राज्य कृषि समाचार (State News)

दलहन में आत्मनिर्भरता के लिए नवाचारों की आवश्यकता

आगामी 3 वर्षों का एक्शन प्लॉन तैयार करेंगे : एपीसी

  • (विशेष प्रतिनिधि)

23 दिसंबर 2021, भोपाल । दलहन में आत्मनिर्भरता के लिए नवाचारों की आवश्यकता कृषि क्षेत्र में उत्पादन संवर्धन संबंधी सुविधाओं के विस्तार के लिये सरकार सतत मदद कर रही है। इसके लिये आवश्यक प्रावधान भी किये जा रहे हैं। दलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिये नवाचारों के साथ ही पूर्व संचालित व्यवस्थाओं और प्रबंधों को भी बेहतर करने की आवश्यकता है। इसके लिये हमें क्रॉप, पैकेजिंग, मार्केटिंग, क्लस्टर इत्यादि को भी आइडेंटिफाई करके प्रोत्साहित करना होगा। मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस ने भोपाल में ‘दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उक्त विचार व्यक्त किये।

आत्मनिर्भरता के लिये हम मात्र कृषि विश्वविद्यालयों के भरोसे नहीं रह सकते हैं। हम सभी को मिलकर इसके लिये प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा कृषिगत उद्योगों के सेटअप और उत्पादन सुविधाओं के संवर्धन के लिये व्यापक स्तर पर सुविधाएँ देने का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने दीर्घकालीन योजनाओं पर भी कार्य करने पर जोर दिया।

संगोष्ठी के विशेष अतिथि भारत सरकार के संयुक्त सचिव कृषि (बीज) श्री अश्विनी कुमार ने देश में दलहन की वर्तमान स्थिति, विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में दलहन के उत्पादन की संभावनाएं एवं दालों के विपणन, मूल्य एवं मूल्य संवर्धन पर प्रकाश डाला।

संगोष्ठी में कृषि उत्पादन आयुक्त श्री शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में आगामी 3 वर्षों के लिये एक्शन प्लॉन तैयार करने के निर्देश मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने दिये हैं।

शुभारंभ-सत्र में अपर मुख्य सचिव कृषि श्री अजीत केसरी ने कहा कि कृषि क्षेत्र में प्रोसेसिंग के साथ ही किसानों को कृषि के अन्य क्षेत्रों में भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। श्री केसरी ने कहा कि दलहन में आत्मनिर्भरता के लिये हम कृषि सिनेरियो की उत्कृष्टता के हर बिन्दु पर कार्य कर रहे हैं। भारत सरकार के एडीजी आइल सीड एंड पल्सेस श्री संजीव गुप्ता ने कहा कि मध्यप्रदेश दलहन और सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। फसलों की उत्पादकता में वृद्धि के लिये सबसे बेहतर मेकेनिज्म मध्यप्रदेश में विकसित किया गया है।

मध्यप्रदेश की खासियत है कि यहाँ की किसी भी क्रॉप पर महामारी नहीं आई है। एक दिवसीय यह संगोष्ठी पाँच सत्र में हुई। इसमें दालों के उत्पादन, विपणन, बीमा, बीज उत्पादन, पैकेजिंग, निजी संस्थाओं के माध्यम से पीपीपी मॉडल, स्व-सहायता समूह (एसएचजी), कृषि उत्पादक संस्थाओं (एफपीओ) और कृषि यंत्रीकरण की दाल उत्पादन में भूमिका, व्यापार एवं मूल्य संवर्धन इत्यादि विषयों पर विषय-विशेषज्ञों द्वारा चर्चा की गई।

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