उत्तर प्रदेश में नमक प्रभावित जमीन से बंपर कमाई की नई कहानी
21 अप्रैल 2025, नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में नमक प्रभावित जमीन से बंपर कमाई की नई कहानी – कभी बंजर और नमक से प्रभावित मानी जाने वाली जमीनें अब उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए उम्मीद की किरण बन रही हैं। तकनीकी सहयोग और नवोन्मेषी खेती के तरीकों ने जौनपुर जिले के किसानों को नमक प्रभावित (सोडिक) मिट्टी से न सिर्फ फसल उगाने, बल्कि बंपर मुनाफा कमाने का रास्ता दिखाया है। यह कहानी है उन 21 किसानों की, जिन्होंने सॉडिक मिट्टी की चुनौतियों को अवसर में बदला और बासमती चावल की खेती से अपनी आय को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
नमक प्रभावित जमीन: एक बड़ी चुनौती
उत्तर प्रदेश में करीब 14 लाख हेक्टेयर जमीन सॉडिसिटी और लवणता की समस्या से जूझ रही है। जौनपुर जिले के पांच गांवों—लाजीपार, बीबीपुर, हसनपुर, चकवा और भाकुड़ा—में मिट्टी का पीएच मान 8.85 से 9.74 के बीच है, जो फसल उत्पादन के लिए प्रतिकूल है। ऊपर से बिजली की कमी, जलभराव, और मानसून की अनिश्चितता ने किसानों की मुश्किलें और बढ़ा दीं। स्थानीय किसान रामप्रसाद यादव बताते हैं, “पहले हम सिर्फ चावल और गेहूं पर निर्भर थे, लेकिन मिट्टी की खराब गुणवत्ता और बारिश की अनिश्चितता ने हमें मुश्किल में डाल रखा था।”
तकनीकी सहयोग और किसानों की मेहनत
2016 से 2018 के बीच, जौनपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) ने इन गांवों में एक अनूठा प्रयोग शुरू किया। इसका मकसद था नमक-सहिष्णु फसलें और उन्नत खेती के तरीकों को बढ़ावा देना। हसनपुर और चकवा गांवों में आयोजित वैज्ञानिक-किसान गोष्ठियों में करीब 60 किसानों ने हिस्सा लिया। इन गोष्ठियों में नमक प्रबंधन, उच्च उपज वाली फसलों, और किचन गार्डनिंग जैसे विषयों पर चर्चा हुई।
किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिए गए, जो उनकी जमीन की गुणवत्ता और जरूरी सुधारों की जानकारी देते थे। केवीके के विशेषज्ञ डॉ. अजय सिंह कहते हैं, “हमने किसानों को स्थानीय संसाधनों जैसे खेत की खाद और फसल अवशेष प्रबंधन का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही, नमक-सहिष्णु बासमती चावल की किस्म सीएसआर-30 को अपनाने की सलाह दी।”
बासमती सीएसआर-30: खेल बदलने वाली फसल
बासमती सीएसआर-30 ने इन किसानों की किस्मत बदल दी। इस किस्म ने नमक प्रभावित मिट्टी में भी 1.40 से 2.21 टन प्रति हेक्टेयर की शानदार उपज दी। किसान राजेश कुमार ने बताया, “पहले हम मोटे अनाज की खेती करते थे, जिसमें 18,000 से 35,000 रुपये प्रति हेक्टेयर का मुनाफा होता था। लेकिन सीएसआर-30 से हमें 22,800 से 48,400 रुपये प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ हुआ।”
इस फसल की खासियत यह थी कि इसे कम पानी और कम श्रम की जरूरत थी। किसानों ने सांडा विधि अपनाकर रोपाई में देरी की, जिससे श्रम और सिंचाई की लागत बची। साथ ही, इस विधि से उगाई गई फसल में खरपतवार भी कम हुआ, जिससे खरपतवारनाशी दवाओं का खर्च घटा। एक किसान ने बताया, “हमने पानी की पंपिंग पर प्रति हेक्टेयर 3,000 रुपये तक की बचत की, क्योंकि सीएसआर-30 को कम सिंचाई की जरूरत थी।”
बाजार में मिला प्रीमियम दाम
बासमती सीएसआर-30 की गुणवत्ता ने किसानों को बाजार में बेहतर दाम दिलाए। जहां स्थानीय चावल की किस्में 1,470 से 1,550 रुपये प्रति क्विंटल में बिकीं, वहीं सीएसआर-30 को 3,200 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिला। इससे किसानों की आय में 44,800 से 70,400 रुपये प्रति हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई।
इस सफलता का श्रेय सिर्फ तकनीक को नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत और उनके पारंपरिक ज्ञान को भी जाता है। कई किसानों ने स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर मिट्टी की गुणवत्ता सुधारी। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए खेत की खाद और फसल अवशेषों का इस्तेमाल किया गया। यह मिश्रित दृष्टिकोण न सिर्फ लागत प्रभावी था, बल्कि पर्यावरण के लिए भी टिकाऊ साबित हुआ।
जौनपुर के इस प्रयोग ने साबित किया कि नमक प्रभावित जमीन को उत्पादक बनाना संभव है। यह मॉडल न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि देश के उन 70 लाख हेक्टेयर क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है, जो सॉडिसिटी की समस्या से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी पहल को बड़े स्तर पर लागू करने के लिए नीतिगत समर्थन और जमीनी स्तर पर जागरूकता जरूरी है।
किसान रामप्रसाद मुस्कुराते हुए कहते हैं, “हमारी जमीन अब बोझ नहीं, बल्कि हमारी ताकत बन गई है।” यह कहानी न सिर्फ उनकी मेहनत की जीत है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सही दिशा में उठाए गए कदम असंभव को संभव बना सकते हैं।
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