राज्य कृषि समाचार (State News)

पराली से बायोगैस उत्पादन एक प्रबल संभावित तकनीक

गीता, स्मिता श्रीवास्तव, श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय, पलवल, हरियाणा; अंजली त्रिपाठी आईएफटीएम विश्वविद्यालय, मुरादाबाद, उ. प्र. |

20 अप्रैल 2024, मुरादाबाद: पराली से बायोगैस उत्पादन एक प्रबल संभावित तकनीक – भारत में लगभग 43.95 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है जिसमें उत्पादित चावल एवं भूसे का अनुपात 1:1.5 होता है उत्पादित धान के भूसे के कुछ हिस्सों का उपयोग आधुनिक बायोमास पावर प्लांट, ईंट भट्टों, कार्डबोर्ड बनाने, मशरूम की खेती आदि के लिए किया जाता है एवं कुछ हिस्सों का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू बायोमास कुकस्टोव के ईंधन के रूप में किया जाता है। कंबाईन हार्वेस्टर से कटाई के करण खेतों से सारा भूसा एकत्रित नहीं हो पाता है एवं इसके भंडारण से जुड़ी समस्या के कारण किसान इसे रुपये प्रति मीट्रिक टन की गैर किफायती कीमत पर बेच देते हैं अथवा लगभग दो-तिहाई भूसे को खेतों में खुले तौर पर जला दिया जाता है ताकि खेत को तुरंत अगली गेहूं फसल की बुवाई के लिए तैयार किया जा सके।

धान की पराली जलाने से ग्रीन हाऊस गैसों का उत्पादन

शोधकर्ताओं को सुझाव है कि धान के भूसे के खुले मैदान में जलने से हानिकारक ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में भारी योगदान होता है जिनमें पोलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाईद्रोकारबंस (क्क्र॥ह्य), पोलीक्लोरोनेटि डाइबेनजो-पी-डाइऑक्सिन्स (क्कष्टष्ठष्ठह्य) एवं पोलिक्लोरीनेटेड डिबेंज़ोफुरन्स (क्कष्टष्ठस्नह्य) जिन्हें डाइऑक्साइंस भी कहा जाता है। प्रयोगात्मक रूप से, यह मूल्यांकन किया गया है कि एक टन धान की पराली जलाने से 3 किलो कण पदार्थ, 60 कार्बन मोनोआक्साईड, 1460 किलो कार्बन डाईऑक्साईड, 199 किलो राख एवं 2 किलो सल्फर डाईऑक्साईड उत्सर्जित होता है। स्थानीय रूप से पराली को जलाने से यह पर्यावरण को प्रभावित करता है क्योंकि इन वायु प्रदूषकों में विषैले गुण होते हैं जोकि संभावित कैसर जनित होते हैं। चूंकि नीवकरणीय ऊर्जा संसाधन भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार भिन्न होते हैं, धान के भूसे से जैव ऊर्जा उत्पादन का हरियाणा और पंजाब और भारत के अन्य उत्तरी राज्यों में व्यापक दायरा है।

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धान की पराली का अवायवीय पाचन

बायोमास संसाधनों को संभालकर, ऊर्जा और जैव उर्वरक का उत्पादन करने के लिए, अवायवीय पाचन तकनीक, ऊर्जा उत्पादन/इनपुट अनुपात के मामले में एक सबसे प्रभावी तरीका है। बायोमीथेनेशन उद्देश्यों के लिए धान की पराली को गांठ के रूप में संग्रहीत किया जा सकता है। इसके अलावा, धान की पुआल का आकार 3-5 मि.मी. के स्तर पर घटाने के लिए एक पुलावीकरण इकाई का उपयोग किया जा सकता है। धान से भूसे के निकटतम विश्लेषण से पता चला है कि धान के भूसे में 10 प्रतिशत नमी और 900 प्रतिशत कुल ठोस पदार्थ जबकि 84 प्रतिशत और 16 प्रतिशत अस्थिर ठोस पदार्थ और राख पदार्थ होते हैं। अंतिम विश्लेषण के परिणामस्परूप सूखे वजन के आधार पर 40 प्रतिशत कार्बन, 5.50 प्रतिशत हाइड्रोजन की मात्रा बहुत कत है (ष्ट/हृ = 54-0 ) । धान के भूसे के रचनात्मक विश्लेषण में 39.90 प्रतिशत सेलूलोज़, 24.0 प्रतिशत हेमिसेल्यूलोज और 5.6 प्रतिशत लिग्निन का खुलासा हुआ। बायोमीथेनेशन की क्रिया अवायवीय पाचकों में की जाती है जहां पंप का उपयोग करके फ़ीडिंग इकाई के माध्यम से तैयार धान की पराली के सब्सट्रेट को डायजेस्टर को फीड जाता है। इन बायोगैस संयंत्रों में कोई बाहरी तापीय स्रोत की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उत्तरी भारत का वार्षिक औसत तापमान मेसोफिलिक रेंज के भीतर है। डायजेस्टर में 8-10 प्रतिशत टीएस बनाए रखने के लिए लोडिंग दर की जा सकती है जबकि 30 दिनों के हाइड्रोलिक प्रतिधारण समय (एचआरटी) में डायजेस्टर को बनाए रखा जा सकता है। पाचित स्लरी को ठोस – तरल पृथक मशीन का उपयोग करके अलग किया जा सकता है। धान के भूसे से बायोमीथेन उत्पादन के विश्लेषण से पता चला कि ऊर्जा रूपांतरण का यह मार्ग उपलब्ध उपयोगी ऊर्जा और ग्लोबल वार्मिंग क्षमता के मामले में सबसे अधिक कुशल है। बिजली उत्पादन के आंकड़ों से पता चला है कि बायोमीथेन द्वारा 7770 किलोवाट/टन धान की पराली का बिजली उत्पादन होता है जबकि आउटपुट/इनपुट ऊर्जा अनुपात 5.5 होती है।

बायोमीथेनेशन उसी धान की पराली से अतिरिक्त ऊर्जा लेने के साथ ही एक अतिरिक्त लाभ के रूप में टिकाऊ कृषि के लिए एक मूल्यवान खाद प्रदान करता है। विश्लेषण से पता चला कि धान के भूसे की बायोमीथेनेशन द्वारा नेट ग्लोबल वार्मिंग क्षमता में 2,750 किलो कार्बन डाईआक्साईड उत्सर्जन/टन कम कर देता है। यह सुझाव दिया जा सकता है कि एनारोबिक पाचन मार्ग के माध्यम से बायोमीथेन उत्पादन के लिए धान के भूसे का उपयोग ऊर्जा और पर्यावरण अर्थशास्त्र के मामले में सबसे अच्छा तरीका है। विकेंद्रीकृत और केंद्रीकृत प्रणाली के वाणिज्यिक बायोगैस उत्पादन संयंत्रों को लॉजिस्टिक लागत कम करने के लिए गांवों के समूह स्तर पर उचित रूप से स्थापित किया जा सकता है। उपलब्ध ऊर्जा को खाना पकाने के साफ एवं हरे ईंधन के रूप में, बिजली उत्पादन के साथ-साथ वाहनों की आवश्यकता के आधार पर वाहन ईंधन अनुप्रयोगों की आपूर्ति के लिए उपयुक्त रूप से उपयोग किया जा सकता है।

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सतत विकास दृष्टिकोण

धान के भूसे प्रबंधन के लिए बायोगैस आधारित ऊर्जा समाधान स्थिरता के सभी मानदंडों पर खरा उतरता है। यह समाधान भी तकनीकी रूप से व्यवहार्य और पर्यावरण अनुकूल है। वाणिज्यिक बायोगैस उत्पादन उद्योगों की स्थापना के माध्यम से धान के भूसे और अन्य फसल अवशेषों को खुले में जलाने से बचाया जा कसता है। यह सब्सट्रेट के सडऩे के कारण हुई मीथेन उत्सर्जन को कम करता है। बायोगैस का उपयोग उर्वरक, कीटनाशकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम कर सकता है। साथ में मिट्टी के स्वास्थ्य और क्षतिग्रस्त नमकीन उपजाऊ भूमि को पुन: प्राप्त करने की क्षमता रखता है। जैव उर्वरक फॉस्फेट निर्धारण समस्या पर काबू पाने में मदद कर सकते हैं। सरकार ने बिजली और उर्वरकों को भारी सब्सिडी दी और और बायोगैस संयंत्र के उत्पादों को सब्सिडी वाले मूल्य के साथ प्रतिस्पर्धा करना है। इसलिए, बायोगैस संयंत्र से निर्मित जैविक उर्वरक को फॉस्फेटिक रासायनिक उर्वरक के समान मूल्य पर रखा जा सकता।

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यह विदेशी मुद्रा बहिर्वाह को भी बचाएगा क्योंकि अधिकांश रासायनिक फॉस्फेट भारत में आयात किए जाते हैं। बायोगैस से उत्पादित बिजली को अलग-अलग कीमतों पर वापस किया जा सकता है। धान के भूसे से 300 घन मी./ टन बायोगैस की वर्तमान उत्पादकता को और अधिक टिकाऊ बनाने के लिए इस क्षेत्र में आगे के अनुसंधान और विकास के साथ सुधार किया जा सकता है। धान के भूसे बायोगैस का उत्पादन इसलिए रोजग़ार उत्पादन में सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से मदद करेगा, जिसके कारण यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं बल्कि आकर्षक भी है।

बाधायें

धान से भूसे से बायोगैस के उत्पादन में प्रमुख बाधा बायोगैस संयंत्र के जैविक खाद का प्रचार है सरकारी विभाग, विशेष रूप से कृषि, विश्वविद्यालयों द्वारा प्रस्तावित फसलों के पैकेज एवं प्रैक्टिस में जैविक खाद के उपयोग का जि़क्र नहीं किया जाता है। रासायनिक उर्वरकों के विपरीत, जैविक खाद तत्काल परिणाम नहीं दिखाता है लेकिन दीर्घकालिका महत्वपूर्ण परिणाम होते हैं। इसलिए, सरकार को इसे व्यवहार्य बनाने के लिए किसानों को अधिक प्रभावी तरीके से जागरूक करने के लिए पहल करें।

निष्कर्ष

धान से भूसे का जलाया जाना भारत में एक गंभीर चिंता का विषय है और यह नीति निर्माताओं और शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित कर रही है। इस प्रकार निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह कहा जा सकता है कि लाभ दिए जाने पर, बायोगैस से उत्पन्न ऊर्जा की आपूर्ति ग्रामीण व्यवसायों और उद्यमों को बढऩे और समृद्ध होने में सहायता करेगी, कार्बनिक उर्वरकों के उत्पादन और उपयोग से मिट्टी में सुधार होगा और उपज में वृद्धि होगी, और इससे स्थानीय नौकरी के अवसर पैदा करके रोजग़ार उत्पादन में भी मदद मिलेगी यह कहना एक संदिग्ध तथ्य नहीं होगा कि बायोगैस आधारित ऊर्जा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए टिकाऊ समाधान प्रदान कर सकती है। ऐसी परियोनाओं के माध्यम से, इस क्षेत्र में समग्र स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह ग्रामीण समुदाय के सशक्तिकरण का वादा करता है, जो इसे एक बहुगुणीन और स्केलेबेल मॉडल बनने के लिए उपयुक्त बनाता है ।

पर्यावरण, ऊर्जा और कृषि क्षेत्रों पर उनके व्यापक पहुंचने वाले सकारात्मक प्रभाव के कारण, धान के भूसे आधारित बायोगैस संयंत्र एक नयी पहल के साथ टिकाऊ विकास के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं जिससे किसानों और उद्योगों के बीच पारस्परिक लाभ के लिए लाभदायक भागीदारी बनाई जा सकती है।

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