राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)फसल की खेती (Crop Cultivation)

खेती को खोखला कर देंगी, जीएम फसलें

लेखक: भारत डोगरा

30 सितम्बर 2024, नई दिल्ली: खेती को खोखला कर देंगी, जीएम फसलें – दबावों के बावजूद यूरोपियन यूनियन (ईयू) के 27 देशों समेत कई देशों में प्रतिबंधित ‘जेनेटिकली मॉडीफाइड’ फसलों को दुनियाभर में पैदावार बढ़ाने के तर्क की बुनियाद पर फैलाया जा रहा है, हालांकि सब जानते हैं कि इसके पीछे अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मुनाफे की हवस काम कर रही है। क्या है, ‘जीएम’ फसलों के गुण-दोष?

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जेनेटिकली मॉडीफाईड फसलें (जीएम) एक बड़े विवाद का विषय रही हैं। हाल ही में मैक्सिको की सरकार ने अपनी सबसे महत्वपूर्ण फसल मक्का को ‘जीएम’ से बचाने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। मैक्सिको पर पड़ौसी देश अमेरिका व वहां की कंपनियों का दबाव था कि वह ‘जीएम’ मक्का अपनाए, पर मैक्सिको की सरकार ने स्पष्ट कहा कि वह अपने देश की खाद्य-सुरक्षा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इससे पहले फिलीपींस में वैज्ञानिकों, किसानों व कार्यकर्ताओं ने अदालत में ‘जीएम’ फसलों के विरुद्ध मुकदमा लड़ा था और उन्हें अदालत से ‘जीएम’ फसलों पर रोक का महत्वपूर्ण निर्णय भी प्राप्त हुआ था। इन दिनों भारत की खेती-किसानी कई स्तरों पर संकट के दौर से गुजर रही है। हालांकि इसके संतोषजनक समाधान भी कई स्तरों पर उपलब्ध हैं, पर इन समाधानों की ओर बढऩे की बजाए कुछ सीमित स्वार्थों की ओर से ऐसे सुझाव दिए जा रहे हैं जिनसे यह संकट निश्चित तौर पर और उग्र होगा व असहनीय हद तक बढ़ सकता है। ऐसा ही एक सुझाव है ‘जीएम’ फसलों का प्रसार, जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बहुत शक्तिशाली तत्व जुड़े हैं।

‘जेनेटिक इंजीनियरिंग’ से बनने वाली ‘जीएम’ फसलों में किसी भी पौधे या जन्तु के ‘जीन’ या आनुवांशिक गुण का प्रवेश किसी अन्य पौधे या जीव में करवाया जाता है, जैसे – आलू के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या सुअर के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या मछली के जीन का प्रवेश सोयाबीन में करवाना या मनुष्य के जीन का प्रवेश सुअर में करवाना आदि। यह कार्य ‘जीन’- बंदूक से पौधे की कोशिका पर बाहरी ‘जीन’ दागकर किया जाता है या किसी बैक्टीरिया में बाहरी ‘जीन’ का प्रवेश करवाकर उससे पौधे की कोशिका का संक्रमण किया जाता है।

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जेनेटिक इंजीनियरिंग’ की तकनीक देश-विदेश में विवादाग्रस्त क्यों बनी हुई है? ‘जीएम’ फसलों के विरोध का एक मुख्य आधार रहा है कि ये फसलें स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं तथा उनका असर जेनेटिक-प्रदूषण के माध्यम से अन्य गैर-जीएम फसलों व पौधों में फैल सकता है। इस विचार को ‘इंडिपेंडेंट साईंस पैनल’ ने बहुत सारगर्भित ढंग से व्यक्त किया है।

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जाहिर है, ‘जीएम’ व ‘गैर-‘जीएम’ फसलों का सह-अस्तित्व नहीं हो सकता। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि ‘जीएम’ फसलों की सुरक्षा प्रमाणित नहीं हो सकी है। इसके विपरीत पर्याप्त प्रमाण हैं जिनसे इन फसलों से सुरक्षा पर गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं। यदि इनकी उपेक्षा की गई तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की क्षति होगी जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती, जिसे फिर ठीक नहीं किया जा सकता।’जीएम’ फसलों को अब दृढ़ता से खारिज कर देना चाहिए।

वैज्ञानिकों ने इन फसलों से जुड़े खतरे का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष बताया है कि जो खतरे पर्यावरण में फैलेंगे उन पर हमारा नियंत्रण नहीं रह जाएगा। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को केवल इस कारण परेशान किया गया क्योंकि उनके अनुसंधान से ‘जीएम’ फसलों के खतरे पता चलने लगे थे। इन कुप्रयासों के बावजूद निष्ठावान वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से ‘जीएम’ फसलों के गंभीर खतरों को उजागर करने वाले दर्जनों अध्ययन उपलब्ध हैं। जैफरी एम. स्मिथ की पुस्तक ‘जेनेटिक रुले’ के 300 से अधिक पृष्ठों में ऐसे दर्जनों अध्ययनों का सार-संक्षेप या परिचय उपलब्ध है।

सन् 2009-10 में भारत में ‘बीटी’ बैंगन के संदर्भ में ‘जीएम’ के विवाद ने जोर पकड़ा तो विश्व के 17 विख्यात वैज्ञानिकों ने भारत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस बारे में नवीनतम जानकारी उपलब्ध करवाई। पत्र में कहा गया कि ‘जीएम’ प्रक्रिया से गुजरने वाले पौधे का जैव-रसायन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है जिससे उसमें नए विषैले या एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्वों का प्रवेश हो सकता है व उसके पोषक गुण कम या बदल सकते हैं। एक ‘जीएम’ फसल ‘बीटी’ कपास या उसके अवशेष खाने के बाद या ऐसे खेत में चरने के बाद अनेक भेड़-बकरियों के मरने व पशुओं के बीमार होने के समाचार मिले हैं। डॉ. सागरी रामदास ने इस मामले पर विस्तृत अनुसंधान किया है। उन्होंने बताया है कि ऐसे मामले विशेषकर आंध्रप्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक व महाराष्ट्र में सामने आए हैं, पर अनुसंधान-तंत्र ने इस पर बहुत कम ध्यान दिया है। भेड़-बकरी चराने वालों ने स्पष्ट बताया कि सामान्य कपास के खेतों में चरने पर ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं पहले नहीं देखी गईं, ‘जीएम’ के आने के बाद ही ये समस्याएं देखी गईं। हरियाणा में दुधारू पशुओं को ‘बीटी कपास के बीज व खली खिलाने के बाद उनमें दूध कम होने व प्रजनन की गंभीर समस्याएं सामने आईं हैं।
कृषि व खाद्य क्षेत्र में ‘जेनेटिक इंजीनियरिंग की टैक्नॉलाजी मात्र छ:-सात बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में केंद्रित है। इन कंपनियों का मूल आधार पश्चिमी देशों में है। इनका उद्देश्य ‘जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से दुनियाभर की कृषि व खाद्य व्यवस्था पर ऐसा नियंत्रण स्थापित करना है जैसा विश्व इतिहास में कभी संभव नहीं हुआ। इन तथ्यों व जानकारियों को ध्यान में रखते हुए सभी ‘जीएम फसलों का विरोध जरूरी है।

इस विषय पर सबसे गहन जानकारी रखने वाले भारत के वैज्ञानिक थे, प्रो. पुष्प भार्गव। एक लेख में प्रो. भार्गव ने लिखा था कि लगभग 500 शोध प्रकाशनों ने ‘जीएमÓ फसलों के मनुष्यों, अन्य जीव-जंतुओं व पौधों के स्वास्थ्य पर हानिकारक असर को स्थापित किया है।


‘जीएम’ फसलों के समर्थक कहते हैं कि उसे वैज्ञानिकों का समर्थन मिला है, पर प्रो. भार्गव ने इस विषय पर समस्त अनुसंधान का आकलन कर यह स्पष्ट बता दिया कि अधिकांश निष्पक्ष वैज्ञानिकों ने ‘जीएम’ फसलों का विरोध ही किया है। उन्होंने यह भी बताया कि जिन वैज्ञानिकों ने ‘जीएमÓ को समर्थन दिया है उनमें से अनेक किसी-न-किसी स्तर पर ‘जीएम’ बीज बेचने वाली कंपनियों या इस तरह के निहित स्वार्थों से जुड़े रहे हैं। आज जब शक्तिशाली स्वार्थों द्वारा ‘जीएमÓ खाद्य फसलों को भारत में स्वीकृति दिलवाने के प्रयास अपने चरम पर हैं, यह बहुत जरूरी है कि इस विषय पर शीर्ष विशेषज्ञ प्रो. पुष्प भार्गव की तथ्य व शोध आधारित चेतावनियों पर समुचित ध्यान दिया जाए।

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