राज्य कृषि समाचार (State News)

खाद के लिए किसान हो रहे परेशान, रीते पड़े है गोदाम

07 नवंबर 2024, भोपाल: खाद के लिए किसान हो रहे परेशान, रीते पड़े है गोदाम – राजस्थान के किसानों को खाद के लिए परेशान होना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि राज्य के अधिकांश जिलों में सहकारी समितियों में ही डीएपी नहीं है वहीं दुकानों के गोदाम भी खाद से रीते पड़े हुए है।

 राजस्थान के सांगोद से प्राप्त जानकारी के अनुसार   रबी की फसलों में किसानों को डीएपी खाद की सख्त जरूरत है। किसानों को कहीं भी जरूरत के अनुसार डीएपी नहीं मिल रहा। किसान डीएपी के लिए भटकने को मजबूर हैं। सहकारी समितियों के साथ ही दुकानों के गोदाम भी खाद की कमी से रीते पड़े है। मांग अनुरूप आपूर्ति नहीं होने से डीएपी की किल्लत ने किसानों की परेशानी बढ़ा रखी हैं। मुंह मांगा दाम देकर भी किसानों को पर्याप्त डीएपी नहीं मिल रहा। रोजाना किसान सहकारी समितियों व दुकानों पर भटक रहे हैं, लेकिन सब जगह डीएपी नहीं होने का जवाब मिल रहा है। डीएपी के अभाव में कई किसान बुवाई से भी पीछे हट रहे हैं। जिससे बुवाई भी पिछड़ती जा रही है। उल्लेखनीय है कि खेतों में अधिकांश किसानों ने सरसों, चना जैसी फसलों की बुवाई कर दी। किसान अंकुरित फसलों में सिंचाई कर रहे हैं। सिंचाई के दौरान ही किसानों को डीएपी की जरूरत पड़ रही है। वहीं तापमान अनुकूल होने से गेहूं की बुवाई भी शुरू होने लगी है। गेहूं की बुवाई में भी किसानों को डीएपी की जरूरत है। लेकिन डीएपी कहीं नहीं मिल रहा। डीएपी की किल्लत का आलम यह है कि किसान सब काम छोड़कर डीएपी के बंदोबस्त के लिए दुकानों व सहकारी समितियों में चक्कर काटने को मजबूर हैं। यहां डीएपी खाद आते ही किसानों की भीड़ लग जाती है। हजारों कट्टे थोड़ी देर में ही खत्म हो जाते है। कई किसानों को तो घंटों तक लाइनों में लगने के बाद भी डीएपी नहीं मिल पा रहा। गेहूं की बुवाई शुरू होने वाली है, ऐसे में मांग बढ़ने के बावजूद आपूर्ति कम हो रही है। किसान सिंगल सुपर फॉस्फेट, एनपीके, नैनो यूरिया और नैनो डीएपी का उपयोग कर सकते हैं जो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी है। नैनो यूरिया और नैनो डीएपी लगभग वहीं काम करता है, जैसे एक बोरी यूरिया करता हैं। डीएपी के स्थान पर नैनो डीएपी की एक बोतल एक बोरी के बराबर ही काम करता है। ये सस्ता होने के साथ ही खेतों में डालने में भी सुविधा होती है, लेकिन किसानों का इन उत्पादों पर विश्वास पैदा नहीं हो रहा।

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