नाबार्ड और सीईईडब्ल्यू ने मिलाया हाथ – ग्रामीण भारत में जलवायु अनुकूल खेती और टिकाऊ आजीविका को बढ़ावा देने के लिए समझौता
हरित ग्रामीण अर्थव्यवस्था और जलवायु कार्रवाई पर केंद्रित सहयोग के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर
31 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: नाबार्ड और सीईईडब्ल्यू ने मिलाया हाथ – ग्रामीण भारत में जलवायु अनुकूल खेती और टिकाऊ आजीविका को बढ़ावा देने के लिए समझौता – भारतीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) ने आज एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य जलवायु अनुकूल (क्लाइमेट-रेज़िलिएंट) खेती को मजबूत करना, हरित ग्रामीण वित्त को बढ़ावा देना और भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में टिकाऊ आजीविका को सशक्त बनाना है। दोनों संस्थान नवाचार, निवेश और संस्थागत क्षमता को जोड़कर ऐसे मॉडल विकसित करेंगे जो किसानों और छोटे उद्यमों को बदलते जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल बनने में मदद करेंगे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को टिकाऊ विकास की दिशा में आगे बढ़ाएंगे।
यह साझेदारी नाबार्ड के व्यापक वित्तीय नेटवर्क और सीईईडब्ल्यू की नीतिगत एवं विश्लेषणात्मक विशेषज्ञता को जोड़ती है। दोनों मिलकर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हरित और लचीली अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तन को तेज़ करेंगे। सहयोग के तहत जलवायु अनुकूल कृषि, विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (डीआरई) आधारित उद्यम, टिकाऊ वानिकी और कृषि-वनीकरण, तथा हरित अर्थव्यवस्था से जुड़े ग्रामीण एमएसएमई को प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसके साथ ही डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाएगा, नए वित्तीय उपकरणों तक पहुंच बढ़ाई जाएगी और स्वैच्छिक कार्बन एवं ग्रामीण कार्बन बाजारों के माध्यम से हरित पूंजी को प्रोत्साहित किया जाएगा।
नाबार्ड के अध्यक्ष शाजी के. वी. ने कहा, “सीईईडब्ल्यू के साथ यह साझेदारी हमें उन्नत डेटा सिस्टम और जलवायु अनुकूल उपकरणों को हमारे संस्थागत ढांचे में एकीकृत करने में सक्षम बनाएगी। साथ मिलकर, हम जलवायु अनुकूल खेती के लिए व्यवहारिक समाधान विकसित करेंगे, हरित वित्त तक पहुंच बढ़ाएंगे और किसानों व ग्रामीण उद्यमों की अनुकूलन क्षमता को सुदृढ़ करेंगे।”
सीईईडब्ल्यू के संस्थापक-सीईओ अरुणाभा घोष ने कहा, “इस साझेदारी के माध्यम से हम डेटा आधारित और तकनीक-सक्षम प्रणालियां विकसित करेंगे, जो किसानों, हरित ग्रामीण उद्यमों और स्थानीय संस्थानों को बदलते जलवायु में सशक्त बनाएंगी। यह सहयोग पारदर्शिता और समावेशन पर आधारित नए वित्तीय उपकरणों—जैसे पैरामीट्रिक बीमा और स्वैच्छिक कार्बन बाजार—को मुख्यधारा में लाने में भी मदद करेगा। संस्थागत क्षमता और स्थानीय नेतृत्व को मजबूत कर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जलवायु अनुकूलता जमीनी स्तर से बने और आने वाली पीढ़ियों तक कायम रहे।”
यह एमओयू भारत की ग्रामीण विकास रणनीति में जलवायु अनुकूल कृषि को केंद्र में लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है—जहां आजीविका और हरित अर्थव्यवस्था इंजन का काम करेंगे, और हरित वित्त व कार्बन बाजार महत्वपूर्ण सहायक बनेंगे। नाबार्ड ने पहले ही ‘क्लाइमेट एक्शन एंड सस्टेनेबिलिटी विभाग’ (DCAS) स्थापित किया है और जलवायु-सुरक्षित वाटरशेड निवेश एवं कृषि मूल्य श्रृंखलाओं में कार्बन वित्त के एकीकरण पर परियोजनाएं शुरू की हैं। सीईईडब्ल्यू के शोध में यह भी बताया गया है कि संस्थागत क्षमता, तकनीकी पहुंच और वित्तपोषण ग्रामीण प्रणालियों की जलवायु अनुकूलता के लिए आवश्यक तत्व हैं।
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