State News (राज्य कृषि समाचार)

खेती को लाभ का धंधा बनाने का मुख्यमंत्री का सपना क्या प्रभारियों के भरोसे पूरा होगा ?

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कृषि विभाग में अधिकारियों का टोटा

11 जनवरी 2023, भोपाल(अतुल सक्सेना): खेती को लाभ का धंधा बनाने का मुख्यमंत्री का सपना क्या प्रभारियों के भरोसे पूरा होगा ? – खेती का नाम सुनकर जेहन में किसानों की तस्वीर आती है और किसानों की तस्वीर से देश-प्रदेश की राजनीति का ख्याल आता है क्योंकि किसानों का नाम लेकर ही सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। हमेशा कहा जाता है कृषि अर्थव्यवस्था की धुरी है इसमें सच्चाई भी है परन्तु खेती-किसानी तथा किसानों की सुविधाओं के लिए बने कृषि महकमे में अधिकारियों एवं कर्मचारियों का टोटा इतने बड़े कृषि विभाग को बौना कर रहा है। शासकीय काम-काज तो प्रभावित हो ही रहा है साथ-साथ किसानों को जानकारी देने वाला कोई नहीं है। योजनाओं का क्रियान्वयन पूरी क्षमता से नहीं हो रहा है। न ही किसानों को पूरा लाभ मिल पा रहा है। प्रभारी अधिकारियों की बैशाखी के सहारे कब और कहां तक विभाग को गतिशील रख सकते हैं यह विचारणीय प्रश्न है? इधर मुख्यमंत्री प्रत्येक किसान तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं। खेती को लाभ का धंधा बनाने का मुख्यमंत्री का सपना क्या प्रभारियों के भरोसे पूरा होगा?

प्रदेश में विगत कई वर्षों से नई भर्तियां एवं पदोन्नति नहीं हो रही हैं, केवल सेवानिवृत्ति का दौर चल रहा है। विभाग खाली होता जा रहा है और काम-काज बढ़ता जा रहा है। ऐसे में जो बचे-खुचे अधिकारी-कर्मचारी हैं उन पर बोझ बढ़ता जा रहा है। फील्ड पर किसी का ध्यान नहीं है। विभाग के सबसे छोटे एक अधिकारी पर 10 गांव से अधिक का जिम्मा है, वह जाएं तो जाएं कहां।

कृषि जैसे महत्वपूर्ण और बड़े विभाग में जहां मुख्यमंत्री का सीधा दखल होता है वहां अधिकारियों की कमी गंभीर मामला है। पदोन्नति एवं भर्ती की लचर प्रक्रिया के चलते विभाग में रिक्त पदों की संख्या बढ़ती जा रही है क्योंकि रिटायरमेंट की प्रक्रिया चुस्त-दुरुस्त है। समय पर अधिकारी/कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं। इस कारण कार्यरत अधिकारियों पर प्रभार का बोझ बढ़ रहा है। एक-एक अधिकारी के पास दो-तीन सेक्शन का प्रभार है जिस कारण कार्य प्रभावित होता है। कृषि विभाग में कुल साढ़े 14 हजार से अधिक पद स्वीकृत हैं इसमें लगभग 8 हजार पद भरे हैं तथा साढ़ 6 हजार से अधिक पद खाली पड़े हैं। इन खाली पदों में दो पद संचालक कृषि के भी है इसमें एक पद पर प्रभारी कार्यरत है।

वर्तमान में संयुक्त संचालकों की स्थिति सबसे दयनीय है। इनके स्वीकृत 21 पदों में से केवल 5 पद भरे हैं शेष 16 पद खाली पड़े हैं। क्लास- 1 में यही स्थिति उपसंचालकों की भी है। लगभग 143 पदों में से मात्र 63 पद भरे हंै शेष खाली हंै। वहीं क्लास- 2 में सहायक संचालकों के 50 फीसदी से अधिक पद रिक्त हैं। 736 में से केवल 380 अधिकारी प्रदेश में कार्य कर रहे हैं।

इसी प्रकार पूरे प्रदेश में सहायक सांख्यिकी अधिकारी 135 में से 40, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी 750 में 540, कृषि विकास अधिकारी 730 में से 380 एवं ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी 6370 में से मात्र 50 फीसदी 3750 कार्यरत हैं।

इधर प्रदेश के मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री कृषक हितैषी योजनाओं, कृषि विकास दर, कृषि कर्मण पुरस्कार और अन्य उपलब्धियों का बखान करते नहीं थक रहे, परन्तु दूसरी तरफ सिकुड़ता कृषि विभाग अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। संचालक प्रभारी, संयुक्त संचालक प्रभारी, उपसंचालक आत्मा प्रभारी और भी कई पदों पर प्रभारियों के भरोसे विभाग घिसट रहा है। क्या प्रभारियों के भरोसे ही किसानों की आय दोगुनी होगी तथा खेती लाभ धंधा बनेगी?

संचालक कृषि का पद भी विगत छ: माह से प्रभार पर चल रहा है। श्रीमती प्रीति मैथिल मुख्यमंत्री सचिवालय में अपर सचिव हैं और कृषि विभाग का केवल उनके पास प्रभार है, भार नहीं है। इसी प्रकार बीज एवं फार्म विकास के प्रबंध संचालक का प्रभार भी विगत छ: माह से म.प्र. डेयरी फेडरेशन के प्रबंध संचालक श्री तरुण राठी के पास है। 

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