राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

जलवायु परिवर्तन के दौर में पारंपरिक किस्मों की अहमियत पर जोर, नई दिल्ली में कार्यशाला आयोजित

27 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन के दौर में पारंपरिक किस्मों की अहमियत पर जोर, नई दिल्ली में कार्यशाला आयोजित – कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच कृषि और बागवानी की पारंपरिक किस्मों को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए एक बहु-हितधारक कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में तमिलनाडु, ओडिशा सहित 10 राज्यों के किसान, बीज रक्षक और विशेषज्ञ शामिल हुए। कार्यशाला का उद्देश्य वर्षा आधारित क्षेत्रों में पारंपरिक किस्मों की उपयोगिता पर चर्चा करना और इन किस्मों को बाजार और नीति-निर्माण से जोड़ने के उपाय तलाशना था।

पारंपरिक किस्मों के महत्व पर विशेषज्ञों का जोर

कृषि मंत्रालय के सचिव डॉ. देवेश चतुर्वेदी ने पारंपरिक किस्मों की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि इनमें बेहतर स्वाद, सुगंध, पोषण और गुणवत्ता जैसे अद्वितीय गुण हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि इन किस्मों को समूहों में उगाकर उनकी विपणन रणनीति तैयार की जानी चाहिए ताकि अधिक मूल्य प्राप्त किया जा सके।

डॉ. चतुर्वेदी ने बताया कि मंत्रालय एनएमएनएफ, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ), बीज विकास कार्यक्रम और एनएफएसएम जैसी योजनाओं के माध्यम से पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा दे रहा है।

वर्षा आधारित क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता

राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) के सीईओ डॉ. फैज़ अहमद किदवई ने बताया कि भारत के लगभग 50% कृषि क्षेत्र वर्षा आधारित हैं, जहां 61% किसान निर्भर हैं। इन क्षेत्रों में अनौपचारिक बीज प्रणालियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

कार्यशाला में तमिलनाडु और ओडिशा सहित 10 राज्यों के किसानों और बीज रक्षकों ने स्वदेशी बीजों का प्रदर्शन किया और अपनी सफलता की कहानियां साझा कीं। विशेषज्ञों ने इन-सीटू संरक्षण, समुदाय-प्रबंधित बीज प्रणालियों और सरकारी नीतियों के माध्यम से पारंपरिक किस्मों को संरक्षित करने की जरूरत पर जोर दिया।

डॉ. केएस वरप्रसाद, पूर्व निदेशक, भाकृअनुप-आईआईओआर, ने बताया कि पारंपरिक और जारी की गई किस्मों को सहवर्ती रूप से उपयोग करके किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता है।

चुनौतियों और समाधान पर चर्चा

कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन, मिट्टी की कम उर्वरता और जल संकट जैसी चुनौतियों पर चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने पारंपरिक किस्मों को बाजार से जोड़ने, एमएसपी में सरकारी सहायता और बीज संरक्षण प्रयासों में जमीनी संगठनों की भागीदारी पर जोर दिया।

कार्यशाला के अंत में यह सहमति बनी कि पारंपरिक किस्मों को मुख्यधारा में लाने के लिए एक कार्य योजना तैयार की जाएगी। तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों के उदाहरण प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने कृषि विविधता को पुनर्जीवित करने में सफलता पाई है।

राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) ने इस आयोजन को वर्षा आधारित कृषि नेटवर्क (आरआरएएन) और वाटरशेड सहायता सेवा नेटवर्क (डब्ल्यूएएसएसएएन) के सहयोग से आयोजित किया।

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