राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

अरहर किसानों पर संकट: MSP से कम दाम पर बिक रही दाल, आत्मनिर्भरता के दावे पर सवाल

07 फ़रवरी 2025, नई दिल्ली: अरहर किसानों पर संकट: MSP से कम दाम पर बिक रही दाल, आत्मनिर्भरता के दावे पर सवाल – केंद्र सरकार के हालिया फैसले ने अरहर (तूर) दाल की खेती करने वाले किसानों को दुविधा में डाल दिया है। सरकार ने अरहर दाल के ड्यूटी-फ्री आयात की अवधि को एक साल और बढ़ाकर 31 मार्च 2026 तक कर दिया है। इस निर्णय से भारतीय किसानों को नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है, क्योंकि बाजार में दाल के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे चले गए हैं।

MSP से नीचे पहुंची अरहर की कीमतें

महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रमुख अरहर उत्पादक राज्यों में किसान अपनी फसल बेचने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन सरकार के इस फैसले के बाद उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। लातूर, महाराष्ट्र के एक प्रमुख दलाल अभय शाह के अनुसार, पिछले साल अरहर दाल 12,000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकी थी, जबकि इस साल इसकी कीमत गिरकर मात्र 7,000 रुपये रह गई है। उन्होंने बताया कि आयातित दाल का इंतजार कर रहे व्यापारी अब किसानों की उपज खरीदने से बच रहे हैं।

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शाह ने चिंता जताते हुए कहा, “ऐसे फैसलों से किसान अरहर की खेती से भरोसा खो देंगे। सरकार को किसानों की स्थिति को समझकर ही नीतिगत निर्णय लेने चाहिए।”

भारत में 2021 से अरहर दाल को “फ्री कैटेगरी” के तहत बिना किसी आयात शुल्क के लाने की अनुमति दी गई थी। यह नीति तब से हर साल बढ़ाई जा रही है। ऑल इंडिया दल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने इस फैसले को किसानों के लिए नुकसानदायक बताया और मांग की कि अरहर का MSP बढ़ाकर 9,000 रुपये प्रति क्विंटल किया जाए।

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अग्रवाल के अनुसार, भारत में अरहर की अधिकतम खपत 50 लाख टन है, जबकि सरकार मार्च तक 40 लाख टन अरहर आयात कर लेगी। ऐसे में मात्र 10-15 लाख टन की कमी के लिए ड्यूटी-फ्री आयात की नीति को जारी रखना उचित नहीं है।

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देशी दालों की कीमतों में गिरावट

वर्तमान में न केवल अरहर, बल्कि मसूर, चना, उड़द और पीली मटर जैसी प्रमुख दालों की कीमतें भी गिर गई हैं। चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन बाजार में यह इससे भी कम दाम पर बिक रही है।

भारत मुख्य रूप से म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और कनाडा से दालों का आयात करता है। अरहर और उड़द की आपूर्ति मुख्य रूप से म्यांमार और अफ्रीका से होती है, जबकि चना, मसूर और मटर ऑस्ट्रेलिया, रूस और कनाडा से आती हैं।

क्या होगा आत्मनिर्भरता का सपना?

हालांकि सरकार ने कई बार ‘दालों में आत्मनिर्भरता’ की घोषणा की है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि आज भी भारत अपनी जरूरत का एक बड़ा हिस्सा आयात के जरिए पूरा कर रहा है। किसान संगठनों और विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार ने ड्यूटी-फ्री आयात नीति वापस नहीं ली, तो आने वाले वर्षों में किसान दालों की खेती से मुंह मोड़ सकते हैं, जिससे देश की आत्मनिर्भरता पर संकट आ सकता है।

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