स्वास्थ्यवर्द्धक तो है ही मुनाफे के लिहाज से भी अच्छी दलहनी फसल है राजमा
05 मई 2025, भोपाल: स्वास्थ्यवर्द्धक तो है ही मुनाफे के लिहाज से भी अच्छी दलहनी फसल है राजमा – राजमा की सब्जी हो या फिर चावल के साथ राजमा खाने का चलन….हर कोई राजमा खाना चाहता है क्योंकि देश में शाकाहारी भोजन में राजमा प्रमुख रूप से शामिल होने लगा है. राजमा न केवल स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक है वहीं इसकी खेती करना मुनाफे के लिहाज से भी अच्छी मानी जाती है. यही कारण है कि किसान राजमे की खेती करने में भी अब रुचि लेने लगे है.
हालांकि राजमा की खेती परंपरागत ढंग से देश के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है, पर इस फसल की नवीनतम प्रजातियों के विकास के बाद इसे उत्तरी भारत के मैदानी भागों में भी सफलतापूर्वक उगाया जाने लगा है. थोड़ी जानकारी व सावधानी इस फसल में रखना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसल जहां एक ओर दूसरी दलहनी फसलों के बजाय सर्दियों के प्रति अधिक संवेदी है, तो वहीं दूसरी ओर इस की जड़ों में नाइट्रोजन एकत्रीकरण की क्षमता भी कम पाई जाती है.
उन्नतशील प्रजातियां
- तराई एवं भावर- फरवरी का प्रथम पखवाड़ा जायद में एवं अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा रबी में।
- पर्वतीय क्षेत्र- जून का द्वितीय पखवाड़ा खरीफ में।
- बीज की मात्रा – 75-80 किग्रा. प्रति हैक्टर।
राजमा में प्रजातियां जैसे कि पीडीआर 14, इसे उदय भी कहते है। मालवीय 137, बीएल 63, अम्बर, आईआईपीआर 96-4, उत्कर्ष, आईआईपीआर 98-5, एचपीआर 35, बी, एल 63 एवं अरुण है।
- राजमा के बीज की मात्र 120 से 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगती है। बीजोपचार 2 से 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की मात्र के हिसाब से बीज शोधन करना चाहिए।
- राजमा की बुआई लाइनों में करनी चाहिए
लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंट मीटर रखते है, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते है। इसकी बुआई 8 से 10 सेंटीमीटर की गहराई पर करते हैं।
खाद एवं उर्वरक
राजमा के लिए 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना आवश्यक है। नेत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय तथा बची आधी नेत्रजन की आधी मात्रा खड़ी फसल में देनी चाहिए। इसके साथ ही 20 किलोग्राम गंधक की मात्रा देने से लाभकारी परिणाम मिलते है। 20 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव बुवाई के बाद 30 दिन तथा 50 दिन में करने पर उपज अच्छी मिलती है।
सिंचाई
राजमा में 2 या 3 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। बुआई के 4 सप्ताह बाद प्रथम सिंचाई हल्की करनी चाहिए। बाद में सिंचाई एक माह बाद के अंतराल पर करनी चाहिए खेत में पानी कभी नहीं ठहरना चाहिए।
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