गेहूं के लिए नैनो-यूरिया: किसानों के लिए वरदान या नई चुनौती?
03 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: गेहूं के लिए नैनो-यूरिया: किसानों के लिए वरदान या नई चुनौती? – एक महत्वपूर्ण अध्ययन, “यूरिया और नैनो-यूरिया का जिंक उर्वरीकरण के साथ सापेक्ष प्रदर्शन: वृद्धि, उत्पादकता, और नाइट्रोजन उपयोग दक्षता पर प्रभाव”, ने भारतीय कृषि में नैनो-यूरिया के उपयोग पर नए दृष्टिकोण प्रदान किए हैं। यह शोध, जो 2021-2023 के बीच आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली में किया गया, वसंत गेहूं (ट्रिटिकम एस्टिवम) पर केंद्रित था, जो भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण फसल है।
मुख्य निष्कर्ष: नैनो-यूरिया और जिंक का प्रदर्शन
शोध ने पारंपरिक यूरिया और नैनो-यूरिया के फोलियर स्प्रे के साथ विभिन्न जिंक उर्वरीकरण तकनीकों की तुलना की। परिणामों से पता चला कि 130 किलो एन/हेक्टेयर पारंपरिक यूरिया का उपयोग लगातार नैनो-यूरिया से बेहतर रहा, खासकर अनाज और भूसे की पैदावार में। हालांकि, नैनो-यूरिया ने नाइट्रोजन की खुराक को कम किया, लेकिन यह फसल की नाइट्रोजन मांग को पूरा करने में विफल रहा, जिससे दो सीजन में पैदावार में 6.8-12.4% तक की गिरावट आई।
जिंक उर्वरीकरण एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के रूप में उभरा। 0.1% नैनो-जिंक ऑक्साइड का फोलियर स्प्रे गेहूं की पैदावार को 3.7-4.5% तक बढ़ाने में प्रभावी साबित हुआ। इसने नाइट्रोजन के अवशोषण में भी सुधार किया, जो उर्वरीकरण में जिंक को शामिल करने के महत्व को दर्शाता है।
उत्पादकता पर प्रभाव
130 किलो एन/हेक्टेयर नाइट्रोजन के साथ उर्वरित गेहूं के प्लॉट ने नियंत्रण प्लॉट की तुलना में 23.2-33.1% अधिक पैदावार दी। इन परिणामों ने अनुशंसित नाइट्रोजन स्तर बनाए रखने के महत्व को फिर से साबित किया। इसके विपरीत, 65 किलो एन/हेक्टेयर और नैनो-यूरिया के उपयोग से अनाज और भूसे की पैदावार में महत्वपूर्ण कमी देखी गई, जो पारंपरिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में नैनो-यूरिया की वर्तमान सीमाओं को उजागर करता है।
इसके बावजूद, शोध ने दिखाया कि नैनो-यूरिया पारंपरिक यूरिया के साथ उपयोग किए जाने पर पर्यावरणीय नाइट्रोजन हानि को कम करने और नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) को बढ़ाने में प्रभावी है। विशेष रूप से, 0.1% नैनो-जिंक ऑक्साइड के फोलियर स्प्रे ने नाइट्रोजन के अवशोषण और पैदावार को और बेहतर किया।
नीति और उद्योग के लिए सुझाव
यह अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि नैनो-यूरिया की क्षमता का पूरा लाभ उठाने के लिए नीति निर्माताओं, उर्वरक कंपनियों और कृषि क्षेत्र के हितधारकों को लक्षित हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। भारत के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर परीक्षण और प्रभावी नियमन आवश्यक हैं। सरकार को नैनो-यूरिया की पहुंच बढ़ाने और इसे किफायती बनाने के लिए सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए।
साथ ही, किसानों को इसके उपयोग और सीमाओं के बारे में जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। उर्वरक कंपनियों को नैनो-यूरिया के सूत्रीकरण में सुधार के लिए निवेश करना चाहिए और अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि लैब इनोवेशन को खेतों में लागू किया जा सके। इन कदमों से नैनो-यूरिया उत्पादकता बढ़ाने, नाइट्रोजन उपयोग दक्षता सुधारने और भारत में टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता
भारत की वर्तमान वार्षिक गेहूं उत्पादन क्षमता 107.86 मिलियन टन है, जिसे 2050 तक अनुमानित 140 मिलियन टन की मांग को पूरा करने के लिए 46% बढ़ाने की आवश्यकता है। नैनो-यूरिया, जो नाइट्रोजन की बर्बादी और पर्यावरणीय प्रदूषण को कम कर सकता है, इस प्रयास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि, इसकी वर्तमान सीमाएं संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को दर्शाती हैं।
इस अध्ययन ने यह स्पष्ट किया कि नैनो-टेक्नोलॉजी और पारंपरिक तरीकों का संयोजन बेहतर परिणाम दे सकता है। इस तरह का दृष्टिकोण नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में सुधार कर सकता है, लागत को कम कर सकता है और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा दे सकता है।
यह शोध, जो जर्नल ऑफ सॉयल साइंस एंड प्लांट न्यूट्रिशन में प्रकाशित हुआ है, आधुनिक कृषि में नैनो-यूरिया की भूमिका को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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