जीरे की फसल में नियमित छिड़काव व सिंचाई प्रबंधन से होगा रोगों से बचाव
16 फरवरी 2023, पोकरण: जीरे की फसल में नियमित छिड़काव व सिंचाई प्रबंधन से होगा रोगों से बचाव – कृषि विज्ञान केंद्र पोकरण में कृषि वैज्ञानिकों ने शहर के निकटवर्ती बिलिया, पोकरण आंचलिक, मालियों का बास इत्यादि क्षेत्रों का भ्रमण करके फसलों का निरीक्षण किया। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक बलवीरसिंह ने बताया कि किसान जीरा, चना, सरसों, अरंडी, रायडा इत्यादि फसलों से उत्पादन ले रहे है ।

जिनमें उचित मात्रा में खाद, फॉस्फोरस के लिए सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग व उचित दूरी के साथ साथ खरपतवार नियत्रण की आवश्यकता बताई। उन्नत तकनीकों के प्रयोग द्वारा जीरे की वर्तमान उपज को 25-30 प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। केंद्र के सस्य वैज्ञानिक डॉ के जी व्यास ने बताया कि वर्तमान में मौसम में हो रहे परिवर्तन को देखते हुए जीरे में विभिन्न प्रकार के रोग आने की संभावना है। जीरे की फसल में होने वाले एफिड, उखटा, झुलसा व छाछया रोग में लक्षण दिखते ही किसान को उपचार करना चाहिए । एफिड कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल. की मात्रा 200 मिलीलीटर या एसीफेट की 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए। जीरे की फसल में फूल आने के पश्चात बादल होने पर झुलसा रोग लगता है जिसके कारण पौधों का उपरी भाग झुक जाता है तथा पत्तियों व तनों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं जिसके प्रबंधन हेतु मेन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। केंद्र के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ राम निवास ने सलाह दी की खेत में ग्रीष्म ऋतु में जुताई करनी चाहिए एवं एक ही खेत में लगातार जीरे की फसल नहीं उगानी चाहिए। खेत में उखटा रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2.5 किग्रा ट्राईकोडर्मा की 100 किलो कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए तथा हल्की सिंचाई करनी चाहिए। जीरे में फसल पकाव पर आने के बाद किसानों को सिंचाई बंद कर देनी चाहिए । क्षेत्र भ्रमण के दौरान प्रसार विशेषज्ञ सुनील शर्मा ने किसानों को रस चुसक कीटो से अधिक सतर्कता की आवश्यकता बताई ताकि इनसे होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया करके उत्पादन में बढवार की जा सके ।
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