राज्य कृषि समाचार (State News)

कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की आठ नवीन किस्मों को भारत सरकार की मंजूरी

भारत सरकार द्वारा अधिसूचना जारी

30 अक्टूबर 2020, रायपुर। कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की आठ नवीन किस्मों को भारत सरकार की मंजूरी भारत सरकार की केन्द्रीय बीज उपसमिति ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की नवीनतम किस्मों को व्यावसायिक खेती एवं गुणवत्ता बीज उत्पादन हेतु अधिसूचित किया है। भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा विकसित चावल की तीन नवीन किस्म – छत्तीसगढ़ राइस हाइब्रिड-2, बस्तर धान-1, प्रोटेजीन धान, दलहन की तीन नवीन किस्म – छत्तीसगढ़ मसूर-1, छत्तीसगढ़ चना-2, छत्तीसगढ़ अरहर-1 एवं तिलहन की दो नवीन किस्म – छत्तीसगढ़ कुसुम-1 तथा अलसी की आर.एल.सी.-161 किस्मों को छत्तीसगढ़ राज्य में व्यावसायिक खेती एवं गुणवत्ता बीज उत्पादन हेतु अधिसूचित किया गया है। अलसी की नवीन किस्म आर.एल.सी. 161 छत्तीसगढ़ के अलावा पंजाब, हिमाचल और जम्मू कश्मीर राज्यों के लिए अनुशंसित की गई है। आगामी वर्षों में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इन सभी नवीन किस्मों को व्यावसायिक खेती हेतु बीजोत्पादन कार्यक्रम में लिया जायेगा, जिससे इन का बीज प्रदेश के किसानों को उपलब्ध हो सकेगा।

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उल्लेखनीय है कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय विकसित विभिन्न फसलों की यह नवीन किस्में विशेष गुणधर्मो से परिपूर्ण है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई धान की तीन नवीन किस्मों में से छत्तीसगढ़ राइस हाइब्रिड-2 की उपज क्षमता 5144 किलोग्राम/हेक्टेयर है। यह किस्म छत्तीसगढ़ में सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है। इस किस्म की पकने की अवधि 120-125 दिन है। इस किस्म का चावल लम्बा-पतला होता है। यह किस्म झुलसन, टुंगरो वायरस एवं नेक ब्लास्ट बीमारियों के लिए सहनशील तथा गंगई के लिए प्रतिरोधी व पत्तिमोड़क के प्रति सहनशील पाया गया है। बस्तर धान-1 विश्वविद्यालय द्वारा विकसित धान की बौनी किस्म है जिसका दाना लम्बा एवं पतला होता है। इस किस्म की पकने की अवधि 105-110 दिनों की है। इसका औसत उत्पादन 4000-4800 किलोग्राम/हेक्टेयर है। यह किस्म हल्की एवं उच्चहन भूमि हेतु उपयुक्त है। प्रोटेजीन धान की यह नवीन किस्म बौनी प्रजाती के धान की किस्म है जिसकी पकने की अवधि 124-128 दिनों की है। इसका दाना मध्यम लम्बा पतला आकार होता है। जिसमें जिंक की मात्रा 20.9 पी.पी.एम. तथा प्रोटीन का प्रतिषत 9.29 प्रतिषत पाया जाता है। इस किस्म की औसत उपज 4500 किलोग्राम/हेक्टेयर पायी गयी है।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दलहन की तीन नवीन किस्मों का भी विकास किया गया है जिसमें छत्तीसगढ़ मसूर-1 की उपज क्षमता 1446 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। मसूर की यह किस्म औसत 91 दिन (88 से 95 दिन) में पक कर तैयार हो जाती है। इसके पुष्प हल्के बैगनी रंग के होते है। इस किस्म के 100 दानों का औसत वजन 3.5 ग्राम (2.7 से 3.8 ग्राम) होता है। इस किस्म में दाल रिकवरी 70 प्रतिशत तथा 24.6 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। यह किस्म मसूर के प्रमुख कीटों के लिए सहनशील है। दलहन की नीवन किस्मों में से चना की नवीन किस्म छत्तीसगढ़ चना-2 की उपज क्षमता छत्तीसगढ़ में 1732 किलोग्राम/हेक्टेयर पायी गई है।

चने की यह किस्म औसत 97 दिनों (90-105 दिन) में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म के 100 दानों का वजन 23.5 ग्राम (22.8 ग्राम से 24.0 ग्राम) है।यह किस्म उकठा रोग हेतु आंषिक प्रतिरोधी पायी गयी है। नवीन विकसित किसमों में से अरहर की नवीन किस्म छत्तीसगढ़ अरहर-1 की उपज क्षमता खरीफ में औसत उपज 1925 किलोग्राम/हेक्टेयर है व रबी में 1535 किलोग्राम/हेक्टेयर पायी गयी है। अरहर की यह किस्म 165-175 दिन खरीफ में तथा 130-140 दिन रबी में पकती है। इसके सौ दानों का वजन 9-10 ग्राम पाया गया है। इस किस्म के पुष्प पीले लाल रंग के होते हैं। इस किस्म की दाल रिकवरी 65-75 प्रतिशत पायी गयी है। राज्य स्तरीय परीक्षणों में यह किस्म उकठा हेतु आंषिक प्रतिरोधी तथा फल्ली छेदक भी कम लगता है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय द्वारा विकसित तिलहन की दो नवीन किस्मों में से छत्तीसगढ़ कुसुम-1 कुसुम की जननद्रव्य जी.एम.यू. 7368 से चयन विधि द्वारा विकसित किया गया। इस किस्म में तेल की मात्रा 31¬33 प्रतिषत तक पायी जाती है तथा यह किस्म 115 से 120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।

जो अन्य किस्मों की तुलना में लगभग 20 से 25 दिन कम है इसका पुष्प सफेद रंग का होता है। इस किस्म से 1677 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर औसत उपज प्राप्त होती है। यह किस्म छत्तीसगढ़ में धान आधारित फसल चक्र में रबी हेतु उपयुक्त है। कुसुम की यह किस्म अल्टेनेरिया लीफ ब्लाइट बीमारी हेतु आंषिक प्रतिरोधी पायी गयी है। साथ ही जल्दी पकने के कारण फसल में एफिड कीट द्वारा कम नुकसान होता है। इसी प्रकार अलसी की नवीन किस्म आर.एल.सी.-161 वर्षा आधारित खेती हेतु उपयुक्त है एवं विपुल उत्पादन देने में सक्षम है। इस किस्म को अखिल भारतीय समन्वय अलसी परियोजना के अन्र्तगत विकसित किया गया है। यह किस्म दो प्रजातियों आयोगी एवं जीस-234 से तैयार की गई है। जिसका औसत उत्पादन 1262 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म देश के चार राज्यों छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, जम्मू के लिए सिफारिश की गई है।

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