खेतों की माटी में सूक्ष्मजीव संजीवनी का कार्य करते हैं
भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों ने विभिन्न परियोजनाओं का किया निरीक्षण
27 दिसम्बर 2022, जबलपुर: खेतों की माटी में सूक्ष्मजीव संजीवनी का कार्य करते हैं – जवाहरलाल नेहरू कृषि विशवविद्यालय स्थित कृषि महाविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वित्त पोषित विभिन्न परियोजनाओं के कार्यों की विस्तार से जानकारी एवं निरीक्षण, भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान भोपाल के निदेशक डॉ. ए. बी. सिंह, पूर्व निदेशक डॉ. ए. के. पात्रा, परियोजना संचालक डॉ. एस. आर. मोहंती, डॉ. ए. के. विशवास, प्रमुख वैज्ञानिक एवं डॉ. के. भारती प्रमुख वैज्ञानिक द्वारा किया गया। उन्हांेंने विभिन्न प्रयोगशालाओं में किए जा रहे माटी के शोध की विस्तार से जानकारी भी प्राप्त की। इस दौरान स्नातकोत्तर एवं पी.एच.डी. कर रहे विभिन्न छात्र-छात्राओं के साथ बातचीत कर भविष्य की आवश्यकताओं एवं जरूरत के अनुसार शोध पर ध्यान देने हेतु सभी वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण सलाह प्रदान की।
भोपाल से आई मृदा वैज्ञानिकों की टीम द्वारा विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति डाॅ. प्रमोद कुमार मिश्रा को पुष्प कुछ देकर बधाई दी, साथ ही भविष्य की विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर जैसे प्राकृतिक खेती, जैविक खेती ,पोषक तत्वों का बेहतर उपयोग कैसे किया जाए, जैविक खादों का किसानों के प्रक्षेत्र पर उपलब्धता एवं विभिन्न माटी के स्वास्थ्य, गुणवत्ता, उत्पादकता एवं बेहतर कार्यों हेतु मंथन किया। इस दौरान विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. जी. के. कौतू, संचालक शिक्षण डॉ. अभिषेक शुक्ला, संचालक विस्तार सेवाएं डॉ. दिनकर प्रसाद शर्मा, संचालक प्रक्षेत्र डॉ. डी.के. पहलवान , मृदा विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एन. जी. मित्रा, डॉ. एच. के. राय, प्रमुख वैज्ञानिक एवं सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. शेखर सिंह बघेल उपस्थित रहे।
इस अवसर पर डॉ. ए. बी. सिंह निदेशक भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान भोपाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि माटी के स्वास्थ्य व गुणवत्ता सुधार हेतु सूक्ष्मजीव, खेतों की मिट्टी को सुधारने एवं स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में संजीवनी का कार्य करते हैं। डॉ. सिंह ने बताया कि सूक्ष्मजीवों के बेहतर उपयोग हेतु जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उत्पादित 16 प्रकार के जवाहर जैव उर्वरक एक अति उपयोगी उत्पाद है, जो किसानों के लिए कम लागत, कम कीमत, पर्यावरण अनुकूल एवं बेहतर लाभ प्रदान कर रहे हैं। डॉ. ए.के. पात्रा पूर्व निदेशक आई. आई. एस. एस. भोपाल ने कहां की वर्तमान समय में हमारे किसान भाइयों के सामने एक सबसे बड़ी चुनौती है, मिट्टी की उत्पादन क्षमता का कम होना। आज हमारे मिट्टी में कार्बन की मात्रा धीरे-धीरे कम होती जा रही है, इसके साथ ही जिस संख्या में हमारे सूक्ष्मजीवों की संख्या होनी चाहिए, उनकी लगातार गिरावट एक मूल समस्या है, ऐसे में माटी के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता बढ़ाने हेतु मृदा वैज्ञानिकों के साथी कृषक भाइयों को ध्यान देना होगा। ताकि भूमि का बेहतर एवं गुणवत्तापूर्ण उपयोग खाद्य पदार्थों के उत्पादन हेतु किया जा सके।
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