राज्य कृषि समाचार (State News)पशुपालन (Animal Husbandry)

बरगुर गाय: अनोखी देसी नस्ल जो दिखने में अलग, लेकिन दूध में छिपे हैं औषधीय गुण; जानिए इसकी खासियतें

22 सितम्बर 2025, भोपाल: बरगुर गाय: अनोखी देसी नस्ल जो दिखने में अलग, लेकिन दूध में छिपे हैं औषधीय गुण; जानिए इसकी खासियतें – भारत में गाय को केवल पशु नहीं बल्कि माता का दर्जा दिया जाता है। अलग-अलग राज्यों में देसी गायों की कई प्रसिद्ध नस्लें पाई जाती हैं, जैसे गिर, साहिवाल, थारपारकर, लाल सिंधी आदि। लेकिन इन लोकप्रिय नस्लों के बीच एक ऐसी देसी गाय की नस्ल भी है, जिसे कम ही लोग जानते हैं — इसका नाम है बरगुर गाय। ये गाय अपने अलग लुक, मजबूत शरीर और औषधीय गुणों से भरपूर दूध के कारण धीरे-धीरे किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है।

तमिलनाडु के इरोड जिले की बरगुर पहाड़ियों में पाई जाने वाली इस नस्ल को वहीं के पर्यावरण और मौसम के अनुसार प्राकृतिक रूप से ढाला गया है। यही कारण है कि इसका शरीर मजबूत, हड्डीदार और जलवायु सहन करने में सक्षम होता है। बरगुर गाय देखने में दूसरी देसी गायों से अलग होती है। इसके शरीर पर सफेद या भूरे रंग के धब्बे होते हैं, माथा उभरा हुआ और सींग नुकीले होते हैं।

कहां पाई जाती है बरगुर गाय?

बरगुर गाय मुख्य रूप से तमिलनाडु के इरोड जिले की बरगुर पहाड़ियों में पाई जाती है। यह नस्ल पूरी तरह से स्थानीय वातावरण के अनुसार ढली हुई है और पहाड़ी इलाकों में चरने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। ये गायें आमतौर पर जंगलों या खुली पहाड़ियों में चराई करती हैं, जिससे इनका शरीर फुर्तीला और मजबूत बना रहता है।

दूध में छिपे हैं औषधीय गुण

बरगुर गायें भले ही अन्य नस्लों की तुलना में कम दूध देती हैं, लेकिन इनका दूध औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। एक बरगुर गाय साल भर में लगभग 250 से 1300 लीटर दूध देती है, जो कि व्यापारिक दृष्टि से कम हो सकता है, लेकिन इसकी गुणवत्ता के कारण इसकी मांग बनी हुई है। कई रिपोर्ट्स और स्थानीय जानकारों के अनुसार, बरगुर गाय का दूध पाचन में मददगार, इम्यूनिटी बढ़ाने वाला और शारीरिक ऊर्जा बढ़ाने वाला होता है।

ताकतवर शरीर, मेहनती स्वभाव

बरगुर गाय को उसकी शारीरिक ताकत के लिए भी जाना जाता है। यह नस्ल बेहद फुर्तीली होती है और कठिन इलाकों में काम करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। पहले के समय में इन्हें खेतों में हल चलाने और सामान ढोने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। यह नस्ल बीमारियों से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता रखती है, जिससे इनका रख-रखाव भी अपेक्षाकृत आसान होता है।

किसानों के लिए वरदान बन रही है ये नस्ल

हाल के वर्षों में स्थानीय नस्लों को बढ़ावा देने की मुहिम के तहत बरगुर गाय को भी फिर से पहचान मिल रही है। तमिलनाडु सरकार और कुछ पशुपालन संस्थानों द्वारा इस नस्ल के संरक्षण और संवर्धन पर कार्य किया जा रहा है। कई छोटे और मध्यम किसान अब इस नस्ल की ओर आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि यह कम संसाधनों में भी पल सकती है और इसका दूध बाजार में अच्छे दाम पर बिकता है।

देखभाल और आहार

बरगुर गाय की देखभाल में विशेष खर्च की जरूरत नहीं होती, लेकिन इन्हें साफ-सुथरा और सूखा वातावरण देना जरूरी होता है। इनके लिए छायादार शेड, बरसीम की सूखी घास, मक्की, जौं, ज्वार, बाजरा और भूसे का संतुलित आहार दिया जाता है। सीमित साधनों में भी यह नस्ल अच्छे स्वास्थ्य में बनी रहती है।

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