क्या खेती में भी आएगी स्टार्टअप क्रांति? उद्योग और संस्थानों की नई योजना
आईआईएसईआर पुणे में इंडस्ट्री-अकादमिक कार्यशाला, विशेषज्ञों ने दिए सुझाव
20 मार्च 2025, भोपाल: क्या खेती में भी आएगी स्टार्टअप क्रांति? उद्योग और संस्थानों की नई योजना – कृषि में तकनीकी क्रांति लाने और अनुसंधान को व्यावसायिक रूप देने के लिए उद्योग और अकादमिक संस्थानों के बीच गहरा सहयोग आवश्यक है। इसी दिशा में पुणे स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) में ‘रिसर्च इनोवेशन फॉर कमर्शियलाइजेशन’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला का आयोजन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) इंदौर के एग्रीहब सेंटर ऑफ एक्सीलेंस द्वारा किया गया।
अनुसंधान से लेकर व्यावसायीकरण तक की खाई पाटने की जरूरत
कार्यशाला की शुरुआत में आईआईटी इंदौर के एग्रीहब सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की प्रमुख अन्वेषक प्रो. अरुणा तिवारी ने कहा कि उद्योग और अकादमिक जगत के बीच सहयोग से ही कृषि अनुसंधान को व्यावसायिक स्तर तक ले जाया जा सकता है। वहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के सहायक महानिदेशक डॉ. अनिल राय ने अनुसंधान और औद्योगिक अनुप्रयोगों के बीच की खाई को पाटने की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, “तकनीकी नवाचारों को व्यवहारिक रूप देने के लिए अकादमिक संस्थानों और उद्योगों का साथ आना जरूरी है। यह कृषि सहित कई क्षेत्रों में बड़ा बदलाव ला सकता है।”
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बदलेगी कृषि की तस्वीर
कार्यशाला में सी-डैक पुणे की वैज्ञानिक लक्ष्मी पनट ने कृषि क्षेत्र में मल्टी-बेनिफिशरी सहयोग को जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि तकनीक के उपयोग से कृषि उत्पादन को स्थायी और स्थिर बनाया जा सकता है।
असम साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, गुवाहाटी के कुलपति प्रो. नरेंद्र एस. चौधरी ने कहा कि कृषि के लिए एरिया-स्पेसिफिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) मॉडल विकसित करने की जरूरत है। इससे फसलों की उपज, जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
अघारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. प्रशांत ढकेफालकर ने कहा कि हरित क्रांति के बाद अब कृषि में एआई और एमएल आधारित अनुसंधान से नई तकनीकी क्रांति की जरूरत है। इससे भारत वैश्विक खाद्य उत्पादन और कृषि प्रौद्योगिकी में अग्रणी बन सकता है।
कार्यशाला के दौरान उद्योग और शिक्षण संस्थानों के विशेषज्ञों ने ओपन पैनल डिस्कशन में भाग लिया। इसमें उद्योगों के सामने आ रही चुनौतियों और उनके समाधान पर चर्चा हुई। साथ ही, अनुसंधान, उत्पाद व्यावसायीकरण और बौद्धिक संपदा (IP) प्रबंधन से जुड़ी समस्याओं पर भी बातचीत हुई।
कार्यशाला में एग्रीहब सेंटर के सहयोगी अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र, भारतीय फसलों के लिए समर्पित डेटा रिपॉजिटरी और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (HPC) अधोसंरचना की भी जानकारी दी गई।
कार्यशाला के दौरान बायोटेक कंसोर्टियम इंडिया लिमिटेड (BCIL) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए। इसके तहत केंद्रीय जैव प्रौद्योगिकी विभाग की विभिन्न कृषि तकनीकों पर उद्योग और अकादमिक संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाया जाएगा।
इसके अलावा, प्रिसीजन एग्रीकल्चर, जीनोम विश्लेषण और बीज परीक्षण क्षेत्र में काम कर रहे उद्योगों ने एग्रीहब परियोजना के तहत संयुक्त कार्यक्रम विकसित करने की सहमति जताई।
विभिन्न स्टार्टअप्स और गैर-सरकारी संगठनों (NGO) ने भी किसानों के लाभ के लिए संयुक्त कार्यक्रम शुरू करने की इच्छा जताई।
इस कार्यशाला से यह साफ हुआ कि तकनीकी नवाचारों को जमीन पर उतारने के लिए शिक्षण संस्थानों और उद्योगों का तालमेल जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि AI, ML और डेटा-संचालित अनुसंधान से कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए मजबूत बुनियादी ढांचे और दीर्घकालिक सहयोग की जरूरत होगी।
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