मध्य प्रदेश बन सकता है ‘टॉप’ गन्ना स्टेट
- एम.डी. पराशर
(पूर्व सीजीएम शुगर फैक्ट्री व
संचालक मध्यांचल किसान उद्योग लि.)
18 जून 2022, मध्य प्रदेश बन सकता है ‘टॉप’ गन्ना स्टेट – खपत से अधिक पैदावार होने पर भाव गिर जाते थे। गिरे हुए भावों पर गन्ना मूल्य की भी भरपाई नहीं होती है। अत: किसानों का गन्ना मूल्य शेष रहने की खबरें हमेशा रहती हैं। परन्तु अब गन्ने से एथेनॉल बनने के कारण ुउपरोक्त सभी समस्याएं समाप्त हो गई हैं। अभी भारत सरकार ने पेट्रोल में दस प्रतिशत एथेनॉल ब्लेंडिंग की अनुमति दी है जिसमें से 8 प्रतिशत ही हो पा रही है दो प्रतिशत अभी भी कम है। ब्राजील में 27 प्रतिशत ब्लेंडिंग की अनुमति है वहीं 50 प्रतिशत से अधिक गन्ने का उपयोग एथेनॉल बनाने में किया जाता है। वर्तमान में शक्कर कारखानों में न केवल शक्कर बनती है बल्कि एथेनॉल, पावर, बायो फर्टिलाइजर, सीबीजी/बायोगैस भी बनती है। पशु आहार व कार्ड बोर्ड बनाने के लिए भी इनके बाई प्रोडक्ट काम आते हैं।
उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में वर्षों से बंद कारखानों में उत्पादन प्रारंभ कराया जा रहा है। महाराष्ट्र में लगभग 20 कारखानों को जो वर्षों से बंद थे, लीज पर देकर उत्पादन कराया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में भी, न केवल सभी बंद कारखानों में उत्पादन को प्रारंभ कराने का प्रयास किया जा रहा है बल्कि 8 नये कारखाने लगाने का निर्णय राज्य शासन द्वारा लिया गया है। म.प्र. के मुरैना, गुना व अन्य रुग्ण कारखानों को भी महाराष्ट्र की भांति लीज पर देने का निर्णय लिया जाना चाहिए।
मध्य प्रदेश में गन्ना आधारित उद्योगों के विकास के लिए परिस्थितियां अनुकूल है। गन्ना सिंचाई आधारित फसल है। म.प्र. का कुल सिंचित क्षेत्रफल उ.प्र. के बाद दूसरे क्रम में है। मध्य प्रदेश में महाराष्ट्र से लगभग दो गुना से भी अधिक सिंचित कृषि भूमि है। अत: मध्य प्रदेश भविष्य में शक्कर उद्योग का पहले या दूसरे क्रम का राज्य हो सकता है। मध्य प्रदेश में गन्ना फसल महाराष्ट्र के गन्ना क्षेत्रफल की तुलना में 10 प्रतिशत से भी कम है तथा शक्कर उत्पादन 6 प्रतिशत से भी कम है। यहां केवल 18 कारखाने हैं व महाराष्ट्र में 195 कारखाने हैं और इनकी संख्या 210 से भी अधिक होगी। यहां कारखाने 18 हैं परन्तु उत्पादन में यह गुजरात, हरियाणा, बिहार से बहुत पीछे है, जहां कारखाने संख्या में कम हैं। सिंचाई सुविधा व भूमि अनुकूलता को देखते हुए शासकीय पहल की आवश्यकता है।
मध्य प्रदेश की भूमि भी गन्ना फसल के लिये अनुकूल है। प्रदेश के अधिकांश जिलों में कुछ न कुछ गन्ना फसल होती भी हैं। गन्ने से आय अन्य फसलों सोयाबीन, गेहूं, सरसों आदि की तुलना में लगभग दोगुनी है। गन्ना फसल में प्राकृतिक प्रकोप को सहन करने की शक्ति भी अन्य फसलों से बहुत अधिक है। गन्ने की बुआई एक बार करने पर तीन वर्ष तक उपज ली जा सकती है। अद्यतन तकनीक व उन्नत बीजों का प्रयोग कर 100 टन प्रति हेक्टेयर से कहीं अधिक औसत उत्पादन लिया जा सकता है। एक हेक्टेयर में लगभग 3.50 लाख रुपये का गन्ना पैदा होता है और लगभग 50000 से एक लाख रुपए तक सह फसली से आय हो सकती है। जबकि लागत 1.00 लाख रुपये से भी कम है। अत: यह कृषकों के लिए अत्यधिक हितकर फसल है। अनुकूल क्षेत्रफल की पहचान करके उत्तम किस्म के बीज उपलब्ध कराया जाये व अद्यतन तकनीक का कृषकों को प्रशिक्षण कराया जाये तो म.प्र. में महाराष्ट्र के समान ही गन्ना उत्पादन हो सकता है। यहां भी अनेकों कारखाने खुल सकते हैं। अगर यह सम्भव हुआ तो यह किसानों, बेरोजगारों व शासन के राजस्व के हित में बड़ी क्रांति होगी।
एक शक्कर कारखाने से प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से 2000 व्यक्तियों को रोजगार मिलता है व नये कारखाने की लागत 100-150 करोड़ है। संस्थागत वित्तीय सहायता या ऋण के अलावा प्रमोटर को 30 से 40 करोड़ ही निवेश करने होते हैं। 2000 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराने वाले अन्य कारखानों की लागत हजारों करोड़ होती है। अत: निवेशक भी सहज उपलब्ध नहीं होते हैं, परन्तु 30-40 करोड़ का निवेश करने वाले निवेशक तो प्रदेश में ही उपलब्ध हैं, अत: शक्कर कारखानों के लिए अन्य कारखानों की तुलना में निवेशक मिलना सरल है।
प्रदेश में शक्कर उद्योग के विकास के साथ ही शुगर मिल मशीनरी एवं सम्बंधित रसायन, वारदाना, परिवहन उद्योग से भी रोजगार व समृद्धि बढ़ेगी। गन्ना अनुसंधान केन्द्रों की भी आवश्यकता होगी जिससे संस्थान की स्थापना और रोजगार बढ़ेगा। महाराष्ट्र की भांति शक्कर उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों के लिये शिक्षा, चिकित्सा केन्द्र भी विकसित करने में सरकार की मदद करेगी। शक्कर उद्योग के गोदाम व खाली भूमि सोलर संयंत्र लगाकर सोलर एनर्जी के व्यवसाय में भी सहायक हो सकते हैं। शक्कर उद्योग के परिसर में अन्य कृषि उत्पादों के प्रसंस्करणों की इकाइयां भी लगाई जा सकती हंै। शक्कर कारखानों को कृषि उत्पादनों के प्रसंस्करण उद्योग के लिये औद्योगिक पार्क के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। महाराष्ट्र के कारखानों से शासन को लगभग 4000 करोड़ राजस्व प्राप्त होता है, इसलिए प्रदेश के राजस्व का भी यह उद्योग महत्वपूर्ण ोत होगा। गन्ना विकास और चीनी उद्योग हेतु एक उच्चस्तरीय समिति गठित करना उचित होगा। उद्योग, सिंचाई, कृषि विभागों के प्रतिनिधित्व के सलाह से प्रदेश का गन्ना क्षेत्र में औद्योगीकरण की बड़ी सम्भावना का लाभ उठाया जा सकता है।
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