राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

मत्स्य पालन क्षेत्र में ड्रोन प्रौद्योगिकी का उपयोग: केंद्रीय मंत्री ने कोच्चि में कार्यशाला का उद्घाटन किया

09 नवंबर 2024, नई दिल्ली: मत्स्य पालन क्षेत्र में ड्रोन प्रौद्योगिकी का उपयोग: केंद्रीय मंत्री ने कोच्चि में कार्यशाला का उद्घाटन किया –  केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री श्री जॉर्ज कुरियन ने 8 नवंबर 2024 को कोच्चि, केरल में मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर में ड्रोन प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग पर आयोजित एक कार्यशाला का उद्घाटन किया। यह कार्यशाला आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) द्वारा आयोजित की गई, जिसमें देशभर से विशेषज्ञों और मछुआरों ने हिस्सा लिया।

इस अवसर पर श्री जॉर्ज कुरियन ने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत 100 जलवायु-अनुकूल तटीय गांवों का विकास किया जाएगा, जिसका उद्देश्य मछुआरों की जीवनशैली को सशक्त बनाना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना है। उन्होंने यह भी कहा कि इन गांवों में बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए ₹2 करोड़ प्रति गांव का आवंटन किया जाएगा। इसमें मछली सुखाने के यार्ड, प्रसंस्करण केंद्र और आपातकालीन बचाव सुविधाएं शामिल होंगी।

ड्रोन प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बात करते हुए मंत्री ने कहा कि यह तकनीक मछली पकड़ने से लेकर जल नमूनाकरण, बीमारियों की पहचान और मछली फ़ीड प्रबंधन तक कई महत्वपूर्ण कार्यों में मदद करेगी। ड्रोन को जलवायु आपदाओं के दौरान मछली फार्मों की निगरानी और अन्य बुनियादी ढांचे के नुकसान का आकलन करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, ड्रोन मछलियों के व्यवहार की निगरानी भी कर सकते हैं और संकट के संकेतों का पता लगा सकते हैं।

कार्यशाला में केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. ग्रिंसन जॉर्ज और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड के मुख्य कार्यकारी डॉ. बीके बेहरा ने भी संबोधित किया। इसके अलावा, शिपिंग मंत्रालय के तकनीकी सहयोग से एक इंटरैक्टिव कार्यशाला भी आयोजित की गई, जिसमें मछली पकड़ने वाले जहाजों के पंजीकरण और सर्वेक्षण से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई।

कार्यशाला में मछली पालन क्षेत्र में ड्रोन के उपयोग के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा हुई और 700 से अधिक मछुआरों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया। इस पहल के माध्यम से मछुआरों की उत्पादकता में सुधार और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद मिलेगी।

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