National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

कड़क फैसले की कड़वी कुनैन कौन खिलाए ?

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यूरिया-एनबीएस प्रणाली

24 जून 2023, नई दिल्ली: कड़क फैसले की कड़वी कुनैन कौन खिलाए ? – हाल में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने सिफारिश की है कि सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाले फ़र्टिलाइजऱ-यूरिया को भी अन्य फ़र्टिलाइजऱ की तरह एनबीएस प्रणाली (नुट्रीएंट बेस्ड सब्सिडी) में शामिल करना समीचीन होगा। इस सिफारिश के मूल में यही है कि नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और अन्य पोषक तत्व वाले उर्वरकों के दामों में एकरूपता रखी जा सके, ताकि इन उर्वरकों का आवश्यकतानुसार संतुलित उपयोग हो सके। सब्सिडी पर मिलने वाले यूरिया का और कम कीमत होने के कारण किसान भाई बेजा इस्तेमाल करते है और दुसरे पोषक तत्व वाले फ़र्टिलाइजऱ जिनकी भूमि को जरूरत है कम उपयोग में आते हैं। यूरिया की खपत औसतन 152 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही है। इस असंतुलित उपयोग से मिटटी की उर्वरता पर भी विपरीत असर पड़ा है। परिणामत:उतना ही उत्पादन लेने के लिए बहुत अधिक पोषक तत्वों का प्रयोग करना पड़ता है। अगर स्थिति लम्बे समय तक यही बनी रही तो कृषि और कृषक संकट में होंगे। कृषि आदान की दिनोदिन बढती कीमतों के साथ इस असंतुलित उर्वरक प्रयोग से खेती की लागत बढ़ रही है और उसके मुनाफे में कमी आ रही है।

वैसे यूरिया को एनबीएस के दायरे में लाने की कृषि लागत व मूल्य आयोग की अनुशंसा पूर्व में भी दी जाती रही है, परन्तु कोई भी सरकार किसानों से जुड़े इस नाजुक पहलु को सीधे नहीं छूना चाहती। इन्ही कारणों से फ़र्टिलाइजऱ सब्सिडी हर साल बढती रही और इस वर्ष सवा दो लाख करोड़ तक पहुँच गई। वहीँ यूरिया का इस्तेमाल भी 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया जबकि अन्य पोषक तत्वों के प्रयोगों में नगण्य बढ़ोतरी हुई। केंद्र सरकार और राज्यों के कृषि विभाग भी खेती में असंतुलित उर्वरक उपयोग से वाकिफ हैं परन्तु कड़क फैसले की कड़वी कुनैन कौन खिलाए?

देश में मोटे तौर पर यूरिया की खपत लगभग 340 लाख टन है, जबकि यूरिया का घरेलु उत्पादन लगभग 250 लाख टन ही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने मृदा परिक्षण आधारित अनेक नुस्खे विकसित किये हैं, जिसमें मिट्टी परिक्षण के आधार पर संतुलित और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (इंटीग्रेटेड नुट्रीएंट मैनेजमेंट) की सिफारिशंऔ हैं। हाल में किये गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक एनपीके का अनुपात 4:2:1 के स्थान पर 16:5:1 हो गया है।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय उर्वरक उपयोग की विसंगतियों से वाकिफ है और दूर करने के सारे प्रयास भी कर रही है, परन्तु 14 करोड़ किसानों के गले अपनी बात उतारना एवरेस्ट की चढ़ाई चढऩे जैसा है। यूरिया के अंधाधुंध उपयोग वाले इस विकट परिदृश्य में यूरिया के दामों में संतुलन बनाना, आगामी आम चुनावों को देखते हुए सरकार के लिए रस्सी पर नट के करतब से कम नहीं होगा।

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