राज्य कृषि समाचार (State News)

मसूर की फसल में लगते है रोग इसलिए किसानों को दी जा रही है यह सलाह

10 दिसंबर 2024, भोपाल: मसूर की फसल में लगते है रोग इसलिए किसानों को दी जा रही है यह सलाह – देश के किसानों द्वारा मसूर की फसल भी उगाई जाती है क्योंकि रबी के मौसम में इस फसल को बोया जाता है लेकिन मसूर की फसल में रोग भी लगते है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि फसल को रोगों से बचाया जा सकता है इसलिए जो सलाह दी गई है उसके अनुसार दलहन फसल होने के कारण इसमें राईजोबियम बैक्टीरिया पाया जाता है। इसमें कीट लगने का खतरा भी बढ़ा रहता है। मसूर की फसल में लगने वाले लगभग सभी कीट वही होते हैं, जो रबी दलहन फसलों में लगते हैं। इसमें से मुख्य रूप से रतुआ रोग, उकठा रोग और मटर का पावडरी मिल्ड्यू अधिक हानि पहुंचाते हैं।

रतुआ रोग यूरीमाइसिस फेवी नामक कवक द्वारा होता है।  सर्वप्रथम पत्तियों की निचली सतह व पर्णवृत्त पर हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो कि बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं। पत्तियां सूख जाती है। रोग का आक्रमण निचले सतह से शुरू होकर ऊपरी क्षेत्र तक फैल जाता है।

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रोगी फसल के अवशेष जलाकर नष्ट कर दें। बुवाई जल्दी करें।
 बीज उपचार बोने से पूर्व कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थिरम 37.5 प्रतिशत का 3 ग्राम प्रति किलो बीज से बीज उपचार करें। रतुआ निरोधक जातियां जैसे पंत, एल. 407, पंत एल. 639 पंत एल 236, पंत एल. 406 व नरेन्द्र मसूर- 1 आदि की बुवाई करें।

उकठा रोग  फ्यूजेरियम ऑक्सीपोरम नामक फफूंद से होता है। यह भूमि जनक रोग है। लक्षण: इसमें उगते हुए पौधे भूमि से निकलने के पूर्व ही या तुरंत बाद मर जाते हैं। उगने के कुछ दिन बाद फफूंद का आक्रमण होने पर उनकी जड़ें भूरी हो जाती हैं। पौधे का ऊपरी भाग लटक जाता है और अंत में मर जाता है।

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गर्मी में गहरी जुताई करें। खेत में फसल के अवशेष न रहने दें। फसल चक्र अपनायें।

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2.5 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थिरम 37.5 प्रतिशत का से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करके ही बुवाई करें अथवा ट्राईकोडर्मा बिरड़ी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज उपचार करें। बुवाई के पूर्व 4 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा बिरड़ी को गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर खेत में मिलावें।

पावडरी मिल्ड्यू रोग एरीसाइफी पोलीगोनाई नामक फफूंद से होता है।  पत्तियों की निचली सतह पर चूर्णी कवक के सफेद धब्बे बन जाते हैं जो बाद में बड़े आकार के होकर पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं, संक्रमित पत्तियां पीली पड़कर मुरझा जाती है और अंत में गिर जाती है। रोग के अधिक प्रकोप होने पर पौधा मर जाता है।

फसल अवशेष को नष्ट कर दें। 20 किग्रा गंधक चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से संक्रमित खेत में भुरकाव करें। रोग के शुरू होने पर सल्फेक्स 0.3 प्रतिशत या केराथेन 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन में दुबारा छिड़काव करें।
 रोग निरोधक जातियों की बुवाई करें। फसल चक्र अपनाना चाहिये।

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