राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

भारत में नकली कृषि आदानों का बढ़ता कारोबार: किसानों और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा

16 जुलाई 2025, नई दिल्ली: भारत में नकली कृषि आदानों का बढ़ता कारोबार: किसानों और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा – भारत का कृषि क्षेत्र, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, नकली बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों के बढ़ते संकट से जूझ रहा है। राजस्थान में हाल ही में हुई छापेमारी से नकली कृषि आदानों के एक बड़े नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है, जिससे किसानों की आजीविका, फसल उत्पादकता और मिट्टी की दीर्घकालिक सेहत पर गंभीर सवाल उठे हैं।

इस घोटाले का पैमाना चौंकाने वाला है। केवल राजस्थान में ही 30 से अधिक फैक्ट्रियों पर छापे मारे गए, जहां संगमरमर का कचरा, पत्थर की धूल और कैंसरकारक रंगों को मिलाकर नकली उर्वरक और बीज बनाए जा रहे थे। ये मिलावटी उत्पाद न केवल फसलों को पोषण देने में विफल हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी नष्ट कर रहे हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

घोटाले का विस्तार

जांच में पता चला कि जयपुर, किशनगढ़ और श्रीगंगानगर में फैक्ट्रियां संगमरमर के कचरे, रेत और सिंथेटिक रंगों को मिलाकर नकली उर्वरक बना रही थीं। इन उत्पादों को प्रसिद्ध ब्रांडों के नाम पर पैक करके राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों को बेचा जा रहा था।

इस धोखाधड़ी में औद्योगिक कचरे को गर्म करके दानेदार बनाया जाता था और डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) और एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) जैसे असली उर्वरकों की नकल की जाती थी। कुछ इकाइयाँ प्रतिदिन दो लाख से अधिक बोरी नकली उर्वरक बेच रही थीं, जिससे लाखों किसान प्रभावित हुए। नकली उर्वरकों के इस्तेमाल से फसलों को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिससे उपज कम होती है और मिट्टी की गुणवत्ता लगातार खराब होती जाती है।

जहरीले बीज: कैंसरकारक रंग और एक्सपायर्ड स्टॉक

एक अन्य घोटाले में, बीज निर्माताओं को पुराने या निम्न गुणवत्ता वाले बीजों को नए पैक में भरकर और हानिकारक रंगों से रंगकर बेचते पकड़ा गया।

कृषि अधिकारियों ने पाया कि बीजों को आकर्षक दिखाने के लिए कैंसरकारक रसायनों का उपयोग किया जा रहा था। उदाहरण के लिए, मूंग (हरी मूंग) के बीजों पर हरे रंग की डाई लगाई जाती थी, जबकि जौ और ग्वार के बीजों पर लाल रंग का प्रयोग किया जाता था। ये रसायन किसानों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं और अगर भोजन में इनके अंश रह जाएं तो उपभोक्ताओं को भी नुकसान पहुँचा सकते हैं।

इसके अलावा, एक्सपायर्ड बीजों को नए पैक में भरकर ताजा स्टॉक के रूप में बेचा जा रहा था। श्रीगंगानगर स्थित हार्वेस्टर फूड नामक एक फैक्ट्री में पुराने बीजों को पेंट से रंगकर नया दिखाया जा रहा था। ऐसी धोखाधड़ी से बीजों के अंकुरण दर पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे फसलें नष्ट हो जाती हैं और किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

नकली कीटनाशक: घटिया और अनधिकृत उत्पाद

छापेमारी की कार्रवाई कीटनाशक निर्माताओं तक भी पहुँची, जहाँ निम्न गुणवत्ता और नकली उत्पाद पाए गए। एक प्रमुख मामले में, आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी के परिवार से जुड़े एक गोदाम में इंडोफिल इंडस्ट्रीज के नाम से नकली कीटनाशक जब्त किए गए।

मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने बताया कि ये कीटनाशक ऊँची कीमत पर बेचे जा रहे थे, लेकिन कपास की फसल को सफेद मक्खी के हमले से बचाने में विफल रहे, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ। नकली कीटनाशक न केवल कीटों को नियंत्रित करने में असफल होते हैं, बल्कि फसलों में जहरीले अवशेष भी छोड़ सकते हैं, जो खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं।

नियामकीय लापरवाही और भ्रष्टाचार

गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र के बावजूद, व्यापक धोखाधड़ी से पता चलता है कि निर्माताओं और अधिकारियों के बीच गहरी मिलीभगत हो सकती है।

दिसंबर 2024 में, कृषि आयुक्त कार्यालय की निरीक्षण टीमों ने कई फैक्ट्रियों को नकली उर्वरक बनाने के बावजूद क्लीन चिट दे दी थी। उनकी रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे जानबूझकर उपेक्षा करने के संदेह पैदा होते हैं।

मंत्री मीणा ने जाँच की मांग की है कि इन इकाइयों को उल्लंघनों के बावजूद क्लीन चिट कैसे मिल गई। नियामक निकायों की विफलता ने इस अवैध व्यापार को फलने-फूलने दिया, जिससे किसानों को खतरा पैदा हो गया।

राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ

राजस्थान के कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के नेतृत्व में की गई छापेमारी ने राजनीतिक बहस भी छेड़ दी है। कुछ आलोचकों का आरोप है कि यह कार्रवाई चुनिंदा व्यवसायों को निशाना बना रही है, जबकि अन्य का तर्क है कि प्रशासन ने इन घोटालों को वर्षों तक नजरअंदाज किया।

कांग्रेस विधायक विकास चौधरी ने सवाल उठाया कि उच्च पदस्थ अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में ऐसे बड़े पैमाने पर अवैध धंधे कैसे चलते रहे। यह विवाद कृषि आदानों के विनियमन में मजबूत निगरानी और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

किसानों और कृषि पर प्रभाव

नकली आदानों पर निर्भर किसानों को विनाशकारी परिणाम भुगतने पड़ते हैं। घटिया बीजों से अंकुरण दर कम होती है, जबकि मिलावटी उर्वरक फसलों की वृद्धि को रोक देते हैं। कीटनाशकों की विफलता से फसलों में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे किसानों को बार-बार नुकसान उठाना पड़ता है और वे कर्ज के जाल में फँस जाते हैं।

श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कपास के किसानों ने लाखों बीघा फसल नष्ट होने की शिकायत की। कई छोटे किसान, जो पहले से ही बढ़ती लागत से जूझ रहे हैं, आर्थिक संकट में और गहरे धंसते जा रहे हैं।

मिट्टी और पर्यावरण को दीर्घकालिक नुकसान

उर्वरकों में संगमरमर का कचरा और औद्योगिक अपशिष्ट मिलाने से मिट्टी में हानिकारक पदार्थ घुल जाते हैं, जिससे उसकी उर्वरता कम होती जाती है। दूषित बीज और कीटनाशक खेतों की गुणवत्ता को और खराब करते हैं, जिससे स्थायी कृषि करना मुश्किल हो जाता है।

अगर इस पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो यह प्रवृत्ति दीर्घकालिक पारिस्थितिक क्षति का कारण बन सकती है, जो प्रमुख कृषि क्षेत्रों में खाद्य उत्पादन और जल गुणवत्ता को प्रभावित करेगी।

सरकार की प्रतिक्रिया और भविष्य के उपाय

छापेमारी और कानूनी कार्रवाई

राजस्थान सरकार ने नकली कृषि आदान बनाने वाली 40 से अधिक फैक्ट्रियों को सील करके छापेमारी तेज कर दी है। एफआईआर दर्ज की गई हैं और कानूनी कार्रवाई के लिए नमूनों की जाँच की जा रही है।

मंत्री मीणा ने लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है और अचानक निरीक्षण जारी रखने का वादा किया है। कृषि विभाग के भीतर एक समर्पित गुणवत्ता नियंत्रण विंग का गठन बेहतर प्रवर्तन की दिशा में एक कदम है।

मजबूत नीतियों और किसान जागरूकता की आवश्यकता

इस समस्या से निपटने के लिए नीति निर्माताओं को:

  • बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रमाणीकरण प्रक्रिया को मजबूत करना होगा।
  • नकली कृषि आदान निर्माताओं के लिए सजा बढ़ानी होगी।
  • ब्लॉकचेन या क्यूआर-कोड आधारित ट्रेसबिलिटी सिस्टम लागू करना होगा।
  • किसानों को नकली उत्पादों की पहचान करने में मदद के लिए जागरूकता अभियान चलाना होगा।

भारत में नकली कृषि आदानों का बढ़ना केवल एक आर्थिक धोखाधड़ी नहीं है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और किसानों की भलाई के लिए सीधा खतरा है। हालांकि हालिया छापेमारी से इस समस्या के पैमाने का पता चला है, लेकिन किसानों की सुरक्षा और भारत की कृषि आपूर्ति श्रृंखला की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्थागत सुधारों और सख्त प्रवर्तन की आवश्यकता है।

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