राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

पराली जलाने से वायु प्रदूषण: सरकार के प्रयास और आंकड़ों की सच्चाई

26 नवंबर 2024, नई दिल्ली: पराली जलाने से वायु प्रदूषण: सरकार के प्रयास और आंकड़ों की सच्चाई – उत्तरी भारत में हर साल सर्दियों की शुरुआत वायु प्रदूषण की चिंताओं के साथ होती है। दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता का गिरता स्तर जनता के स्वास्थ्य और जीवन पर गहरा असर डाल रहा है। प्रदूषण के प्रमुख कारणों में धान की पराली जलाने की घटनाएं हैं, जो पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में अक्टूबर-नवंबर के दौरान चरम पर होती हैं। हालांकि, सरकार ने इसे रोकने के लिए कई नीतियां और योजनाएं बनाई हैं, लेकिन इनका प्रभाव ज़मीनी स्तर पर सीमित नजर आता है।

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण

पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण का बड़ा कारण वाहनों, उद्योगों और निर्माण गतिविधियों से निकलने वाला धुआं है। इसके साथ ही पराली जलाने की घटनाएं स्थिति को और बिगाड़ती हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पराली जलाने की निगरानी के लिए एक प्रोटोकॉल विकसित किया है, जिसके अनुसार पराली जलाने की घटनाओं में पिछले वर्षों में कमी दर्ज की गई है। 2022 में पंजाब में पराली जलाने के 48,489 मामले सामने आए थे, जो 2024 में घटकर 9,655 रह गए। इसी तरह हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी मामूली सुधार हुआ है।

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पंजाबहरियाणाउत्तर प्रदेश
(एनसीआर )
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सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए “इन-सीटू” और “एक्स-सीटू” नीतियां लागू की हैं। इन-सीटू प्रबंधन के तहत किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी सब्सिडी पर उपलब्ध कराई जाती है। 2018 से अब तक किसानों को 3 लाख से अधिक मशीनें वितरित की जा चुकी हैं। वहीं, एक्स-सीटू प्रबंधन में बायोमास पेलेट्स और बायोगैस निर्माण के लिए प्रोत्साहन दिया गया है। इसके अलावा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने पराली उपयोग को बढ़ावा देने के लिए 15 पेलटाइज़ेशन प्लांट्स को मंजूरी दी है, जो हर साल 2.7 लाख टन पराली का उपयोग करेंगे।

सरकार ने “पूसा बायो-डीकंपोजर” तकनीक को भी बढ़ावा दिया है, जिससे पराली को खेतों में ही विघटित कर खाद में बदला जा सकता है। हालांकि, इन योजनाओं के बावजूद वायु प्रदूषण और पराली जलाने की समस्या को पूरी तरह खत्म करना अभी बाकी है।

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चुनौतियां:

सरकार की योजनाओं और नीतियों का ज़मीनी स्तर पर प्रभाव सीमित है। किसानों का कहना है कि पराली प्रबंधन की मशीनें महंगी हैं, और उनका उपयोग समय पर नहीं हो पाता। सहकारी आपूर्ति तंत्र कमजोर है, और जागरूकता की कमी के कारण कई किसान अब भी पराली जलाने को मजबूर हैं।

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इसके अलावा, राज्य सरकारों के बीच तालमेल की कमी और नीतियों के अमल में देरी भी एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिए, थर्मल पावर प्लांट्स में बायोमास के को-फायरिंग का लक्ष्य अब भी अधूरा है। 2024 तक केवल 28% को-फायरिंग ही हो सकी, जबकि लक्ष्य 50% का था।

समाधान:

वायु प्रदूषण और पराली जलाने की समस्या को सुलझाने के लिए नीति निर्माण के साथ-साथ प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है। किसानों को सस्ती और सुलभ तकनीकें उपलब्ध करानी होंगी। राज्य सरकारों और केंद्र के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना होगा।

यह स्पष्ट है कि उत्तरी भारत के वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान बहुआयामी प्रयासों से ही संभव है। सरकार को नीतियों के अमल के लिए सख्त निगरानी, जागरूकता अभियान, और किसानों के साथ सीधे संवाद बढ़ाना होगा। जब तक इन उपायों पर गंभीरता से काम नहीं किया जाता, तब तक वायु प्रदूषण और पराली जलाने की समस्या एक चुनौती बनी रहेगी।

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