राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने झारखंड- रांची में आईसीएआर- कृषि संस्थान के शताब्दी समारोह में भाग लिया
लाख उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित होंगी: केंद्रीय मंत्री
21 सितम्बर 2024, राँची: राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने झारखंड- रांची में आईसीएआर- कृषि संस्थान के शताब्दी समारोह में भाग लिया – भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (20 सितंबर, 2024) को झारखंड के रांची में आईसीएआर-राष्ट्रीय उच्चतर कृषि संस्थान (एनआईएसए) के शताब्दी समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि खेती को लाभप्रद बनाने के अलावा 21वीं सदी में कृषि के समक्ष तीन अन्य बड़ी चुनौतियां हैं। खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, संसाधनों का सतत उपयोग और जलवायु परिवर्तन। उन्होंने कहा कि द्वितीयक कृषि से जुड़ी गतिविधियां इन चुनौतियों से निपटने में सहायक हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि द्वितीयक कृषि गतिविधियों के माध्यम से कृषि अपशिष्ट का समुचित उपयोग किया जा सकता है। उन्हें प्रसंस्कृत करके उपयोगी और मूल्यवान चीजें बनाई जा सकती हैं। इस तरह पर्यावरण की रक्षा होगी और किसानों की आय भी बढ़ेगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में लाख का उत्पादन मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता है। यह उनकी आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि राष्ट्रीय उच्चतर कृषि संस्थान ने लाख, प्राकृतिक रेजिन और गोंद के अनुसंधान और विकास के साथ-साथ वाणिज्यिक विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें एक छोटी लाख प्रसंस्करण इकाई और एक एकीकृत लाख प्रसंस्करण इकाई का विकास; लाख आधारित प्राकृतिक पेंट, वार्निश और कॉस्मेटिक उत्पादों का विकास; फलों, सब्जियों और मसालों की शेल्फ-लाइफ बढ़ाने के लिए लाख आधारित कोटिंग का विकास शामिल है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि ये सभी कदम आदिवासी भाई-बहनों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करेंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि एनआइएसए ने लाख की खेती में अच्छा काम किया है। लेकिन, अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें हम और आगे बढ़ सकते हैं। जैसे, फार्मास्यूटिकल्स और कॉस्मेटिक्स उद्योगों में उच्च गुणवत्ता वाली लाख की मांग है। अगर भारतीय लाख की गुणवत्ता, आपूर्ति श्रृंखला और विपणन में सुधार किया जाए, तो हमारे किसान देश-विदेश में इसकी आपूर्ति कर सकेंगे और उन्हें बेहतर मूल्य मिलेगा।
केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि लाख यानि लाह का इतिहास भारत के बराबर ही पुराना है। महाभारत में लाक्षगृह का ज़िक्र है वह भी लाख से ही बना था। तब से लेकर आज तक लाख की खेती होती आ रही है। आज के समय में लाख का बहुत महत्व है।
हमें परंपरागत खेती के साथ दूसरी खेती की तरफ भी बढ़ना पड़ेगा। हम 400 करोड़ रूपये की लाख का निर्यात करते हैं। इस खेती से जुड़े कई ऐसे हैं जो 1लाख रूपये से ज़्यादा कमा रहे हैं। अलग-अलग समूह भी बनाये गये हैं उनमें से कई समूहों की आमदनी 25 से 30 लाख रूपये तक है। कृषि विभाग व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद लाख की कैसे प्रोसेसिंग हो, पैदावार बढ़े और प्रोसेसिंग के बाद ठीक दाम मिले आदि पर काम कर रहे हैं।
श्री चौहान ने कहा कि लाख उत्पादन वन विभाग में आता है इसलिए कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लाख उत्पादन करने वाले किसानों को नहीं मिलता है। मैं प्रयत्न करूंगा कि लाख को कृषि उत्पाद के रूप में पूरे देश में मान्यता मिले। उन्होंने कहा कि भारत सरकार इस बात पर ध्यान देगी कि लाख की कलस्टर आधारित प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना में मदद करें ताकि प्रोसेसिंग का काम आसान हो जाये और किसानों को भी प्रोसेसिंग के बाद ठीक दाम मिल जाये। उन्होंने कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय के साथ मिलकर इसका प्रयत्न करेंगे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य-एमएसपी तय किया जाये।
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