राज्य कृषि समाचार (State News)

फलों का प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन

लेखक: डॉ. संध्या चौधरी, रिटायर प्राध्यापक, कृषि विस्तार शिक्षा, dr.sandhya6@gmail.com

13 अगस्त 2024, भोपाल: फलों का प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धनकिसी भी फसल उत्पादन के बाद के कार्य में उत्पाद की भली प्रकार से सुरक्षा की जाना अति आवश्यक होता है, उदाहरणार्थ उत्पाद को सुरक्षित रखना, सफाई करना, पृथककरण, विक्रय के लिए तैयार करना इत्यादी. अब यदि फल की बात की जाय तो फल और सब्जियों की प्रकृति अत्यंत कोमल होती है, अर्थात् इन्हे खराब होने में समय कम लगता है. यह आवश्यक है कि फल और सब्जियों का विक्रय शीघ्र कर दिया जाय परन्तु हमारे यहां की कृषि व्यवस्था में हमारे कृषकों के सामने कई प्रकार की कठिनाइयाँ होती हैं जैसे संग्रहण की समस्या, यातायात की कमी, समय पर उचित कौशल पूर्ण मानवीय संसाधनों का अभाव एवं उचित प्रकार से सम्पूर्ण उत्पाद को प्रयुक्त करने के ज्ञान का अभाव. अब यदि कृषक समय पर प्राप्त उत्पाद को सम्भाल न पाए तो कृषकों को बहुत आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है. यह हानि धन के साथ-साथ श्रम और किसान के ऊपर मनोवैज्ञानिक दबाव भी पड़ता है. और यह हानि केवल किसान की ही नहीं वरन पूरे समाज और देश की आर्थिक व्यवस्था को भी प्रभावित करती है.

अब इस बड़ी हानि से हमारे शोधकर्ताओं, शिक्षकों और कृषि कार्यकर्ताओं ने और स्वयं किसान ने भी हमेशा से ही बाचाव के तरीके खोजे हंै, हमारे उत्पाद का सही मूल्य प्राप्त हो सके और इसकी अधिक से अधिक उपयोगिता को बढ़ा सकें. फल हमारे भोजन का अभिन्न अंग है, फलों से मूलत: हमें कर्बोहाइड्रेट्स कुछ मात्रा में प्रोटीन और प्रचुर मात्रा में विटामिन्स और लवण मिलते हैं. ये विटामिन्स और लवण हमारे शरीर को स्वस्थ रखने और रोगों से बचने में बहुत योगदान देते हंै. इसके अतिरिक्त फलों से प्राप्त होने वाले रसेदार पदार्थ भी सवास्थ्य के लिए आवशयक होते हैं क्योंकि ये हमारे पाचन तंत्र को भोजन को पाचने में सहयता करते हैं. इसके साथ ही फलों से प्राप्त होने वाली फ्रूक्टोस कैलोरी भी अति महत्वपूर्ण भाग है. फलों से इतने अधिक लाभ तो हंै ही साथ ही ये कई प्रकार का स्वाद भी प्रदान करते है. फ्रूक्टोस कैलोरी शरीर में तुरंत ग्लूकोस में परिवर्तित हो कर हमें शक्ति प्रदान करती है, अब इतने महत्वपूर्ण भोज्य सामग्री का पूर्ण रूप से प्रयोग किस प्रकार किया जाय. चूँकि फलों की प्रकृति बहुत नाजुक होती है इसलिए फलों की देखभाल और संरक्षण किस प्रकार किया जाय यह एक महत्वपूर्ण विषय है. फल उत्पादन के पश्चात् इसमे हानि होने के कारण कुछ इस प्रकार होते हैं –

  • गलत विधियों द्वारा फसल की कटाई करना।
  • फलों में संरक्ष्ण के समय ही जड़ों का आ जाना अथवा उनमे अंकुरण हो जाना।
  • फसल उत्पाद के समय ही कुछ रोग लगे हो अथवा किसी प्रकार की रासायनिक दवाइयों का प्रयोग किया गया हो तो यह भी फलों के खराब होने का कारण हो सकता है।
  • बाजार में यदि अत्यधिक बिक्री कम दामों पर कर दी गई हो यह फलों के खऱाब होने का कारण हो सकता है. और भी कई कारण हो सकते हंै जो कि फलों के उत्पाद को खऱाब कर देते हंै इसलिए फल जैसे नाजुक उत्पाद को संरक्षित रखने के लिए ओर आय को बढऩे के लिए इसके उचित नियोजन की आवश्यकता है. मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण की कई विधियाँ प्रचलित है जैसे- सुखाना, डिब्बाबन्दी, केनिंग, जूसिंग, पैकेजिंग,लेबलिंग और बाजार में अधिकतम विक्रय करना. परन्तु इन विधियों का प्रयोग करना तो बाद का प्रबंधन है, पहले किसानों को इन विधियों की जानकारी देना चाहिए साथ ही कौशलपूर्ण प्रशिक्षणों का आयोजन करते हुए किसान परिवार को सुशिक्षित करें ताकि फसल आने के पूर्व ही उसका भली-भांति नियोजन किया जा सके. साथ ही फल उत्पादन और कटाई के समय भली प्रकार से रखी जाने वाली सावधनियां बरती जा सके कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देकर मूल्य संवर्धन का यथोचित निरूपण किया जा सकता है जैसे –
  • किसान की आय बढ़ाना।
  • मूल्य संवर्धन से निम्न स्तरीय आय वाले किसान और किसान परिवार की महिलाओं को रोजगार दिया जा सकता है साथ ही कम मूल्य पर बाजार में मूल्य संवर्धित उत्पादों की प्रप्ति हो सकती है
  • उपभोक्ता को उत्तम गुणवत्ता और विविध स्वाद के विभिन्न भोज्य पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं।
  • छोटे स्तर पर मूल्य संवर्धन तकनीक को लोकप्रिय बनाकर छोटे किसानों को अधिक लाभ पंहुचाया जा सकता है
  • कटाई के समय होने वाले नुकसानों से बचाव किया जा सकता है. उदाहरण टमाटर, सेब, संतरा, मशरूम, आम, अमरुद आदि कई प्रकार के फल हार्वेस्टिंग के बाद ग्रेडिंग के समय अधिक नाजुक स्थिति वाले उत्पाद का तुरंत प्रसंस्करण कर दिया जाय तो यह लाभदायक होगा.
  • यदि प्रसंस्करण सुविधा उस क्षेत्र में उच्च व सामुदायिक स्तर पर की जाय तो हमे विदेशों से आयात भी कम करना पड़ेगा, साथ ही यदि इसकी गुणवत्ता में पूर्ण सुधार कर लिया जाय तो हम निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा से अर्थार्जन करके देश की आर्थिक स्थिति में सुधार और किसानों की आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं।
  • प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन से बाजार के आर्थिक जोखिम को भी कम किया जा सकता है।
  • ग्रामीणों के लिए जो की कृषि से न भी जुड़ें हो उन्हें आर्थिक लाभ ओर रोजगार के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं।
  • शासकीय नियम ओर नीतियों के द्वारा कृषकों के साथ-साथ आम उपभोक्ता को भी लाभप्रद उत्पाद प्राप्त हो जाते हैं।
  • उपरोक्त सभी कारणों से प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन को बढ़ावा दें तो यह एक प्रकार से लाभदायी व्यवसाय ही होगा।

प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन की सामन्य तकनीकियां

पारम्परिक प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों में उच्च व मध्यम कारीगिरी तकनीक शामिल होती है जैसे कि शीत उपचार, सुखाना, डिब्बाबंदी, निर्जलीकरण, किण्वन आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है.

शीत उपचार – जब उत्पाद के तपमान को अनुकूलित कर दिया जाय, शीत गृह इसके साधन है इस प्रकार की विधि से 6 से 8 महीने तक संरक्ष्ण किया जा सकता है.

थर्मल प्रोसेसिंग – इस विधि के द्वारा जेम, जेली, अचार, मुरब्बा, चटनी, स्क्वेश, को डिब्बाबन्दी, बोतलबंदी करके उत्पाद की स्वाद और गुणवत्ता के साथ ही आय में अधिक बढ़ोतरी की जा सकती है.

सुखाने की तकनीक – फलों में यह कम लोकप्रिय तकनीक है, परन्तु पावडर के रूप में बदलने के द्वारा इसका आसानी से प्रयोग किया जा सकता है. यह विधि उत्पाद के रंग, रूप, सुगंध और पौष्टिक मूल्य के लिए कमतर होती है.

निर्जलीकरण: इस तकनीक में उत्पाद की कीमत को बढ़ाने के लिए कभी-कभी प्रयोग किया जाता है. यह एक अत्यंत प्राचीन विधि है जैसे बेर को सुखाना या फिर डिब्बाबन्दी करना, कच्चे आम को सुखाना या पावडर बनाना इत्यादी.

किण्वन: यह खाद्य पदार्थों की धीमी जैव संरक्ष्ण प्रक्रिया है. यह भी प्रसंस्करण की सबसे प्राचीन विधि है.

इन प्रचलित विधियों से कई प्रकार के उत्पाद फलों के द्वारा बनाये जा सकते हैं यथा- अचार, मुरब्बा, जेम, जेली, शरबत, जूस, कैंडी इसके अतिरिक्त किण्वन विधि के द्वारा वाइन, बियर, देशी शराब, फलों के पानी और चाय आदि बनाये जा सकते हैं. फलों के प्रसंस्करण से हम कई प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकते हंै. फलों के उत्पाद का बचाव, आय में वृद्धि स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों की प्राप्ति, रोजगार के अवसर बढ़ते हुए हम देश की आर्थिक नीति को भी मजबूत बना सकते हंै.

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