राज्य कृषि समाचार (State News)

अतिवर्षा से फसलों को नुकसान: जल्द आकलन कर मुआवजा दें

08 अक्टूबर 2024, भोपाल: अतिवर्षा से फसलों को नुकसान: जल्द आकलन कर मुआवजा दें – मध्यप्रदेश में इस साल जून से सितम्बर तक यानी वर्षा के मौसम में सामान्य करीब 20 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है। सितम्बर माह के दूसरे पखवाड़े में काफी अधिक वर्षा होने से खरीफ की फसलों सोयाबीन, मूंग, उड़द, बाजरा, मक्का आदि को काफी नुकसान होने की खबर है। इन्हीं दिनों लहसून, प्याज आदि की फसल भी लगाई जाती है। इस साल बीज की लहसुन की कीमत 500 से 600 रूपये किलो तक थी। अब अधिक वर्षा होने से लहसून के अंकुरित नहीं होने का खतरा भी मंडराने लगा है। किसानों को अतिवर्षा की दोहरी मार पड़ रही है। पिछले महीने ही सोयाबीन उत्पादक किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य से करीब एक हजार रूपये कम कीमत पर सोयाबीन की बिक्री होने पर विरोध दर्ज कराया था। किसानों के संगठनों ने रैली निकालकर आंदोलन तेज करने की चेतावनी भी दी थी। केंद्र सरकार ने त्वरित फैसला लिया और आश्वासन दिया कि सोयाबीन की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही की जाएगी। सोयाबीन के विक्रय का मामला जैसे तैसे सुलझा ही था कि अतिवर्षा से सोयाबीन, बाजरा, मक्का, उड़द, मूंग आदि की फसलों को नुकसान होने के समाचार हैं।

मध्य प्रदेश के सोयाबीन उत्पादक जिलों में फसलों को नुकसान तो हुआ है, लेकिन राजगढ़, धार, सीहोर, रायसेन, दमोह, देवास, मंदसौर और सागर जिलों में यह नुकसान 50 फीसदी से ज्यादा बताया जा रहा है। कई इलाकों में तो किसानों की पूरी फसल बर्बाद हो गई है। जहां कटाई हो चुकी थी, वहां भी खेतों में रखी फसल पानी में डूब गई। जिससे फसल खराब होनी शुरू हो गई है। खेतों में पानी भरने से कटाई तो प्रभावित होने के साथ ही उत्पादन पर भी असर पड़ेगा। फसल के पानी में भीगने से सोयाबीन सहित अन्य फसलों के दानों में नमी होने से गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा। काफी संख्या में किसान बीज भी घर में ही तैयार करते हैं। पानी में भींगने और नमी के कारण इनका बीज के रूप में उपयोग नहीं कर सकेंगे। इस कारण किसानों को महंगा बीज खरीदने पर मजबूर होना पड़ेगा। किसान संगठन सोयाबीन की खरीदी 6000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदी करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही वे चाहते हैं कि फसलों को हुये नुकसान का मुआवजा भी शीघ्र दिलाया जाए। मुआवजा को लेकर नियमों का पेंच भी फंस सकता है। नियमों के मुताबिक फ़सलों को 25 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर ही किसानों को मुआवज़ा मिलता है। ऐसी स्थिति में अधिकांश प्रभावित किसानों को मुआवज़ा आसानी नहीं मिल सकेगा।

अब गेंद राज्य और केंद्र सरकार के पाले में है। बड़े किसान तो किसी तरह प्राकृतिक आपदा से हुये नुकसान को झेल सकते हैं लेकिन लघु और सीमांत किसानों के लिये तो यह मुश्किल की घड़ी है। जहां 25 प्रतिशत से अधिक नुकसान हुआ है, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से भरपाई हो जाएगी लेकिन 25 प्रतिशत से कम नुकसान होने पर किसानों को कोई राहत नहीं मिलेगी। भले ही फसल को कम नुकसान हुआ है लेकिन उपज की गुणवत्ता प्रभावित होने का आकलन फसल के नुकसान में शामिल किया जाना चाहिए। एक बड़ी समस्या यह भी आ सकती है कि सभी किसान फसल बीमा नहीं करवाते हैं। जिन किसानों ने बीमा नहीं करवाया है उन्हें भी मुआवजा देने में सरकार को उदारता दिखानी चाहिए। जब सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्र में अनेक रियायतें देने का वादा करती हैं और उसे पूरा भी करती है। लाखों हितग्राहियों को नगद राशि भी देती है। इसी तरह प्राकृतिक आपदा होने पर भी प्रभावित किसानों को राहत राशि दी जानी चाहिए। किसान तो केवल इतना चाहते हैं कि उनकी फसल की सही कीमत मिल जाये और और प्राकृतिक आपदा से फसलों को जो नुकसान हुआ है, उसका मुआवजा मिल जाए। बरसात का मौसम समाप्त हो चुका है। फसल को हुए नुकसान का आकलन शीघ्र करवाकर प्रभावित किसानों को जितना जल्दी हो सके, मुआवजा दिलाने का प्रयास करना चाहिये। यदि किसानों को समय पर मुआवजा मिल जाता है तो वे उत्साह के साथ रबी की फसल की तैयारी करने में जुट जाएंगे। किसानों की हितेषी कहलाने वाली सरकार के लिये ये मौका है कि वह प्रभावित किसानों की मदद कर कथनी और करनी में कोई भेद न करने का प्रमाण भी दें।

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