राज्य कृषि समाचार (State News)

कोविड के कारण लेमनघास मांग बढ़ रही है

उद्यमिता विकास पर प्रशिक्षण

कोविड के कारण लेमनघास मांग बढ़ रही है – गत 22 अक्टूबर को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की  राष्ट्रीय अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत विद्यार्थियों में लेमनघास पर उद्यमिता विकास पर एक दिवसीय प्रशिक्षण  हुआ. यह प्रशिक्षण राष्ट्रीय औषधीय एवं सुगन्धित पौध संस्थान, लखनऊ के सहयोग से आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि  डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय ने बताया कि देश में 950 विश्वविद्यालयों में से 75 कृषि विश्वविद्यालय है और इन कृषि विश्वविद्यालयों में देश के लगभग एक प्रतिशत विद्यार्थी पंजीकृत है। 21 वीं सदी में हमारे विद्यार्थियों को विषय के ज्ञान तथा डिग्री के साथ-साथ कौशल, नवाचार, प्रोजेक्ट प्रबन्धन तथा मार्केटिंग के गुणों का विकास करना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि विश्व में लेमनघास के तेल का उत्पादन लगभग 1000 टन है तथा भारत में इसका उत्पादन 250 टन है। कोविड-19 के बाद लेमनघास के उत्पादों की मांग बढ़ रहीं है। विद्यार्थी किसानों के साथ कार्य कर लेमन घास का उत्पादन कर प्रसंस्करण कर तेल, साइलेज, आर्गेनिक सल्फर तथा अन्य रासायनिक तत्वों को प्राप्त कर पैकिंग एवं मार्केटिंग कर सकते है। उन्होंने बताया कि लेमनघास पर तकनीकी कौशल के साथ-साथ तेल निकालना मशीन की जानकारी लेना तथा प्रोजेक्ट बनाकर नाबार्ड तथा ऋण प्रदाता एजेन्सी से सम्पर्क कर स्वयं के बिजनेस की शुरूआत कर सकते है।

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डॉ. एस. के. शर्मा, निदेशक अनुसंधान तथा प्रोजेक्ट प्रभारी ने स्वागत उद्बोधन में बताया कि दक्षिण राजस्थान में लेमनघास का क्षैत्रफल बढ़ रहा है। किसान लेमनघास की एक पौध (कटिंग) को 5 से 6 रू. में बेच रहे है। कई प्राईवेट कम्पनियाँ लेमन तेल, लेमन पत्तियाँ, लेमन टी, फेसवाश आदि प्रोडक्ट लेमनघास से तैयार कर रही है। विद्यार्थी वर्तमान में शिक्षा प्राप्त करते हुए भी इस प्रकार के उत्पाद तैयार कर बिजनेस कर सकते है।
डॉ. संजय यादव, प्रधान वैज्ञानिक, राष्ट्रीय औषधीय एवं सुगन्धित पौध संस्थान, लखनऊ ने लेमनघास के अधिक उत्पादन तकनीकों के बारे में बताया और कहा कि लेमनघास की कटाई का समय उद्योगों की आवश्यकता पर निर्भर करता है। इसी प्रकार इस संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आर. एस. शर्मा ने लेमनघास का प्रसंस्करण तथा तेल निकालने और आसवन करने की विधियों का वर्णन किया। लेमन घास का तेल बाजार में 1200 से 1550 रू. प्रति किलो के हिसाब से बेचा जा सकता है। डॉ. सुदीप टंडन, प्रधान वैज्ञानिक, लखनऊ ने लेमनघास की प्रति हैक्टेयर लागत को कम करने के तरीकों के बारे में बताया तथा आर्थिक लाभ को बढ़ाने हेतु विधियों की विस्तार से चर्चा की। डॉ. लोकेश गुप्ता, नोडल ऑफिसर, आईसीएआर ने प्रतिभागियों से फीड़ बैक लिया। डॉ. रोशन चौधरी, आयोजन सचिव तथा सहायक आचार्य, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने कार्यक्रम का संचालन किया। डॉ. अरविन्द वर्मा, सह-अनुसंधान निदेशक ने धन्यवाद दिया।  



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