राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

आम बजट: किसानों की आय दोगुना करने पर मौन क्यों?

05 अगस्त 2024, नई दिल्ली: आम बजट: किसानों की आय दोगुना करने पर मौन क्यों? – 23 जुलाई को केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संसद में वर्ष 2024-25 का पूर्ण बजट पेश करते हुये बताया कि कृषि और सम्बद्ध क्षेत्र के लिये 1.52 लाख करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। वित्त मंत्री ने दलहन और तिलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए उत्पादन बढ़ाने, भंडारण और विपणन के लिये विशेष बल दिया है। यह एक अच्छा संकेत है। वर्तमान में भारत अपनी घरेलु दालों की खपत का लगभग 15 प्रतिशत और खाद्य तेल की खपत का 40 प्रतिशत से अधिक आयात करता है। सरकार द्वारा दलहन और तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये जो प्रयास किये जा रहे हैं, उसमें सफलता मिलती है तो बड़ी मात्रा में आयात करने पर होने वाले खर्च को बचाया जा सकता है। इससे दलहन और तिलहन उत्पादक किसानों को फायदा तो होगा ही, घरेलु उपभोक्ताओं को भी दालों और खाद्य तेलों के लिये अधिक कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी। केंद्रीय सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने भी लोकसभा चुनाव के पहले विश्वास व्यक्त किया था कि भारत सन् 2027 के अंत तक दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जायेगा। अब वित्त मंत्री ने बजट में यह पुख्ता कर दिया है कि सरकार इस दिशा में गम्भीर प्रयास कर रही है। हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष खरीफ में दलहन के क्षेत्रफल में पिछले वर्ष की तुलना में काफी वृद्धि हुई है। देश में इस वर्ष 26 जुलाई तक अरहर, उड़द सहित खरीफ की अन्य दालों का रकबा 102 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गया है जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि तक 89.41 लाख हेक्टेयर में बोवनी हुई थी।

बजट भाषण में वित्त मंत्री ने प्राकृतिक खेती के लिए भी एक करोड़ किसानों को जोडऩे की बात कही है। देश में खाद्यान्न की कमी को पूरा करने के लिए हरित क्रांति के बाद रासायनिक उर्वरकों और दवाइयों का उपयोग शुरू हुआ और अब तो इनकी सीमा अपने उच्चतम शिखर तक पहुंच चुकी है। कृषि उत्पादन भी लगभग स्थिर हो गया है। लागत में बेतहाशा वृद्धि होने से किसानों को कृषि उपज से बचत भी ना के बराबर हो रही है। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की पहल से निश्चित ही भारतीय कृषि को एक नई दिशा मिलेगी लेकिन प्राकृतिक खेती के खतरों को भी समझना होगा। वित्त मंत्री ने बजट भाषण में अधिक उत्पादन वाली 109 प्रजातियों को जारी करने की भी घोषणा की है। ये उन्नत किस्में जलवायु परिवर्तन अनुकूल तथा बदलती परिस्थितियों में भी अपेक्षित उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। बजट में 400 जिलों में फसलों का डिजीटल सर्वेक्षण करवाने का वादा किया है। डिजीटल सर्वेक्षण के तहत खेती करने के तरीके कृषि भूमि का उपयोग, उत्पादन आदि के आंकड़े एकत्रित किए जाएंगे। इससे सब्सिडी का वितरण, फसल बीमा, आपदा प्रबंधन सहित कृषि से जुड़े अन्य पहलुओं को ध्यान में रखकर नीतियां बनाने में सहायता मिलेगी।

हाल ही में लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हुए हैं जिसमें सत्तारूढ़ गठबंधन को भले ही पर्याप्त बहुमत हासिल हो गया है लेकिन मुख्य दल भारतीय जनता पार्टी को पिछले दो चुनाव, 2014 और 2019 के समान अकेले पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया है। किसान संगठनों की लंबी समय से मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बनाया जाये। इसको लेकर पंजाब, हरियाणा के किसान कई महीनों से हरियाणा की सीमा पर डेरा डाले हुए हैं। बजट में भले ही कृषि क्षेत्र के लिए राशि में इजाफा किया है लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कुछ नहीं कहा गया है। किसानों को उम्मीद थी कि सरकार किसानों की कम से कम न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर कुछ घोषणा जरूर कर सकती है। इसी तरह केंद्र सरकार ने किसानों की आय को दोगुना करने के लिए जोर-शोर से प्रयास तो शुरू किए थे लेकिन अभी तक इसके कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं दिखाई दे रहे हैं। बजट में भी आय को दोगुना करने का कोई उल्लेख नहीं है जबकि केंद्र सरकार इस मुद्दे को लेकर काफी उत्साहित थी।

किसानों की आय को बढ़ाने के लिए विस्तृत कार्य योजना बनाने की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ा कारक फसल उत्पादन की बढ़ती लागत भी है। लागत को कम करना किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। केंद्र और राज्य सरकारों को लागत कम करने के लिये प्राथमिकता से कदम उठाने चाहिये। इसमें यह भी ध्यान रखना होगा की लागत कम करने के चक्कर में उत्पादन भी कम ना हो जाए। प्राकृतिक खेती के भी यही खतरे हैं। दरअसल रासायनिक उर्वरकों और दवाइयों के अंधाधुंध प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति भी निरंतर कम होते जा रही है। इसी के परिणाम स्वरुप किसान, खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों और दवाइयों का अधिक उपयोग करने लगे हैं। कृषि के सर्वांगीण विकास के लिए मृदा परीक्षण, जैविक खाद का उपयोग, सिंचाई के लिए बिजली और पानी की पर्याप्त उपलब्धता, उन्नत बीज, उन्नत तकनीक, पशुपालन को बढ़ावा, अनुपयोगी भूमि पर पौधारोपण और छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण, फसल चक्र का अनुपालन, खेतों में नरवाई जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध, भूजल स्तर बढ़ाने के लिए व्यापक कार्य योजना के साथ खाद्य प्रसंस्करण, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, जैविक खाद का व्यवसायिक उत्पादन, औषधि पौधों का संरक्षण और जड़ी-बूटियों का संग्रहण और विपणन जैसे विषय हैं जिन पर व्यापक विचार-विमर्श और कार्यान्वयन की आवश्यकता है। बजट में भले ही कृषि से सम्बद्ध अन्य विषय शामिल नहीं किए गए हैं लेकिन किसानों की जरूरत के मुताबिक योजनाएं बनाकर उन्हें सीधा लाभ पहुंचाया जा सकता है। बजट में मोटे अनाज (मिलेट्स) आम आदमी की थाली में पहुंचे, इसका कोई जिक्र नहीं है। पिछला वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया गया था। इसी के परिणाम स्वरुप बाजरा, मक्का, ज्वार, कोदो, कुटकी आदि का रकबा पिछले पिछले की तुलना में अभी तक करीब 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अधिक बोअनी हो चुकी है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में शामिल नहीं अन्य अनाजों को शामिल करके किसानों को प्रोत्साहित करने की ही आवश्यकता है। किसानों को पोषण और स्वास्थ्य के बारे में भी और जागरूक करने की जरूरत है तथा उसी के अनुसार कृषि करने के तरीकों में भी बदलाव आएगा और अंतत: देशवासियों के स्वास्थ्य पर भी सीधा असर पड़ेगा।

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