राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

प्राकृतिक रबर पर सरकार की नई नीति: घरेलू उत्पादकों को मिलेगी सुरक्षा और राहत

31 जुलाई 2024, नई दिल्ली: प्राकृतिक रबर पर सरकार की नई नीति: घरेलू उत्पादकों को मिलेगी सुरक्षा और राहत – प्राकृतिक रबर की कीमतें अब खुले बाजार की मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होती हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार के उतार-चढ़ाव का प्रभाव भी घरेलू बाजार पर पड़ता है। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, सरकार ने प्राकृतिक रबर के आयात पर शुल्क को बढ़ाते हुए नए नियम लागू किए हैं। 30 अप्रैल 2015 से सूखे रबर के आयात पर शुल्क को 20 प्रतिशत या 30 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़ाकर 25 प्रतिशत या 30 रुपये प्रति किलोग्राम कर दिया गया है, जो भी कम हो।

इसके साथ ही, सरकार ने अग्रिम लाइसेंसिंग योजना के अंतर्गत आयातित सूखे रबर के उपयोग की अवधि को 18 महीने से घटाकर 6 महीने कर दिया है। इसके अलावा, जनवरी 2016 से प्राकृतिक रबर के आयात के लिए केवल चेन्नई और न्हावाशेवा बंदरगाहों का ही उपयोग किया जा सकता है। 2023-24 के केंद्रीय बजट में कंपाउंड रबर पर सीमा शुल्क की दर को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है, जिससे घरेलू उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने में मदद मिलेगी।

हालांकि, प्राकृतिक रबर को कृषि उत्पाद नहीं माना जाता है, लेकिन इसकी खेती को कृषि गतिविधि के रूप में देखा जाता है। इसके बावजूद, रबर की खेती से प्राप्त आय को कृषि आय के रूप में नहीं गिना जाता क्योंकि यह औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग होता है।

कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री रामनाथ ठाकुर ने लोकसभा में बताया कि मौजूदा मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों (आरटीए) में रबर उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए प्राकृतिक रबर को बहिष्करण सूची में रखा गया है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि घरेलू उत्पादक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के बीच भी सुरक्षित रह सकें।

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