किसानों से खेतों में नरवाई न जलाने की अपील
22 फ़रवरी 2025, बड़वानी: किसानों से खेतों में नरवाई न जलाने की अपील – फसल काटने के पश्चात तने के जो अवशेष बचे रहते हैं , उन्हें नरवाई कहते है। किसानों से अनुरोध है कि गेहूं , गन्ना फसल कटाई के पश्चात अवशेषों को जलाया नहीं जाए । ध्यान रहे खेतों में नरवाई जलाना प्रतिबंधित है।
अवशेषों का पुनर्चक्रण – जिन क्षेत्रों में कम्बाईन हार्वेस्टर से फसल कटाई की जाती है। वहां हार्वेस्टर के साथ स्ट्रा रीपर एवं रीपर- कम बाइंडर के उपयोग करने की सलाह है। जिससे फसल को काफी नीचे से काटा जा सकता है। नरवाई जलाने की अवश्यकता नहीं होती है। और शेष फसल अवशेषों का पुनः चक्रण (रिसाइकल) कर भूमि में सीधा रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मिलाना या वर्मी कम्पोस्ट व कम्पोस्ट बनाकर खेतों में उपयोग करना चाहिये। जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति में बढ़ोत्तरी होगी तथा उत्पादन भी बेहतर प्राप्त होगा।
अवशेष जलाने के नुकसान – फसल अवशेष जलाने से आगजनी की आशंका के साथ-साथ भूमि में उपलब्ध लाभदायक सुक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते है. जिससे जैव कम्पोस्ट बनने में कमी आती है। फसल अवशेषों को जलाने से होने वाली पर्यावरणीय एवं मृदा जनित समस्याएं मृदा के भौतिक गुणो पर प्रभाव मृदा सतह कड़ी व जल धारण क्षमता में कमी। मृदा पर्यावरण पर प्रभाव लाभदायक सूक्ष्म जीवों में कमी । मृदा में उपस्थित पोषक तत्वों नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश में कमी । मृदा में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ में कमी । वायु प्रदूषण ,हरित गैस कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रस आक्साइड आदि के उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंग हेतु उत्तरदायी होने के साथ मवेशियों हेतु चारे की कमी हो जाती है ।
अवशेषों को भूमि में मिला देने के लाभ – उपलब्ध फसल अवशेषों को जलाने की बजाय भूमि में मिला देने से किसानों को कार्बनिक पदार्थ एवं पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि। मृदा भौतिक गुणों में सुधार, मृदा सतह की कठोरता कम, जल धारण , मृदा उर्वरता में सुधार एवं फसल उत्पादकता में वृद्धि का लाभ प्राप्त होता है। लाभदायक सूक्ष्म जीवों में वृद्धि से अच्छे जैविक खाद की उपलब्धता होती है।
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