कलिहारी की फसल से किसानों को फायदा ही फायदा
28 जून 2025, भोपाल: कलिहारी की फसल से किसानों को फायदा ही फायदा – जी हां ! यदि किसान अन्य खेती के साथ कलिहारी की फसल भी उगाते है तो उन्हें आर्थिक रूप से फायदा ही होगा। दरअसल कलिहारी एक जड़ी बूटी वाली फसल है और इसका उपयोग दवाईयांें के लिए होता है।
कलिहारी को ग्लोरिओसा सुपर्बा के नाम से भी जाना जाता है| यह एक जड़ी-बूटी वाली फसल है जो बेल की तरह बढ़ती है| इसकी जमीन की निचली गांठे, पत्ते, बीज और जड़ें दवाइयाँ बनाने के लिए प्रयोग में लायी जाती है| कलिहारी से तैयार दवाइयों से जोड़ों का दर्द, एंटीहेलमैथिक, ऐंटीपेट्रिओटिक के ईलाज के लिए और पॉलीप्लोइडी को ठीक करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है| कलिहारी को कई तरह के टॉनिक और पीने वाली दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है| इस पौधे की औसतन ऊंचाई 3.5-6 मीटर होती है| इसके पत्ते 6-8 इंच लम्बे और डंठलों के बिना होते है| इसके फूल हरे रंग के और फल 2 इंच लम्बे होते है| इसके बीज गिनती में ज्यादा और घने होते है| अफ्रीका, ऐशिया, यू.एस.ऐ और श्री-लंका मुख्य रूप में कलिहारी उगाने वाले क्षेत्र है| भारत में तमिलनाडु और कर्नाटक इसके मुख्य क्षेत्र है| यह लाल दोमट रेतली मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है| सख्त मिट्टी में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए| इस फसल के लिए मिट्टी का pH 5.5 -7 होना चाहिए| कलिहारी को बीजने के लिए, इसको भुरभुरी और समतल मिट्टी की जरुरत होती है| मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हल के साथ अच्छी से तरह से जोताई करें| पानी को जमा होने से रोकने के लिए निकास का प्रबंध करें| कलिहारी की पनीरी जरूरत के अनुसार छोटे प्लाट में लगाएं|
बिजाई का समय
इसकी बिजाई आम रूप से जुलाई और अगस्त में की जाती है|
फासला
पनीरी वाले पौधों में 60×45 सै.मी. का फासला होना चाहिए|
बीज की गहराई
बीज को 6-8 सै.मी. गहराई में बोयें|
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई पिछली फसल से प्राप्त गांठों से या बीजों से तैयार पौधों की पनीरी लगा कर की जाती है|
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