कपास की खेती: 2025 में आधुनिक तकनीकों से बढ़ता उत्पादन
10 मई 2025, नई दिल्ली: कपास की खेती: 2025 में आधुनिक तकनीकों से बढ़ता उत्पादन – कपास, जिसे “सफेद सोना” के नाम से भी जाना जाता है, भारत की सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है। यह न केवल कृषि अर्थव्यवस्था का आधार है, बल्कि सूती वस्त्र उद्योग के लिए भी मुख्य कच्चा माल प्रदान करता है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है, जो वैश्विक कपास उत्पादन का लगभग 25% हिस्सा देता है। यह फसल 60 लाख से अधिक किसानों को रोजगार देती है और व्यापार तथा प्रसंस्करण के माध्यम से 40-50 लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचाती है। गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कपास बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। 2025 में, आधुनिक तकनीकों और नवाचारों ने कपास की खेती को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है, जिससे न केवल उत्पादन बढ़ रहा है, बल्कि खेती पर्यावरण के लिए भी अधिक टिकाऊ हो रही है। इस लेख में, हम कपास की खेती की पूरी प्रक्रिया, जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं, बीजारोपण, लोकप्रिय किस्मों, कीट और रोग प्रबंधन, और 2025 में प्रचलित आधुनिक तकनीकों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं
कपास की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे अनुकूल होती है। आदर्श तापमान 21-27 डिग्री सेल्सियस है, हालांकि यह 43 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकता है। बीजारोपण के लिए न्यूनतम 15 डिग्री सेल्सियस तापमान आवश्यक है। वार्षिक वर्षा 50-100 सेमी तक होनी चाहिए, और फलन के दौरान गर्म दिन और ठंडी रातें बीज और रेशे के विकास के लिए उपयुक्त होती हैं। मिट्टी की बात करें तो, कपास अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में सबसे अच्छा उगता है। काली कपास मिट्टी, दोमट मिट्टी, और मिश्रित लाल मिट्टी इसके लिए आदर्श हैं, जिनका pH 6-8 के बीच होना चाहिए। जलभराव से फसल को नुकसान हो सकता है, इसलिए अच्छा जल निकास सुनिश्चित करना जरूरी है। भारत में, उत्तर भारत की गहरी नदी किनारे की मिट्टी, मध्य भारत की काली मिट्टी, और दक्षिण भारत की मिश्रित मिट्टी कपास की खेती के लिए उपयुक्त हैं।
बीजारोपण और खेती की पद्धतियां
कपास मुख्य रूप से खरीफ फसल के रूप में उगाई जाती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में इसे रबी और ग्रीष्मकालीन फसल के रूप में भी बोया जाता है। बुवाई का समय क्षेत्र और जलवायु पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, उत्तर भारत में अप्रैल-मई में बुवाई होती है, जबकि दक्षिण भारत में सितंबर-अक्टूबर उपयुक्त समय है। पंजाब, हरियाणा, और राजस्थान जैसे राज्यों में सिंचित क्षेत्रों में मार्च-मई और वर्षा आधारित क्षेत्रों में जून-जुलाई में बुवाई की जाती है। आधुनिक खेती में सटीक बोआई का उपयोग बढ़ रहा है, जिसमें बीज ड्रिल मशीनों का इस्तेमाल होता है। बीजों को कवकनाशी और कीटनाशक से उपचारित किया जाता है, ताकि अंकुरण बेहतर हो और रोगों से सुरक्षा मिले। बीज की गहराई 5 सेमी रखी जाती है, और अमेरिकी कपास के लिए 75×15 सेमी या 60×30 सेमी की दूरी, देसी कपास के लिए 60×30 सेमी, और हाइब्रिड के लिए 120×60 सेमी की दूरी उपयुक्त है।
सिंचाई का प्रबंधन भी कपास की खेती में महत्वपूर्ण है। खरीफ फसल में 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं, जबकि रबी फसल में 6-7 सिंचाई की आवश्यकता होती है, खासकर फूल आने और फलन के समय। ड्रिप सिंचाई, जो पानी की बचत करती है, मध्य और दक्षिण भारत में हाइब्रिड कपास के लिए लोकप्रिय हो रही है। फार्मोनॉट जैसे प्लेटफॉर्म्स सैटेलाइट-आधारित मिट्टी नमी निगरानी प्रदान करते हैं, जो सिंचाई को अनुकूलित करने में मदद करता है। उर्वरक प्रबंधन के लिए मिट्टी की जांच जरूरी है। हाइब्रिड कपास के लिए 120:60:60 किग्रा/हेक्टेयर (नाइट्रोजन:फास्फोरस:पोटाश) और देसी कपास के लिए 40:20:20 किग्रा/हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है। जैविक खाद जैसे नीम केक और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग भी फसल की गुणवत्ता बढ़ाता है।
लोकप्रिय किस्में
कपास की कई किस्में भारत में लोकप्रिय हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों और परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हैं। RCH134Bt और MRC 6301Bt जैसी हाइब्रिड किस्में उच्च उपज और कीट प्रतिरोध के लिए जानी जाती हैं। RCH134Bt प्रति एकड़ 11.5 क्विंटल तक उपज दे सकती है, जबकि MRC 6301Bt 10 क्विंटल तक। Ankur 651 और LHH 144 जैसी किस्में विल्ट और पर्ण कर्ल रोग के प्रति प्रतिरोधी हैं, जो इन्हें गेहूं चक्र के साथ खेती के लिए उपयुक्त बनाती हैं। देसी कपास की किस्म LD 327 सूखा प्रतिरोधी है और 11.5 क्विंटल/एकड़ तक उपज देती है। FDK 124 जल्दी परिपक्व होने वाली किस्म है, जो सफेद मक्खी और विल्ट के प्रति प्रतिरोधी है। इन किस्मों का चयन क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के आधार पर करना चाहिए।
किस्म | उपज (क्विंटल/एकड़) | परिपक्वता (दिन) | विशेषताएं |
RCH134Bt | 11.5 | 160-165 | कीट प्रतिरोधी (सुंडी, अमेरिकी सुंडी), उच्च उपज। |
MRC 6301Bt | 10 | 160-165 | कीट प्रतिरोधी, फल वजन 4.3 ग्राम। |
Ankur 651 | 7 | 170 | विल्ट और पर्ण कर्ल प्रतिरोधी, गेहूं चक्र के लिए उपयुक्त। |
LHH 144 | 7.6 | 180 | हाइब्रिड, पर्ण कर्ल प्रतिरोधी, फल वजन 5.5 ग्राम। |
LD 327 | 11.5 | 175 | देसी, सूखा प्रतिरोधी, बड़े फल, गुलाबी फूल। |
FDK 124 | 9.3 | 160 | जल्दी परिपक्व, विल्ट और सफेद मक्खी प्रतिरोधी। |
कीट और रोग प्रबंधन
कपास की फसल कई कीटों और रोगों से प्रभावित हो सकती है। गुलाबी सुंडी, अमेरिकी सुंडी, सफेद मक्खी, और तंबाकू इल्ली प्रमुख कीट हैं, जबकि फ्यूजेरियम विल्ट, जड़ सड़न, और अल्टरनेरिया पर्ण झुलसा आम रोग हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) इन समस्याओं को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका है। IPM में कीट प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग, जैविक नियंत्रण, फसल चक्रीकरण, और सावधानीपूर्वक कीटनाशक उपयोग शामिल है। उदाहरण के लिए, गुलाबी सुंडी के लिए प्रोक्लेम (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG) 88 ग्राम/एकड़ और सफेद मक्खी के लिए कॉन्फिडोर (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL) 1 मिली/लीटर प्रभावी हैं।
आधुनिक तकनीकें: 2025 की खेती में क्रांति
2025 में, कपास की खेती में कई आधुनिक तकनीकें अपनाई जा रही हैं, जो उत्पादन और टिकाऊपन दोनों को बढ़ा रही हैं। फार्मोनॉट जैसे प्लेटफॉर्म्स सैटेलाइट-आधारित फसल निगरानी प्रदान करते हैं, जो किसानों को फसलों की सेहत, मिट्टी की नमी, और उपज अनुमान पर दैनिक अपडेट देता है। यह तकनीक AI-संचालित अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, जो लागत कम करती है और निर्णय लेने में मदद करती है। ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियां पानी की बचत करती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी है। सैटेलाइट-आधारित मिट्टी नमी निगरानी सिंचाई को अनुकूलित करती है, जिससे पानी का अधिकतम उपयोग होता है।
उर्वरक प्रबंधन में भी तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है। मिट्टी की जांच के आधार पर नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाशियम का सटीक उपयोग फसल की गुणवत्ता और उपज को बढ़ाता है। फार्मोनॉट व्यक्तिगत उर्वरक अनुशंसाएं प्रदान करता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। कटाई में भी नवाचार हो रहे हैं। हालांकि पारंपरिक रूप से कपास की कटाई मैनुअल रूप से की जाती है, लेकिन यांत्रिक कटाई मशीनें श्रम बचाती हैं और दक्षता बढ़ाती हैं। AI-संचालित उपज अनुमान कटाई के सही समय का निर्धारण करने में मदद करता है, जिससे फसलों का नुकसान कम होता है।
टिकाऊ प्रथाएं भी कपास की खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। जैविक खेती, पानी संरक्षण, फसल चक्रीकरण, और संरक्षण जुताई जैसे अभ्यास पर्यावरण को सुरक्षित रखते हैं। बेटर कॉटन पहल के तहत, किसानों को सुरक्षित कीटनाशक उपयोग, बेहतर उर्वरक प्रबंधन, और मिट्टी स्वास्थ्य के लिए फसल चक्रीकरण जैसे तरीकों की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके अलावा, मिशन फॉर कॉटन प्रोडक्टिविटी जैसी सरकारी योजनाएं, जो 2025-26 के बजट में घोषित की गई हैं, कपास की उत्पादकता और टिकाऊपन को बढ़ाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी समर्थन प्रदान कर रही हैं। यह मिशन अतिरिक्त लंबे रेशे (ELS) वाली कपास किस्मों को बढ़ावा देता है, जिससे भारत की कपड़ा उद्योग की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
चुनौतियां और समाधान
कपास की खेती में कई चुनौतियां हैं, जैसे कीट और रोग, जलवायु परिवर्तन, और पानी की कमी। गुलाबी सुंडी और सफेद मक्खी जैसे कीट फसलों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। IPM और समय पर कीटनाशक उपयोग इन समस्याओं को कम करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा आधारित खेती में अनिश्चितता बढ़ रही है, क्योंकि भारत में 65% कपास क्षेत्र वर्षा पर निर्भर है। ड्रिप सिंचाई और जल संरक्षण तकनीकें इस समस्या का समाधान हैं। मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए जैविक खाद और फसल चक्रीकरण का उपयोग जरूरी है। बेटर कॉटन पहल के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और मिट्टी स्वास्थ्य की समस्याओं से निपटने के लिए किसानों को प्रकृति के संरक्षण और पुनर्जनन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
कटाई और उपज
कपास की कटाई तब की जाती है जब फल पूरी तरह विकसित हो जाएं, आमतौर पर सुबह के समय, ताकि ओस से बचा जा सके। फलों को हर 7-10 दिन में चुनना चाहिए, और शुरुआती और देर की कटाई को अलग रखना चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में उपज 2-3 टन/हेक्टेयर और हाइब्रिड में 3.5-4 टन/हेक्टेयर तक हो सकती है। यांत्रिक कटाई, जो अब कुछ क्षेत्रों में अपनाई जा रही है, समय और श्रम बचाती है। फार्मोनॉट का AI उपज अनुमान कटाई के समय को अनुकूलित करता है, जिससे नुकसान कम होता है।
कपास की खेती भारत के लिए एक लाभदायक और महत्वपूर्ण उद्यम है, और 2025 में अपनाई जा रही आधुनिक तकनीकें इसे और अधिक आकर्षक बना रही हैं। सैटेलाइट-आधारित निगरानी, AI-संचालित पूर्वानुमान, ड्रिप सिंचाई, और टिकाऊ प्रथाओं के माध्यम से, किसान अपनी फसलों की उपज और गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं। मिशन फॉर कॉटन प्रोडक्टिविटी जैसी योजनाएं और बेटर कॉटन जैसे संगठन किसानों को नई तकनीकों और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। यह वह समय है जब कपास की खेती नई ऊंचाइयों पर पहुंच रही है, और यह सब आधुनिक तकनीकों और किसानों की मेहनत का जादू है।
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