राज्य कृषि समाचार (State News)

राजस्थान: एमपीयूएटी ने एक साथ छह 6 बीज उत्पादक कंपनियों से किया समझौता, मक्का किसानों को होगा सीधा लाभ

13 सितम्बर 2024, उदयपुर: राजस्थान: एमपीयूएटी ने एक साथ छह 6 बीज उत्पादक कंपनियों से किया समझौता, मक्का किसानों को होगा सीधा लाभ – महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) ने मक्का बीज उत्पादन में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए एक साथ 6 बीज उत्पादक कंपनियों के साथ सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की प्रजाति ‘प्रताप संकर मक्का-6’ के प्रजनक बीजों के उत्पादन और वितरण को लेकर हुआ है।

इस ऐतिहासिक समझौते में गुजरात की इन्डो यू.एस. बायोटेक, आंध्रप्रदेश की चक्रा सीड्स, सम्पूर्णा सीड्स, श्री लक्ष्मी वैंकटश्वर सीड्स, मुरलीधर सीड्स कॉर्पोरेशन और तेलंगाना की महांकालेश्वरा एग्रीटेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां शामिल हैं। यह पहली बार है कि विश्वविद्यालय ने एक समय में इतने बड़े पैमाने पर बीज उत्पादक कंपनियों से समझौता किया है।

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प्रताप संकर मक्का-6 की खासियतें

एमपीयूएटी के कुलपति, डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि प्रताप संकर मक्का-6 की उपज 62 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और अनुकूल परिस्थितियों में यह उपज इससे भी अधिक हो सकती है। यह किस्म न केवल मक्का दानों के लिए बल्कि चारे के रूप में भी उपयोगी है। विश्वविद्यालय बीज उत्पादक कंपनियों को इस किस्म के प्रजनक बीज 40,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से उपलब्ध कराएगा, जिसके एवज में कंपनियां 2.5 लाख रुपये और 4% रॉयल्टी का भुगतान करेंगी।

कुलपति ने यह भी बताया कि मक्का का उपयोग मुर्गीपालन, स्टार्च उत्पादन और ईथेनॉल निर्माण जैसे उद्योगों में तेजी से बढ़ रहा है। ईथेनॉल का उपयोग पेट्रोल और डीजल के साथ मिलाकर ग्रीन ईंधन के रूप में किया जा रहा है, जो पर्यावरण के अनुकूल है और भविष्य के लिए ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकता है।

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अनुसंधान निदेशक, डॉ. अरविंद वर्मा ने बताया कि प्रताप संकर मक्का-6 का देशभर में 22 केंद्रों पर परीक्षण किया गया, जहां इसने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की। इस किस्म को पंतनगर में हुई अखिल भारतीय समन्वित मक्का अनुसंधान परियोजना की 66वीं बैठक में स्वीकृति मिली और यह राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात के लिए उपयुक्त पाई गई है।

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प्रताप संकर मक्का-6 के प्रजनक, डॉ. आर. बी. दुबे ने बताया कि यह किस्म जल्दी पकने वाली, पीले और बोल्ड दाने वाली है और यह सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में उपयुक्त है। यह तना सड़न, सूत्रकृमि और तना छेदक कीट जैसी बीमारियों के प्रति रोगरोधी है। इसके अलावा, फसल कटने के बाद भी इसका पौधा हरा रहता है, जिससे उच्च गुणवत्ता का चारा (साइलेज) तैयार होता है।

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