पूर्वी भारत के चावल-परती क्षेत्रों में दलहन और तिलहन उत्पादन में वृद्धि
10 फ़रवरी 2025, भोपाल: पूर्वी भारत के चावल-परती क्षेत्रों में दलहन और तिलहन उत्पादन में वृद्धि – चावल परती क्षेत्रों में रबी फसल उत्पादन के दौरान किसानों के सामने आने वाली मिट्टी की नमी और सिंचाई सुविधाओं की कमी की समस्याओं के समाधान के लिए, आईसीएआर-आरसीईआर, पटना द्वारा विशेष प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें डॉ. अनूप दास, निदेशक और डॉ. राकेश कुमार, वरीय वैज्ञानिक किसानों को चावल परती भूमि प्रबंधन में सुधार और उन्नत कृषि प्रबंधन तकनीकों के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं।
इस परियोजना के तहत किसान अपनी खाली पड़ी जमीन पर दलहन और तिलहन जैसी अन्य फसलें उगाकर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना रहे हैं। गया जिले के टेकारी प्रखंड के गुलरियाचक गांव में आईसीएआर-आरसीईआर, पटना के वैज्ञानिकों की टीम इस परियोजना को मूर्त रूप देने में जुटी है। अब तक संस्थान के वैज्ञानिकों ने 300 एकड़ में दलहन और तिलहन उत्पादन के लिए संरक्षित कृषि के माध्यम से अवशिष्ट नमी पर सफल परीक्षण किया है और इससे आस-पास के किसानों में बड़े पैमाने पर धान की परती भूमि को हरा-भरा करने की उम्मीद जगी है।
इस संबंध में संस्थान के तकनीशियन श्री राम कुमार मीना, वरीय अनुसंधान फेलो श्री रणधीर कुमार एवं प्रक्षेत्र सहायक श्री श्रीकांत चौबे ने 8 फरवरी 2025 को गया जिले के टेकारी प्रखंड अंतर्गत गुलरियाचक गांव में आयोजित कार्यक्रम में किसानों को विभिन्न उन्नत कृषि उपायों के बारे में मार्गदर्शन दिया। फसल स्वास्थ्य निगरानी के लिए किसानों के खेतों से चना, मसूर एवं कुसुम के मिट्टी के नमूने लिए गए। इस कार्यक्रम में मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए उपयुक्त उपायों पर विशेष चर्चा की गई, साथ ही 75 एकड़ क्षेत्र के दलहन एवं तिलहन की सर्वोत्तम जलवायु सहने योग्य किस्मों की पहचान कर उनके लाभ पर भी चर्चा की गई। किसानों को विशेष रूप से पर्णीय फसल पोषक तत्व प्रबंधन, मिट्टी एवं जल संरक्षण के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।
टीम ने किसानों को एनपीके (15:15:15) स्प्रे के लाभों के बारे में जानकारी दी, जो नमी की कमी की स्थिति में फसल की वृद्धि में मदद करता है और सूखे को सहन करने की क्षमता को बढ़ाता है। इस विशेष पोषक तत्व के प्रयोग से फसल की उत्पादकता में सुधार होता है और कम पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में उपज में वृद्धि होती है। इस कार्यक्रम में किसानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कृषि विज्ञान केंद्र, मानपुर, गया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसे कार्यक्रम किसानों को कृषि में आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं। गौरतलब है कि गया जिले में 25 हजार हेक्टेयर धान-परती भूमि है, जिसमें धान के बाद कोई दूसरी फसल नहीं लगाई जाती है, जिसके कारण उस क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय है।
“यह कार्यक्रम आईसीएआर-आरसीईआर, पटना द्वारा वर्ष 2023 में शुरू किया गया था। संस्थान के निदेशक डॉ. अनूप दास और उनके वैज्ञानिकों की बहु-विषयक टीम चावल-परती क्षेत्रों में दलहन और तिलहन फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है”, आईसीएआर-आरसीईआर, पटना के मीडिया प्रबंधन समिति के सदस्य सचिव श्री उमेश कुमार मिश्रा ने कहा।
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