किसानों की आवाज़: क्या यह हमेशा अनसुनी रहेगी?
रिपोर्ट: जग मोहन ठाकन
17 सितम्बर 2024, नई दिल्ली: किसानों की आवाज़: क्या यह हमेशा अनसुनी रहेगी? – देश के किसान, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा के, 2020 से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। किसान संगठनों ने 2020-21 के दौरान दिल्ली की सीमाओं पर 13 महीने से अधिक समय तक विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की गई थी, और इस दौरान 700 से अधिक किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी। आज भी, इन दोनों राज्यों के किसान मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पिछले सात महीनों से शंभू और खनौरी सीमाओं पर धरने पर बैठे हैं। इस आंदोलन के आयोजकों ने 22 सितंबर 2024 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में पिपली में एक महापंचायत आयोजित करने की घोषणा की है।
भारत की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ, भाजपा और कांग्रेस, एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए खुद को किसानों का असली हितैषी और रक्षक बताती हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि इन दोनों में से कौन वास्तव में किसानों के पक्ष में खड़ा है?
14 सितंबर 2024 को, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसान-हितैषी हैं और कृषि तथा किसानों का कल्याण उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। उन्होंने मोदी सरकार द्वारा किसानों के हित में लिए गए प्रमुख निर्णयों का उल्लेख किया, जैसे खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को 0% से बढ़ाकर 20% करना, जो अन्य घटकों को मिलाकर कुल 27.5% तक हो जाता है।
उसी दिन, प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस पर हमला करते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस ने किसानों की परवाह नहीं की और केवल झूठे वादे किए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस केवल अराजकता फैलाती है।
अंग्रेज़ी दैनिक ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट में प्रधानमंत्री मोदी के बयान का जिक्र है: “कांग्रेस ने कभी भी जनता की समस्याओं की परवाह नहीं की। देश में कांग्रेस से ज्यादा धोखेबाज और बेईमान पार्टी कोई नहीं है। कांग्रेस किसानों के लिए बड़ी-बड़ी बातें करती है और उन्हें बड़े सपने दिखाती है, लेकिन यह सब झूठ है। ये लोग MSP को लेकर शोर मचाते हैं, जबकि हरियाणा में, जहां भाजपा सत्ता में है, 24 फसलों की खरीद MSP पर की जाती है। मैं कांग्रेस को चुनौती देता हूँ कि अगर उनमें साहस है, तो वे कर्नाटक और तेलंगाना में, जहां वे सत्ता में हैं, अपनी किसान योजनाओं को लागू क्यों नहीं करते? वे कर्नाटक और तेलंगाना में कितनी फसलों की खरीद MSP पर करते हैं? इन राज्यों में विकास कार्य पूरी तरह से ठप हो गए हैं। कांग्रेस एक धोखेबाज पार्टी है।”
प्रधानमंत्री ने 19 जून 2024 को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता की और 2024-25 के विपणन सत्र के लिए सभी अनिवार्य खरीफ फसलों के MSP में वृद्धि को मंजूरी दी। एक PIB प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि 2003-04 से 2013-14 के बीच बाजरा की MSP में न्यूनतम वृद्धि ₹745 प्रति क्विंटल और मूंग की MSP में अधिकतम वृद्धि ₹3,130 प्रति क्विंटल हुई, जबकि 2013-14 से 2023-24 के बीच मक्का की MSP में न्यूनतम वृद्धि ₹780 प्रति क्विंटल और नाइजरसीड की MSP में अधिकतम वृद्धि ₹4,234 प्रति क्विंटल हुई।
प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि खरीफ फसलों के लिए MSP में वृद्धि 2018-19 के केंद्रीय बजट की घोषणा के अनुरूप है, जिसमें MSP को उत्पादन लागत का कम से कम 1.5 गुना तय किया गया है। उत्पादन लागत पर किसानों के लाभ मार्जिन का अनुमान बाजरा (77%) के लिए सबसे अधिक है, इसके बाद तूर (59%), मक्का (54%) और उड़द (52%) के लिए है। बाकी फसलों के लिए यह मार्जिन 50% निर्धारित किया गया है।
वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस की महासचिव और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा ने बीजेपी के MSP के दावों को खोखला बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार किसानों की MSP में पर्याप्त वृद्धि नहीं कर पाई है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने हर साल MSP बढ़ाकर अपनी किसान-हितैषी नीति को दर्शाया था, जबकि मोदी सरकार ने 10 साल में MSP में सिर्फ 54.1% की वृद्धि की है। शैलजा ने यह भी कहा कि कांग्रेस सरकार ने सभी फसलों की MSP में 150-200% तक की वृद्धि की, जबकि मोदी सरकार केवल 50% तक MSP बढ़ा पाई है, और इस दौरान कृषि की लागत में कई गुना वृद्धि हुई है।
किसान MSP से असंतुष्ट क्यों हैं?
केंद्र सरकार का दावा है कि MSP की गणना करते समय सभी प्रकार के खर्चों को ध्यान में रखा जाता है, जैसे कि मजदूरी, बीज, उर्वरक, सिंचाई खर्च, उपकरणों की मरम्मत आदि। लेकिन किसान कहते हैं कि MSP उत्पादन लागत (CoP) के A2+FL फॉर्मूले के आधार पर तय की जाती है, जबकि स्वामीनाथन आयोग ने C2+50% फॉर्मूले की सिफारिश की थी, जिसमें अधिक व्यापक लागतों को शामिल किया गया था।
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने A2+FL+50% फॉर्मूले पर आधारित MSP को अस्वीकार कर दिया है। SKM के अनुसार, हरियाणा में धान की C2+50% लागत ₹3012 प्रति क्विंटल है, जबकि वर्तमान MSP केवल ₹2300 प्रति क्विंटल है, जिससे किसानों को ₹712 प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है। SKM के अनुसार, 2023-24 में हरियाणा के धान किसानों को कुल ₹3851.90 करोड़ का नुकसान हुआ।
महत्वपूर्ण सवाल
अगर बीजेपी सरकार किसानों के हितों को लेकर इतनी चिंतित है, तो फिर 13 महीने लंबे ऐतिहासिक आंदोलन के बावजूद, जिसमें सैकड़ों किसानों ने अपनी जान गंवाई, MSP की कानूनी गारंटी क्यों नहीं दी जा रही है?
जैसे-जैसे हरियाणा विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं, यह सवाल और भी प्रासंगिक हो जाता है। SKM ने आगामी चुनाव में बीजेपी सरकार के खिलाफ किसानों की आवाज उठाने का फैसला किया है I
किसानों ने 2020-21 के आंदोलन के दौरान हुए दमन को नहीं भुलाया है, और उनकी आवाज़ें अब भी गूंज रही हैं। 15 सितंबर 2024 को, SKM के बैनर तले जींद के उचाना कलां में एक महापंचायत आयोजित की गई, जिसमें सभी फसलों के लिए MSP की कानूनी गारंटी की मांग दोहराई गई।
महापंचायत को संबोधित करते हुए किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा: “2020-21 के किसान आंदोलन में 833 किसानों ने बलिदान दिया था, और चल रहे आंदोलन में अब तक 33 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। हमारा संघर्ष सांसद या विधायक बनाने का नहीं है, बल्कि किसानों और मजदूरों के भविष्य की सुरक्षा के लिए है। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि उस पार्टी के खिलाफ मतदान करें जिसने हम पर लाठियाँ चलवाईं।”
सवाल अब यह है: क्या देश के अन्नदाता की आवाज़ सुनी जाएगी, या इसे राजनीतिक चालबाजियों और दमन के बीच दबा दिया जाएगा? क्या सत्तारूढ़ पार्टी किसानों की नाराजगी को नजरअंदाज कर रही है? फिलहाल, हरियाणा की धरती पर बीजेपी के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं दिख रही हैं। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में हवा किस दिशा में चलती है।
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