मिर्च को लेकर उत्साहित किसान, दिलाएगी मुनाफे की मुस्कान
कृषक जगत सर्वे
- (विशेष प्रतिनिधि)
5 मई 2022, इंदौर । मिर्च को लेकर उत्साहित किसान, दिलाएगी मुनाफे की मुस्कान – रबी सत्र के बाद अब किसान खरीफ सीजन की तैयारियों में जुटने वाला है। इस साल भी मानसून बेहतर रहने की खबर से धरतीपुत्र उत्साहित हैं। खरीफ में सोयाबीन, कपास, मक्का आदि फसल के अलावा निमाड़ क्षेत्र में मिर्च की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है। कुछ वर्षों पूर्व निमाड़ में मिर्च फसल में वायरस रोग के कारण हुए नुकसान से इस क्षेत्र के किसानों का मिर्च के प्रति रुझान कम हुआ था, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। आगामी खरीफ सत्र में मिर्च फसल की संभावनाओं पर कृषक जगत ने मुख्यत: निमाड़ क्षेत्र के किसानों से उनके विचार जाने,जो मिर्च फसल के प्रति उत्साहवर्धक रहे। अधिकांश मिर्च उत्पादक किसानों ने इस वर्ष मिर्च का उत्पादन बेहतर रहने और मुनाफे की मुस्कान चेहरे पर आने की उम्मीद जताई ।
निमाड़ की बेडिय़ा मंडी लाल मिर्च के लिए मशहूर हैं, यहाँ के किसान श्री सुरेंद्र बलिराम धोंगडिया ने कृषक जगत को बताया कि गत वर्ष 5 एकड़ में मिर्च की किस्म शार्कवन लगाई थी। विभिन्न कंपनियों का मिर्च का 100 ग्राम बीज भी 5500 से लेकर 7500 रु तक पड़ता है। इसलिए एक एकड़ के लिए पौधे 1 रु 20 पैसे की दर से नर्सरी से खरीदे थे और चार एकड़ के लिए पौधे स्वयं ने तैयार किए थे। मिर्च का ढाई लाख रुपए एकड़ का उत्पादन मिला था। इस साल 7 एकड़ में मिर्च लगाएंगे। 7 मई तक रोपाई कर देंगे। बारिश अच्छी हुई तो उत्पादन बढ़ेगा। इस वर्ष लाल मिर्च के दाम भी 80-100 रु किलो तक रहे थे। श्री सुरेंद्र ने कहा कि मिर्च में ड्रिप इरिगेशन तो करते हैं, लेकिन मल्चिंग नहीं लगाते हैं, क्योंकि मल्चिंग के बाद खाद आदि डालने में तकलीफ आती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए कुल्पे चलाने से मिट्टी पौधे के आसपास चढ़ती रहती है, इससे उसे मज़बूती भी मिलती है।
वहीं बकावां मर्दाना (बड़वाह) के श्री भगवान लक्ष्मण शाह को भी गत वर्ष ढाई लाख रुपए/एकड़ का उत्पादन मिला था। इस साल 4 एकड़ में मिर्च लगाएंगे। बीज बेडिय़ा से खरीदेंगे। श्री शाह का कहना था कि इस वर्ष वायरस की समस्या नहीं आएगी और मिर्च का रकबा बढ़ेगा। जबकि पथराड़ के श्री भुवानीराम पाटीदार ने कहा कि पहले खूब मिर्च का उत्पादन लिया, लेकिन दो-तीन सालों से वायरस, तापमान की अधिकता और अन्य समस्याएं आई तो मिर्च लगाने का विचार त्याग दिया। अब पारम्परिक खेती की ओर ही ध्यान देंगे। खामखेड़ा के श्री महेश गुर्जर ने गत वर्ष 4 एकड़ में मिर्च की विभिन्न किस्मों जैसे नवतेज,शक्ति 51, 1003 से डेढ़ लाख रु/एकड़ का उत्पादन लिया।
खामखेड़ा के ही श्री आशीष बिरले ने बताया कि पिछले साल दो एकड़ में महिको की नवतेज मिर्च किस्म लगाई थी,जिससे 5 लाख 70 हजार का उत्पादन मिला। इस वर्ष भी मिर्च लगाएंगे। पौधे नर्सरी से लाएंगे जो 1 रुपए 60 पैसे या 1 रुपए 70 पैसे प्रति पौधा मिल जाएगा। इस वर्ष मिर्च का रकबा बढ़ सकता है। वायरस की समस्या भी नहीं आएगी। श्री बिरले तरबूज से भी अच्छी कमाई कर रहे हैं। श्री बिरले ने बताया कि मिर्च में ड्रिप इरिगेशन करते हैं, लेकिन क्षेत्र के अधिकांश किसान मिर्च में मल्चिंग नहीं लगाते हैं। रोपाई के समय तापमान अधिक होने पर पौधों के खराब होने का खतरा रहता है। जबकि तरबूज, टमाटर आदि फसल में मल्चिंग लगाते हैं।
श्री बालकृष्ण पाटीदार (समृद्धि) खरगोन न केवल उन्नत कृषक हैं, बल्कि बीज विक्रेता भी हैं। श्री पाटीदार ने कहा कि गत वर्ष उन्होंने मिर्च का 1 लाख 70 हज़ार/एकड़ की दर से उत्पादन लिया। भाव भी अच्छा मिला। 19 क्विंटल सूखी मिर्च 80 रु/किलो और 30 क्विंटल हरी मिर्च 18-20 किलो की दर से बेची। मिर्च किस्मों में गुजरात की नई किस्म अल्पाइन- 503 भी अच्छी है। इसके अलावा नवतेज की भी अच्छी मांग है। जबकि खरगोन के ही अन्य उन्नत कृषक श्री नटवर पाटीदार ने पिछले साल 3 एकड़ में मिर्च किस्म शार्क वन, नवतेज और 56 लगाई थी। सूखी लाल मिर्च और हरी मिर्च आदि का 8 लाख का उत्पादन लिया। इस वर्ष दो एकड़ रकबा बढ़ाकर 5 एकड़ में मिर्च लगाएंगे।
पीपलगोन (कसरावद) के श्री मुकेश इंगला ने गत वर्ष मिर्च किस्म शक्ति- 51 से 2 एकड़ में 5 लाख रु का उत्पादन लिया। लागत खर्च निकालने के बाद भी इन्हें अच्छा मुनाफ़ा हुआ, इसलिए इस साल भी दो एकड़ में मिर्च लगाएंगे। इस साल मिर्च के भाव भी अच्छे हैं। मिर्च औसत 100 किलो बिक रही है। आगे भी अच्छा भाव मिलने की उम्मीद है। श्री इंगला ने बताया कि अधिकतम मिर्च उत्पादक किसान मिर्च फसल में मल्चिंग नहीं लगाते हैं, लेकिन ड्रिप से सिंचाई ज़रूर करते हैं। मल्चिंग का लागत खर्च और पौधों को खाद आदि देने में होने वाली परेशानियों के कारण किसान मल्चिंग को पसंद नहीं करते हैं। वहीं श्री सचिन पाटीदार (सुविधा कृषि) कसरावद ने कहा कि यह वर्ष मिर्च उत्पादक किसानों के लिए अच्छा रहेगा। मिर्च का रकबा भी बढ़ेगा और किसानों मिर्च के अच्छे दाम भी मिलेंगे। इन्होंने गत वर्ष मिर्च से 8 लाख रु से अधिक का उत्पादन लिया। इस साल भी मिर्च की नई किस्म लगाएंगे। लेकिन हमेशा की तरह मल्चिंग नहीं लगाएंगे। श्री पाटीदार ने इसका कारण बताते हुए कहा कि मिर्च फसल के लिए मल्चिंग उपयुक्त नहीं हैं। मल्चिंग के बाद मिर्च में अलग-अलग खाद डालने में दिक्कत आती है। ड्रिप इरिगेशन से खाद देना सबके लिए सम्भव नहीं है।
श्री विजय यादव (नर्सरी) बामखल को उम्मीद है कि इस सीजन में मिर्च का रकबा बढ़ेगा। इन्होंने 7 एकड़ में मिर्च लगाई थी और औसत साढ़े तीन लाख रुपए/एकड़ का उत्पादन लिया। इस साल 10 एकड़ में मिर्च लगाएंगे। पिछले साल नवंबर-दिसंबर में पानी गिरने से मिर्च में फंगस लगने से वह दागी हो गई और रेट भी कम हो गए थे। श्री यादव ने कहा कि मिर्च के पौधों की कीमतें उसकी किस्म, आकार और संख्या पर निर्भर करती है। जो डेढ़ रुपए से लेकर ढाई रुपए प्रति पौधा तक होती है। जबकि ढकलगांव के नर्सरी वाले श्री प्रेमलाल चौधरी का कहना था कि इस वर्ष मिर्च का क्षेत्र 5 -7 प्रतिशत बढ़ेगा। मिर्च की फसल अच्छी रहेगी। अधिकांश किसान मिर्च के पौधों को नर्सरी से ले जाकर रोप रहे हैं। इसमें उनकी बीज के अंकुरण की जोखिम कम हो जाती है। पौधे की कीमत मिर्च किस्म के अनुसार रहती है। किसी कम्पनी का बीज महंगा हो तो पौधे के दाम ज़्यादा रहते हैं। ड्रिप सिंचाई तो सब करते हैं, लेकिन मल्चिंग नहीं लगाते। जो किसान मल्चिंग लगाकर पौधों की रोपाई के तुरंत बाद मल्चिंग के छेद को मिट्टी से ढंक देते हैं, इससे जो गैस बनती है, उससे पौधा खराब हो जाता है। जबकि उसे खुला छोडऩा चाहिए, ताकि पौधा साँस ले सके। बारिश होने पर छेद को बंद किया जाना चाहिए। वैसे निमाड़ के बहुत कम किसान मिर्च के लिए मल्चिंग लगाते हैं।
इसके विपरीत श्री शोभाराम चौधरी (नर्सरी) राजपुरा अमझेरा (धार) के विचार अलग मिले। उनका कहना था कि इस वर्ष मिर्च का रकबा कम होगा। किसानों का रुझान कम दिखाई दे रहा है। वायरस भी एक कारण है। मिर्च पकने पर अगस्त-सितंबर में भाव भी नहीं मिलते। यदि मावठा गिर जाए तो और नुकसान होता है। हालांकि श्री चौधरी ने अपनी नर्सरी में विभिन्न कंपनियों के मिर्च बीज से पौधे तैयार किए हैं, जो करीब डेढ़ से दो रुपए प्रति पौधा बिकते हैं। उनका यह भी कहना था, कि सब्जियों में गोभी, टमाटर सहित अन्य सब्जियों और सोयाबीन, कपास के दाम भी किसानों को अच्छे दाम मिल रहे हैं, इसलिए वह उस ओर रुख करेगा। वहीं श्री योगराज रामकिशन केलवा दतोदा (महू) इंदौर ने बताया कि पिछले साल आधा एकड़ में लगी मिर्च में वायरस आने से बहुत नुकसान हुआ। हरी मिर्च के दो-तीन तोड़े ही निकले थे कि वायरस के प्रकोप से फसल खराब हो गई। इस साल विचार करेंगे कि मिर्च लगाएं कि नहीं।
कपास की बिजाई के लिए समर्पित रासी सीड्स