घोड़ा नीम (बकाइन): जैव विविधता और बहुउपयोगिता का साथी
कृषि महाविद्यालय, खंडवा, डॉ. दीपक हरि रानडे, डॉ. मनोज कुरील और डॉ. स्मिता अग्रवाल , कृषि महाविद्यालय, खंडवा
01 अक्टूबर 2025, भोपाल: घोड़ा नीम (बकाइन): जैव विविधता और बहुउपयोगिता का साथी – कृषि महाविद्यालय खंडवा के हरे-भरे परिसर में वर्षों से खड़ा घोड़ा नीम का विशाल वृक्ष न केवल छात्रों और शिक्षकों को छाया देता है, बल्कि जैव विविधता और उपयोगिता का एक जीवंत उदाहरण भी है। आमतौर पर इसे “बकाइन” कहा जाता है। यह वृक्ष दिखने में आकर्षक होने के साथ-साथ पर्यावरण, कृषि और औषधि – तीनों क्षेत्रों में उपयोगी साबित होता है।
नीम और घोड़ा नीम दोनों के औषधीय व कीटनाशक गुण होते हैं, लेकिन इनमें कुछ फर्क है। घोड़ा नीम की पत्तियाँ बड़ी और हल्की हरी होती हैं तथा स्वाद में नीम की तरह बहुत कड़वी नहीं होतीं। इसके फूल बैंगनी-गुलाबी रंग के होते हैं और फल छोटे बेर जैसे गोल होते हैं। वहीं साधारण नीम के फूल सफेद और फल अंडाकार होते हैं। औषधीय दृष्टि से साधारण नीम अधिक प्रभावी है, पर घोड़ा नीम भी हल्के कीटनाशक और औषधीय उपयोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
ग्रामीण जीवन से जुड़ा साथी
गाँवों में आज भी लोग इसके पत्तों का उपयोग अनाज भंडारण में करते हैं, ताकि कीड़े न लगें। खेतों में इसे छायादार वृक्ष के रूप में लगाया जाता है। इसके फल और पत्तियाँ थोड़ी मात्रा में पशुओं के चारे के काम भी आती हैं। लकड़ी हल्की लेकिन टिकाऊ होती है, जिससे ग्रामीण इलाकों में फर्नीचर, खिलौने और कृषि उपकरण बनाए जाते हैं।
गाँव की दादी-नानी अक्सर इसके छाल का काढ़ा बुखार और पेट की तकलीफ में देती थीं। पत्तियों का लेप चर्म रोगों और फोड़े-फुंसियों पर लगाया जाता है। वहीं इसके फूल और फल मधुमक्खियों, पक्षियों और अन्य जीवों के लिए भोजन का स्रोत हैं, जिससे परागण और पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है।
सावधानी भी ज़रूरी
जहाँ इसके कई फायदे हैं, वहीं कुछ नुकसान भी हैं। इसके फल और बीज अधिक मात्रा में खाने पर विषैले हो सकते हैं, इसलिए इन्हें पशुओं को बहुत सोच-समझकर दिया जाता है। इसकी जड़ें आसपास के पौधों के पोषक तत्व खींच लेती हैं, जिससे पास की फसलें प्रभावित हो सकती हैं।
भविष्य की संभावनाएँ
वैज्ञानिक दृष्टि से भी घोड़ा नीम में कई संभावनाएँ छिपी हैं। इसके पत्तों और फलों से जैविक कीटनाशक बनाए जा सकते हैं। इसके औषधीय गुणों का गहन परीक्षण किया जा सकता है। जैव विविधता संरक्षण, परागण प्रणाली और मिट्टी की सेहत पर इसके प्रभाव का अध्ययन भी कृषि अनुसंधान को नई दिशा दे सकता है।
कुल मिलाकर, घोड़ा नीम सिर्फ एक पेड़ नहीं, बल्कि ग्रामीण जीवन का साथी, प्रकृति का संरक्षक और आने वाले समय की वैज्ञानिक खोजों का आधार है।
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