राज्य कृषि समाचार (State News)

राजगढ़ जिले में सोयाबीन फसल हेतु कृषि वैज्ञानिकों की सलाह

10 अगस्त 2024, राजगढ़: राजगढ़ जिले में सोयाबीन फसल हेतु कृषि वैज्ञानिकों की सलाह –  कृषि विज्ञान केन्द्र राजगढ़ तथा  कृषि विभाग द्वारा गत दिनों ग्राम महू, पटटी, धामन्दा, गवाडा, उदनखेडी आदि गांवो के  खेतों  पर नैदानिक भ्रमण किया गया। कृषकों को कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.पी. शर्मा, डॉ. लाल सिंह, श्री एस.के. उपाध्याय तथा श्री राकेश परमार द्वारा किसानों को बताया गया  कि वर्षा के कारण कुछ क्षेत्रों में जलभराव की स्थिति होने के कारण कई प्रकार के कीट एवं व्याधियों का प्रकोप देखा जा रहा है। अतः किसानों को सलाह दी जाती है, कि नुकसान को कम करने हेतु शीघ्रता से जल निकासी की व्यवस्था करें।

अधिक वर्षा के कारण कुछ सोयाबीन की फसल में फफूंदजनित एन्थ्रेकनोज रोग (इस रोग के कारण तनों और फलियों पर असमान्य छोटे काले धब्बे दिखाई देने लगते है) एरियल ब्लाइट बीमारी (इस बीमारी के कारण  पत्तियों  पर असामान्य छोटे काले धब्बे दिखाई देते है, जो कि बाद की अवस्था में भूरे या काले रंग में परिवर्तन हो जाते है एवं सम्पूर्ण पत्ती झुलसी एवं कुछ नमी की उपस्थिति में पत्तियॉ ऐसे प्रतित होती है जैसे पानी में उबाल गई हो) तथा जड़ सड़न रोग (राइजोटोनिया) जिसमें पौधो की जड़े काली पड़ कर सड़ने लगती है आदि  बीमारियों का प्रकोप देखा जा रहा है।  अतः इनके नियंत्रण हेतु टेबूकोनाझोल (625 मि.ली./है.) अथवा टेबुकोनाजोल सल्फर (1 किग्रा/है.) अथवा पायराक्लोस्ट्रोबिन 20 डब्ल्यू.जी (500 ग्रा./है.) अथवा हेक्जाकोनाजोल 5 प्रतिशत ई.सी. (800 मिली./है.) से छिड़काव करें।

कुछ क्षेत्रों में सोयाबीन की फसल पर पीला मोजेक वायरस बीमारी का प्रकोप देखा गया है। अतः इसके नियंत्रण हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही अपने खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं। जिससे इसका संक्रमण फैलाने वाली सफेद मक्खी का नियंत्रण होने में सहायता मिले। इसके रोकथाम हेतु यह भी सलाह है कि फसल पर पीला मोजाइक रोग के लक्षण दिखते ही ग्रसित  पौधों  को अपने खेत से निष्कासित करें। ऐसे खेत में सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु अनुशंसित  पूर्व मिश्रित सम्पर्क रसायन जैसे बीटासायफ्लूथ्रिन इमिडाक्लोप्रिड (350 मि.ली./है.) या पूर्व मिश्रित थायोमिथाक्समलैम्बडा सायहेलोथ्रिन (125 मि.ली./है.) का छिड़काव करें। जिससे सफेद मक्खी के साथ-साथ पत्ती खाने वाले कीटो का भी एक साथ नियंत्रण हो सके।

यह भी देखने में आया है कि कुछ  क्षेत्रों  में लगातार हो रही रिमझिम वर्षा की स्थिति में पत्ती खाने वाली इल्लियों द्वारा पत्तियों को नुकसान  पहुंचाया  जा रहा है। ऐसी स्थिति में कृषकों को सलाह है कि  पत्तियां  खाने वाली  इल्ल्यों  के नियंत्रण हेतु संपर्क कीटनाशक जैसे इन्डोक्साकार्ब 333 मि.ली./है. या लैम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.9 सी.एस. 300 मि.मि./है. का छिड़काव करें। यदि पत्ती खाने वाली इल्लियों के साथ-साथ सफेद मक्खी का प्रकोप हो तो  कृषकों  को सलाह है कि इनके नियंत्रण हेतु बीटासायफ्लुथ्रिन इमिडाक्लोप्रिड 350 मि.ली./है. या थायमिथोक्सम लेम्बड़ा सायहेलोथ्रिन 125 मि.ली./ हे .का  छिड़काव करें।

सोयाबीन की फसल में तना मक्खी की गिडार (इल्ली) पत्ती के सिर से डंठल को अंदर से खाते हुए तने में प्रवेश करती है। तना मक्खी की पहचान मादा मक्खी आकार में 2 मि.ली. लम्बी भूरी एवं चमकदार काले रंग की होती है। मक्खी अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है, जो कि हल्के पीले रंग के होते है। शंखी भूरे रंग की होती है। गिडार (इल्ली) एवं शंखी हमेशा तने के अंदर पाई पाती है। प्रभावित  पौधों  के तने को चीरकर देखने पर लाल रंग की सुरंग दिखाई देती है तथा  पत्तियां  धीरे-धीरे पीली पड़ने लगती है। तना मक्खी के नियंत्रण हेतु  अनुशंसित कीटनाशीदवा जैसे – लैम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.9 सी.एस. (300 मि.ली./है.)अथवा पूर्व मिश्रित थायोमेथोक्जाम लेम्बडा सायहेलोथ्रिन (125 मि.ली./है.) का छिड़काव करें।अतः  कृषकों को सलाह है कि अपने खेत में फसल निरीक्षण के उपरांत पाए गए कीट विशेष के नियंत्रण हेतु  अनुशंसित  कीटनाशक की मात्रा को 500 लीटर/ हे . की दर से पानी के साथ फसल पर छिड़काव करें।

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