गांव के तालाब की सफाई की जिम्मेदारी उठाई एक कीड़े की सेना ने
21 अप्रैल 2025, नई दिल्ली: गांव के तालाब की सफाई की जिम्मेदारी उठाई एक कीड़े की सेना ने – मध्य भारत में एक विदेशी जलीय खरपतवार साल्विनिया मोलेस्टा ने हाल के वर्षों में सिंचाई, मछली पालन और जल स्रोतों की उपलब्धता पर बड़ा असर डाला है। यह ब्राजील मूल का यह खरपतवार बेहद आक्रामक है और अब इसे दुनिया की 100 सबसे खतरनाक इनवेसिव प्रजातियों में गिना जाता है।
पिछले कुछ समय में इसकी उपस्थिति केरल और दक्षिण भारत से निकलकर ओडिशा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र होते हुए मध्य प्रदेश के बैतूल, जबलपुर और कटनी जिलों तक पहुंच गई। सतपुड़ा जलाशय से लेकर गांवों के छोटे-छोटे तालाबों तक यह खरपतवार फैल गया, जिससे जलविद्युत उत्पादन, नाव यातायात और खासकर मछली पालन जैसे स्थानीय व्यवसायों पर सीधा असर पड़ा।
समस्या जो हाथ से नहीं सुलझी
कटनी जिले के पडुआ गांव में एक तालाब पिछले तीन साल से साल्विनिया मोलेस्टा से बुरी तरह प्रभावित था। ग्रामीणों ने इसे हाथ से हटाने की कोशिश की, लेकिन खरपतवार की तेज़ी से बढ़ती प्रकृति और भारी बायोमास के कारण यह मुमकिन नहीं हो सका। पौधे की पुनः वृद्धि और यांत्रिक तरीकों की ऊँची लागत ने इसे और जटिल बना दिया।
समाधान: एक छोटा कीट, बड़ी उम्मीद
2019 के अंत में इस तालाब में एक जैविक प्रयोग शुरू किया गया। केरल के त्रिशूर से लाए गए एक विशेष प्रकार के कीट Cyrtobagous salviniae (सिर्टोबैगस साल्विनिया) को तालाब में छोड़ा गया। यह कीट खासतौर पर साल्विनिया मोलेस्टा पर हमला करता है।
जबलपुर स्थित भाकृअनुप-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय द्वारा कीट की प्रभावशीलता को परखने के बाद कटनी के तालाब में इसे इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया। शुरू में इसके कोई खास नतीजे नहीं दिखे। कीड़ों की आबादी धीरे-धीरे बढ़ी और छह महीने तक कोई असर साफ नजर नहीं आया।
ग्यारह महीनों के अंदर कीटों की संख्या बढ़कर 125.5 वयस्क प्रति वर्ग मीटर हो गई, और साल्विनिया का घनत्व घटने लगा। आठवें महीने तक 50%, ग्यारहवें महीने में 80% और अठारहवें महीने में पूरे 100% खरपतवार को नियंत्रित कर लिया गया।
यह कीट साल्विनिया के अंतिम कलियों को खाकर और उसके लार्वा जड़ में सुरंग बनाकर पौधे के पुनर्जनन को रोक देते हैं। जब खरपतवार कम होने लगा तो कीटों की संख्या भी अपने आप घटने लगी, जिससे यह संकेत मिला कि एक संतुलन स्थापित हो गया है।
हालांकि यह प्रक्रिया धीमी है, लेकिन साल्विनिया मोलेस्टा के नियंत्रण में जैविक तरीका न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि खर्चीले यांत्रिक उपायों से कहीं ज़्यादा टिकाऊ और सस्ता साबित हुआ।
यह मध्य भारत में किसी विदेशी जलीय खरपतवार के जैविक नियंत्रण की पहली सफल मिसाल है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी तकनीकों को शुरुआती चरणों में अपनाना ज्यादा फायदेमंद होता है, क्योंकि एक बार खरपतवार पूरी तरह फैल गया तो उसका हटाना कहीं ज्यादा मुश्किल और महंगा साबित होता है।
कटनी के एक तालाब से शुरू हुई यह जैविक प्रयोग भविष्य के लिए एक मॉडल बन सकता है, खासकर उन इलाकों में जहां पारंपरिक खरपतवार नियंत्रण के उपाय नाकाम हो चुके हैं। लेकिन यह भी साफ है कि ऐसे प्रयोगों में धैर्य, वैज्ञानिक निगरानी और स्थानीय भागीदारी जरूरी है।
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