेक कार्यों के लिए नीति बनाने की सख्त जरूरत है। तभी जैविक खेती की दशा और दिशा दोनों बदलेगी।

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