राज्य कृषि समाचार (State News)

जैविक खेती पर्यावरण संक्षरण में सहायक

लेखक: अजय कुमार सिंघई, उच्च माध्यमिक शिक्षक, सीएम राइज शास.मॉडल उच्च. माध्य . वि. जबेरा, जिला दमोह {म.प्र .}, संपर्क सूत्र :- 9425612030, Email id – ajaysinghai1810@gmail.com

03 मई 2025, भोपाल: जैविक खेती पर्यावरण संक्षरण में सहायक – हरित क्रांति के अंतर्गत कृषि उत्पादन वृद्धि के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग अंधाधुंध  किया गया, इससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई और किसानों को भी आर्थिक लाभ मिलता गया । वैज्ञानिक अनुसंधानों के खेती के नवीन प्रयोग किए गए किसानों ने उसे अधिक लाभ हेतु बिना विचार किए अपनाया भी गया । उर्वरक क्षमता बढ़ाने हेतु सरकारी प्रोत्साहन से केमिकल फैक्ट्री का निर्माण किया गया और उनके उत्पादन बेचने हेतु प्रचार प्रसार भी किया गया । किसान लाभ तो लेते रहे परन्तु कहीं ना कहीं भूमि की उर्वरक क्षमता को क्षति पहुंचाते रहे हैं। इस प्रक्रिया ने पर्यावरण को भी दूषित करने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी आज स्वयं वैज्ञानिक यह स्वीकार करते हैं कि रासायनिक पदार्थ के अधिक प्रयोग से भूमि की उर्वरक शक्ति क्षीण हुई है, जल के स्रोत भी दूषित हुए हैं । जमीन पर रहने वाले प्राणियों को भी उनके दैनिक जीवन में हमने हस्तक्षेप किया है । आज शुगर के मरीज, किडनी फेल के केस, पेट संबंधी शिकायतें आम हो गई हैं । इंसेक्टिसाइड पेस्टिसाइड इत्यादि के अधिक प्रयोग से मानव प्रतिदिन धीमा धीमा जहर खा रहा है । थोड़े से लाभ हेतु सब्जियों में इंजेक्शन का प्रयोग भी बढ़ रहा है । कृत्रिम तरीके से पकाए हुए फल कहां तक लाभदायक हो सकते हैं ?

अजय कुमार सिंघई

इतिहास बताता है कि  किसानों की प्राचीन खेती पद्धति ज्यादा समृद्ध थी । उनकी परंपरागत खेती न केवल पर्यावरण को बल्कि स्वयं के स्वस्थ रहने को लाभदायक रहती थी ।  उन्होंने कभी भी रासायनिक उर्वरकों दवाइयां का प्रयोग नहीं किया । घर-घर गौशालाएं होती थी जिनके गोबर से जो जैविक खाद बनती थी वहीं खेतों में पहुंचती थी और भूमि को लाभदायक होती थी । आज इस पुनः जैविक खेती की आवश्यकता है जिस भूमि संरक्षण स्वास्थ्य संरक्षण पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रोत्साहन देना हमारा सबका एवं सरकार का उत्तरदायित्व बनता है । जैविक खेती उत्पादन में अधिक लाभ दिया जा सकता है इसके लिए जैविक उत्पादन की पर्याप्त प्रचार प्रसार सरकारी संरक्षण किसानों को लाभदाई हो सकता है , हालांकि वर्तमान में जैविक खेती पोषण हेतु सरकार भी गंभीर है परंतु अभी और सुधार की आवश्यकता है । सरकारी संरक्षण जैविक खाद उत्पादन में माहिती भूमिका निभा सकता है और  हम भी अपने खेतों में परंपरागत क्रियाओं का प्रयोग करके इस क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।

शिक्षाविद एवं पर्यावरण संरक्षको को किसानों तक  यह बात पहुंचाने का भरसक  प्रयास करना चाहिए कि रासायनिक खेती मृदा को विषाक्त बनती है और जल को प्रदूषित करती है और इससे जो प्राप्त उत्पाद होते हैं निश्चित तौर पर विषाक्त  भोजन बनाते हैं इसकी तुलना में जैविक खेती मृदा अपरदन को कम करती है सूक्ष्म जीवों को प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराती है जिससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है पौधे के लिए आवश्यक पोषक तत्व सहजता से प्राप्त होते हैं और इससे प्राप्त उत्पाद भी शरीर के लिए लाभदायक होते हैं |

जैविक खेती को अपने वाले प्रमुख प्रदेश सिक्किम हैं इसके बाद मध्य प्रदेश राजस्थान महाराष्ट्र मेघालय मिजोरम उत्तराखंड और गोवा इत्यादि जैविक खेती को अपना रहे हैं इसमें सिक्किम 100% जैविक खेती अपनाने वाला प्रथम राज्य है वर्तमान में पांच अग्रणी राज्य जैविक खेती को अपना रहे हैं उसमें मध्य प्रदेश महाराष्ट्र राजस्थान गुजरात कर्नाटक प्रमुख रूप से हैं जनवरी 2016 से सिक्किम 100% जैविक खेती उत्पादक है और केंद्र शासित प्रदेशों में लक्ष्यदीप ने यह स्थान प्राप्त किया है | जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाये संचालित है जैसे “परम्परागत कृषि विकास योजना {PKVY} ” और “मिशन ऑर्गनिक वैल्यू चेक डेवलव्मेंट {MOVC}” जैसी योजनाये वित्तीय सहायता प्रदान करती है ये योजनाये किसानो को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण एवं बाजार उपलब्ध कराती है | भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् {ICAR} प्रति हेक्टेयर तीन वर्ष के लिए 31500 रुपये उपलब्ध कराती है साथ ही प्रति वर्ष हलधर जैविक कृषि पुरस्कार प्रदान करती है |

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