भारत की मेजबानी में दुनियाभर के देशों ने सीखा IPR का खेल, ICRISAT ने दिखाई राह
03 अप्रैल 2025, हैदराबाद: भारत की मेजबानी में दुनियाभर के देशों ने सीखा IPR का खेल, ICRISAT ने दिखाई राह – भारत- इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (ICRISAT) ने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के इंडियन टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (ITEC) प्रोग्राम के तहत 17 से 29 मार्च 2025 तक इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (IPR) पर दो हफ्ते की खास ट्रेनिंग आयोजित की। इस प्रोग्राम में अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के 16 देशों से आए 33 प्रोफेशनल्स ने हिस्सा लिया। ट्रेनिंग का मकसद साउथ-साउथ कोलैबोरेशन को बढ़ावा देना और क्रॉस-कंट्री लर्निंग को प्रोत्साहित करना था।
इस ट्रेनिंग का नाम था ‘कॉम्प्रिहेंसिव लर्निंग ऑन इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स फॉर पॉलिसी-लेवल इंटरवेंशन्स इन एन इंटरनेशनल कॉन्टेक्स्ट’। इसमें सरकारी एजेंसियों, प्राइवेट ऑर्गनाइजेशन्स और रिसर्च इंस्टीट्यूशन्स के लोग शामिल हुए। ICRISAT के डायरेक्टर जनरल डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा, “कृषि में पहले ज्ञान खुलेआम बांटा जाता था, लेकिन आज इनोवेशन की वैल्यू बढ़ गई है। इसे IPR से प्रोटेक्ट करना जरूरी है। हमें इस फील्ड में अपडेट रहना होगा।”
प्रोग्राम में BITS पिलानी हैदराबाद कैंपस और T-Works जैसी जगहों का दौरा भी शामिल था। BITS में प्रतिभागियों ने स्टूडेंट्स के इनोवेटिव प्रोडक्ट्स देखे, वहीं T-Works में तेलंगाना सरकार के सपोर्ट से ग्रासरूट इनोवेटर्स के काम को समझा। क्लासरूम सेशन्स में IP सर्च, कमर्शियलाइजेशन मॉडल्स और पॉलिसी डेवलपमेंट जैसे टॉपिक्स पर हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग दी गई।
ICRISAT के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड ने कहा, “आप सभी ने IPR सीखने के लिए जो मेहनत की, वह काबिल-ए-तारीफ है। अब आपकी जिम्मेदारी है कि अपने देशों में बदलाव लाएं।” पिछले साल की सक्सेस के बाद इस साल भी यह कोर्स आयोजित किया गया।
प्रतिभागियों ने इसे बेहद उपयोगी बताया। जिम्बाब्वे यूनिवर्सिटी की दीदरे न्गातेंडवे न्डुड्जो ने कहा, “यह ट्रेनिंग मेरे देश की चुनौतियों से जुड़ी थी और प्रैक्टिकल सॉल्यूशन्स देती है।” ब्राजील की शीला डी सूजा ने ICRISAT की फैसिलिटीज की तारीफ की, वहीं ईरान के जवाद वफाबख्श ने इसे अपने देश के लिए एक्शन प्लान बनाने में मददगार बताया।
यह ट्रेनिंग ICRISAT के लीगल सर्विसेज हेड डॉ. सूर्या मणि त्रिपाठी और उनकी टीम ने आयोजित की। यह प्रोग्राम न सिर्फ IPR की समझ बढ़ाने में मददगार रहा, बल्कि भविष्य के लिए इंटरनेशनल कोलैबोरेशन का रास्ता भी खोल गया।
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