National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

अंतरिम बजट 2024: क्या धनवान किसान आयकर के दायरे में आएंगे? 

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20 जनवरी 2024, नई दिल्ली(शशिकांत त्रिवेदी): अंतरिम बजट 2024: क्या धनवान किसान आयकर के दायरे में आएंगे?  – क्या आने वाले अंतरिम बजट में मोदी सरकार धनवान किसानों पर आयकर लगा सकती है? फिलहाल एक सुझाव सरकार को भेजा गया है जिस पर मंथन जारी है. रिजर्व बैंक की एक समिति ने भारत सरकार को इस तर्क के साथ यह प्रस्ताव भेजा है कि बहुत से किसानो को सरकार जो पैसा उनके कहते में डालती है वह एक तरह से उन्हें उनकी पर्याप्त आय न होने के कारण सरकार की तरफ से एक तरह के आयकर देने जैसा है या दूसरे शब्दों में एक नकारात्मक आयकर की तरह है। अभी सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत सालाना 6,000 रुपये (2000 रुपये की तीन किस्तों में ) सीधे किसानों के बैंक खाते में ट्रांसफर करती है। इस योजना की घोषणा सरकार ने 2019 में न्यूनतम आय सहायता के रूप में की थी।

रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल ने आगामी बजट के लिए अपनी इच्छा सूची प्रस्तुत करते हुए सुझाव दिया था कि मोदी सरकार को कर प्रणाली को और अधिक सुसंगत और निष्पक्ष बनाने के लिए अमीर किसानों पर आयकर लगाने के बारे में विचार करना चाहिए।

आगामी चुनावों के कारण इस वर्ष अंतरिम बजट 1 फरवरी 2024 को संसद में पेश किया जाएगा और उम्मीद है कि इसमें कराधान प्रणाली में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया जाएगा। इस सुझाव के बाद कई ख़बरें आती रही हैं मसलन मोदी सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि को 6000 रूपये से बढाकर 8000 रूपये कर सकती है. इसके अलावा गरीब कल्याण अन्न योजना में भी कुछ और सुधार कर सकती है. धनवान किसानों पर आयकर लगाने के सुझाव पर विचार इसलिए भी किया जा सकता है क्योंकि प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में हर चौथा हितग्राही महिला है.
आंकड़ों के मुताबिक 15 नवंबर, 2023 तक इस योजना में कुल 8.12 करोड़ किसान लाभार्थी थे, जिनमें 6.27 करोड़ (77.33%) पुरुष और 1.83 करोड़ (22.64%) महिलाएं थीं। मध्यप्रदेश में 14.84 लाख लाभार्थी सहित, उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 29.22 लाख महिला लाभार्थी थीं, इसके बाद बिहार में 22.48 लाख, महाराष्ट्र में 15.62 लाख, मध्य प्रदेश में 14.84 लाख और राजस्थान में 14.75 लाख लाभार्थी थीं। दिसंबर-मार्च 2018-19 में जब सरकार ने पहली किस्त जारी की थी तब कुल लाभार्थी की संख्या 3.03 करोड़ थी।

वर्तमान में आयकर कानून की धारा 10 के मुताबिक खेती की आय पर कर नहीं लगता। खेती पर आयकर लगाने का यह सुझाव नया नहीं है. सन 1980 के दशक में भी भारत में इस बात पर चर्चा हुई थी कि खेती को आयकर के दायरे में कैसे लगाया जाए क्योंकि कई किसान, गैर-किसानों की तुलना में अधिक पैसा कमाते हैं |

जिन क्षेत्रों में हरित क्रांति हुई, वहां उत्पादित अतिरिक्त फसल को दिखावटी खर्च में बर्बाद कर दिया गया। इसलिए, सरकार को इन अधिशेषों का एक हिस्सा इकट्ठा करने के लिए कराधान का उपयोग करना चाहिए। तर्क यह भी दिए जाते रहे हैं कि खेती के लिए जमीन के बेहतर उपयोग के लिए खेती से होने वाली आमदनी पर उचित कराधान आवश्यक है। इस प्रकार के प्रगतिशील कराधान से भूमि मूल्यों में गिरावट का अनुमान लगाया जाता रहा है। साथ ही यह भी कहा गया कि यदि व्यापार के आंतरिक क्षेत्रों में सुधार लाना है तो खेती में जहाँ कर लगाया जा सकता हो लगाना चाहिए। इस तरह के कर से वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा और धीरे-धीरे मुद्रीकृत क्षेत्र में अधिक से अधिक क्षेत्र आने लगेंगे। जापान, चीन और सोवियत संघ के उदाहरण भी दिए गए कि इन देशों ने अपने औद्योगीकरण संसाधनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खेती ही प्राप्त किया।

लेकिन भारत जैसे विशाल देश में खेती की आय पारिवारिक श्रम से ही आती है, जिसे स्वामित्व मानकर कर की गणना कर बहुत मुश्किल है। इसके खेती में कोई निश्चित आय नहीं होती लिहाज़ा खेती की आय में उतार-चढ़ाव, फसल के उत्पादन की मात्रा के अलावा बाहरी कारणों जैसे परिवहन और बाजार में फसल की उतार चढाव वाली बिक्री के कारण कर तय करना चुनौतीपूर्ण है। बीते दशक में किसानों की आत्महत्या के मामले बहुत बढे हैं, खेती पर लगने वाला आयकर नई चिंता पैदा करेगा इससे आत्महत्या के मामलों में कमी आने के बजाय बढ़ने की आशंका रहेगी।

अधिकतर भारतीय किसान भले ही अब साक्षर हों लेकिन वास्तविक आय या आय अर्जित का आकलन करना, आय के संबंध में खातों की व्यवस्थित दस्तावेज रखना या किसी अकाउंटेंट के पास जाकर हिसाब किताब रखवाना मुश्किल भरा हो सकता है. यह चिंता करना भी संभव है कि कर लगाने से ऋण केवल बड़े किसानों को ही मिलेगा क्योंकि उनके पास दिखाने के लिए अधिक आय होगी।

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