किसानों के लिए बोझ बना फसल बीमा !
13 सितंबर 2020, भोपाल: फसल बीमा के प्रति किसानों की अनिच्छा क्यों है? बड़ा सवाल। सूखा, अतिवृष्टि, रोग-कीट की मार से फसल नष्ट हो जाने के बावजूद दावों का भुगतान न होना, हानि की गणना सरकारी एजेंसी द्वारा त्रुटिपूर्ण करना और कंपनियां दावा मान भी ले तो भुगतान में देरी। यहां तक कि बैंक भी किसानों के प्रति उत्तरदायी नहीं होती और जब किसान लिखित में देते हैं कि फसल बीमा नहीं करवाना चाहते तब भी बैंकों द्वारा उनको फसल बीमा लेने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि बैंक का लोन तो सुरक्षित रहे।
एक सर्वे के मुताबिक किसानों की फसल बीमा से जुड़ी अनेक समस्याएं हैं –
- फसल नुकसान के बावजूद 81 प्रतिशत किसानों को दावा/मुआवजा नहीं मिला
- 82 प्रतिशत किसानों को भुगतान मिलने में देरी हुई
- 80 प्रतिशत किसानों का सर्वे सही नहीं हुआ .
- नुकसान का आंकलन सही नहीं होने वाले किसान 95 प्रतिशत हैं .
- वहीँ अपर्याप्त मुआवजा के कारण दुखी किसान 92 प्रतिशत हैं .
- तिस पर बैंकों की बेरुखी 99 प्रतिशत रहती है.
इस वर्ष मध्य प्रदेश सरकार ने भी बीमा कंपनी का चयन करने में विलंब किया और बीमे की अंतिम तिथि 1 महीने बढ़ाकर 31 अगस्त की और आखिरी तारीख को एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी का नाम फायनल किया। जब मध्य प्रदेश के 10 जिलों में बाढ़ ने अपना प्रकोप दिखाया तो सरकार को फसल बीमा कंपनी चुनने का ख्याल आया। म.प्र. अंचल के किसानों से फसल बीमा योजना पर उनके अनुभव, पीड़ा और बेचारगी को यहाँ साझा कर रहे हैं।
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इस बार खरीफ में कुछ जिलों में अतिवृष्टि के अलावा सोयाबीन में लगे राइजोक्टोनिया नाम के रोग ने किसानों को गंभीर चिंता में डाल दिया है। गंभीर हो चुकी इस समस्या के बाद अब जमीनी स्तर पर काम शुरू हो चुका है। नुकसानी का सर्वे और बीमा जरूरी तौर पर किया जा रहा है। हालांकि किसानों के मुताबिक उन्हें इस कवायद से कोई खास उम्मीदें नहीं हैं, क्योंकि फसल का बीमा तो किया जाता है, लेकिन क्लेम शायद ही कभी मिलता है। किसानों की मानें तो फसल नुकसानी के अलावा बीमा प्रीमियम भरना भी उनके लिए एक बोझ ही है। किसानों का फसल बीमा पर से विश्वास डगमगा गया है।
सरकारी आंकड़ों में 2019 की सोयाबीन की नुकसानी करीब 15 फीसद है, वहीं असल नुकसान करीब 40 से 50 फीसदी तक था, जिसका बीमा अब तक नहीं मिला है। इंदौर जिले के लिए 150 करोड़ रुपये बीमा राशि आई है। इसमें से देपालपुर तहसील के किसानों को कितनी मिलेगी, यह अब तक तय नहीं है। वहीं इस साल नुकसान करीब 50 फीसद तक बताया जा रहा है। खेतों में खड़ी सोयाबीन रोगग्रस्त होकर पीली पड़ चुकी है। कई किसानों ने उत्पादन की उम्मीद तक छोड़ दी है तो वहीं कुछ को 40-50 फीसद उत्पादन की ही उम्मीद है।देपालपुर के किसान श्री पवन ठाकुर कहते हैं कि इस बार येलो मोजेक के बाद सोयाबीन उत्पादन कम ही निकलेगा।
कैसे भरोसा करें फसल बीमा पर ?
जलोदियापंथ के किसान श्री भारत परिहार कहते हैं कि उनकी पिछले दो-तीन साल से फसल खराब हो रही है, लेकिन बीमा अब तक नहीं मिला। यहीं के श्री उदयसिंह परिहार के मुताबिक कंपनियां केवल प्रीमियम समय पर लेती हैं फिर न तो समय पर सर्वे होता है और न ही क्लेम भुगतान। गिरोता गांव के किसान श्री लाला पटेल ने बताया उन्हें कई साल से बीमा नहीं मिला है। ऐसे में प्रीमियम उन पर अतिरिक्त बोझ ही है।गिरोता के किसान श्री रामेश्वर नागर हर साल फसल बीमा करवाते हैं, लेकिन उन्हें याद ही नहीं कि बीमे के बाद नुकसानी का भुगतान पिछली बार कब हुआ था। छडोदा के किसान श्री विष्णु पटेल का कहना है कि फसल खराब होने पर भी बीमा क्लेम नही मिले तो ऐसे में बीमा पद्घति पर कैसे भरोसा कर लें? किसानों का कहना है कि सर्वे और बीमा की कवायद तो जोरशोर से हुई, लेकिन उन्हें नहीं लगता कि इसके आगे कुछ होगा। इसके पीछे उनके कई कड़वे अनुभव हैं।
Photo credit: Christian Collins on Visual Hunt / CC BY-SA